भारतीय सभ्यता में पेट्रोल और डीजल दो ऐसे पदार्थ हैं जो पानी और दूध से भी ज्यादा वबाल कर सकते हैं. भले ही पानी की किल्लत से लोग परेशान हों, लेकिन पेट्रोल 2 पैसे महंगा होने पर हंगामा कर देंगे. यही कारण है कि पेट्रोल के बढ़ते दामों से परेशान आम आदमी लगातार पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की बात कर रहा है. पर अब लगता है सरकार ने उस सुनहरे सपने को तोड़ने की भी तैयारी कर ली है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक टॉप के सरकारी अधिकारी का कहना है कि जीएसटी में आने के बाद भी पेट्रोल पर वैट लगाया जाएगा.
रिपोर्ट के अनुसार जीएसटी 28 प्रतिशत यानी सबसे ज्यादा रेट स्लैब में आएगा और उसपर वैट भी लगेगा. ये अभी सिर्फ खबर ही है और सरकार की तरफ से इसकी कोई पुष्टी नहीं की गई है, लेकिन अगर ऐसा होता है तो जीएसटी और वैट मिलाकर पेट्रोल और डीजल उसी रेट पर आ जाएगा जिस रेट में वो अभी है.
मौजूदा सिस्टम में केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी लगाती है और राज्य सरकारें VAT लगाती हैं.
अब खुद ही सोचिए अगर ऐसा होता है तो क्या होगा?
- पेट्रोल के दाम जिन्हें जीएसटी में आने के बाद सस्ता होने की उम्मीद की जा रही थी वो खत्म हो जाएगी क्योंकि रेट तो लगभग बराबर ही हो जाएंगे.
- एक देश एक टैक्स का नारा बिलकुल बदल जाएगा क्योंकि राज्य सरकारें जब चाहें वैट में बदलाव कर देंगी.
- कुल मिलाकर ये भी चांदी का चम्मच ही साबित होगा.
ये प्रोसेस पूरा हो उससे पहले ये देखना होगा कि क्या सरकार जीएसटी के दायरे में पेट्रोल-डीजल को लाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट के जरिए जो 20 हज़ार करोड़ लिए जा रहे हैं वो जीएसटी के बाद खत्म हो जाएंगे और क्या सरकार उसके लिए तैयार है या नहीं.
केंद्र अभी तक Rs 19.48 रुपए एक्साइज ड्यूटी लगाता है...
भारतीय सभ्यता में पेट्रोल और डीजल दो ऐसे पदार्थ हैं जो पानी और दूध से भी ज्यादा वबाल कर सकते हैं. भले ही पानी की किल्लत से लोग परेशान हों, लेकिन पेट्रोल 2 पैसे महंगा होने पर हंगामा कर देंगे. यही कारण है कि पेट्रोल के बढ़ते दामों से परेशान आम आदमी लगातार पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की बात कर रहा है. पर अब लगता है सरकार ने उस सुनहरे सपने को तोड़ने की भी तैयारी कर ली है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक टॉप के सरकारी अधिकारी का कहना है कि जीएसटी में आने के बाद भी पेट्रोल पर वैट लगाया जाएगा.
रिपोर्ट के अनुसार जीएसटी 28 प्रतिशत यानी सबसे ज्यादा रेट स्लैब में आएगा और उसपर वैट भी लगेगा. ये अभी सिर्फ खबर ही है और सरकार की तरफ से इसकी कोई पुष्टी नहीं की गई है, लेकिन अगर ऐसा होता है तो जीएसटी और वैट मिलाकर पेट्रोल और डीजल उसी रेट पर आ जाएगा जिस रेट में वो अभी है.
मौजूदा सिस्टम में केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी लगाती है और राज्य सरकारें VAT लगाती हैं.
अब खुद ही सोचिए अगर ऐसा होता है तो क्या होगा?
- पेट्रोल के दाम जिन्हें जीएसटी में आने के बाद सस्ता होने की उम्मीद की जा रही थी वो खत्म हो जाएगी क्योंकि रेट तो लगभग बराबर ही हो जाएंगे.
- एक देश एक टैक्स का नारा बिलकुल बदल जाएगा क्योंकि राज्य सरकारें जब चाहें वैट में बदलाव कर देंगी.
- कुल मिलाकर ये भी चांदी का चम्मच ही साबित होगा.
ये प्रोसेस पूरा हो उससे पहले ये देखना होगा कि क्या सरकार जीएसटी के दायरे में पेट्रोल-डीजल को लाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट के जरिए जो 20 हज़ार करोड़ लिए जा रहे हैं वो जीएसटी के बाद खत्म हो जाएंगे और क्या सरकार उसके लिए तैयार है या नहीं.
केंद्र अभी तक Rs 19.48 रुपए एक्साइज ड्यूटी लगाता है और उसके ऊपर का सारा टैक्स राज्यों की जेब में जाता है. अगर पेट्रोल और डीजल जीएसटी के हवाले कर दिया गया तो भी मामला कुछ ऐसा ही होगा. 28% तो जो टैक्स लगेगा वो लगेगा ही और बाकी राज्य अपने हिसाब से उसपर वैट लगा लेंगे. अभी भी 45-50 प्रतिशत पेट्रोल पर और 35-40 प्रतिशत टैक्स डीजल पर लगता ही है.
यकीनन अगर पेट्रोल-डीजल सिर्फ 28 प्रतिशत टैक्स स्लैब में रखा गया और भले ही कोई सेस भी लगा दिया गया तो भी सरकार को काफी रेवेन्यू का नुकसान होगा. सरकार के पास इतना पैसा नहीं कि वो इस नुकसान की भरपाई कर सके.
यकीनन पेट्रोल और डीजल पर जितना टैक्स आता है उतना कई छोटे देशों की जीडीपी के बराबर होता है. 2015-16 में पेट्रोल डीजल से सरकार को 1.9 लाख करोड़ की आय हुई थी. इतनी आय से हाथ धोना सरकार किसी भी हालत में जुटा नहीं सकती.
पर फिर भी एक बात जिसने हमारी आंखों में पानी ला दिया वो ये कि राज्य और केंद्र सरकार जीएसटी लगने के बाद भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों को कम नहीं कर पाएगी. कुल मिलाकर हमारी मंशा तो धराशाई हो ही गई. देखते हैं आगे क्या होगा.
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