चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (CPEC) के तहत पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर चीन ने विकास कार्य शुरु किया था. पाकिस्तान सरकार ने इस संधि को बड़े जोर-शोर से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद बताया और प्रचार किया. लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है. पाकिस्तान के पोर्ट और शिपिंग मिनिस्टर मीर हासिल बिज़ेंजो ने संसद के सामने जो तस्वीर रखी उसने चीन पाकिस्तान के बीच के समझौते की पोल खोल दी. मंत्री जी ने बताया कि अगले 40 साल तक ग्वादर पोर्ट से कमाई का 91 प्रतिशत हिस्सा चीन के हिस्से जाएगा और बाकी का 9 प्रतिशत पाकिस्तान के हिस्से आएगा. समझौता अगले 40 सालों के लिए Build-Operate और Transfer (BOT) मॉडल पर आधारित है. इसका अर्थ है कि पोर्ट की कार्गो क्षमता को बढ़ाने के लिए इस पूरे समय तक यहां का कामकाज और आधारभूत सुविधाएं पाकिस्तान के जिम्मे होगा.
पाकिस्तान की संसद ने CPEC समझौते पर सरकार द्वारा चुप्पी साधने पर सवालिया निशान खड़ा किया था और समझौते का फायदा चीन को होने की आशंका जताई थी. पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज पार्टी की सांसद कलसुम परवीन ने कहा था कि CPEC समझौता बराबरी के आधार पर नहीं हुआ है. वहीं तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के सांसद मोहसीन अजीज ने ऐसे समझौतों में व्यापारी वर्ग को शामिल करने की बात कही थी. उन्होंने कहा कि आर्थिक समझौते के लिए ब्यूरोक्रेट्स के सहारे नहीं रहना चाहिए क्योंकि उन्हें बिजनेस की ज्यादा समझ नहीं होती.
जब पूरे पाकिस्तान में CPEC के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है, ऐसे में इस समझौते के पक्ष में बोलते हुए पीएमएल-एन के सांसद जावेद अब्बासी ने कहा कि- 'CPEC के अतंर्गत आने वाले पावर प्रोजेक्ट पाकिस्तान की ऊर्जा संकट को कम करेगा.' उन्होंने कहा कि- 'ज्यादातर पावर प्रोजेक्ट बलुचिस्तान और सिंध...
चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (CPEC) के तहत पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर चीन ने विकास कार्य शुरु किया था. पाकिस्तान सरकार ने इस संधि को बड़े जोर-शोर से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद बताया और प्रचार किया. लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है. पाकिस्तान के पोर्ट और शिपिंग मिनिस्टर मीर हासिल बिज़ेंजो ने संसद के सामने जो तस्वीर रखी उसने चीन पाकिस्तान के बीच के समझौते की पोल खोल दी. मंत्री जी ने बताया कि अगले 40 साल तक ग्वादर पोर्ट से कमाई का 91 प्रतिशत हिस्सा चीन के हिस्से जाएगा और बाकी का 9 प्रतिशत पाकिस्तान के हिस्से आएगा. समझौता अगले 40 सालों के लिए Build-Operate और Transfer (BOT) मॉडल पर आधारित है. इसका अर्थ है कि पोर्ट की कार्गो क्षमता को बढ़ाने के लिए इस पूरे समय तक यहां का कामकाज और आधारभूत सुविधाएं पाकिस्तान के जिम्मे होगा.
पाकिस्तान की संसद ने CPEC समझौते पर सरकार द्वारा चुप्पी साधने पर सवालिया निशान खड़ा किया था और समझौते का फायदा चीन को होने की आशंका जताई थी. पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज पार्टी की सांसद कलसुम परवीन ने कहा था कि CPEC समझौता बराबरी के आधार पर नहीं हुआ है. वहीं तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के सांसद मोहसीन अजीज ने ऐसे समझौतों में व्यापारी वर्ग को शामिल करने की बात कही थी. उन्होंने कहा कि आर्थिक समझौते के लिए ब्यूरोक्रेट्स के सहारे नहीं रहना चाहिए क्योंकि उन्हें बिजनेस की ज्यादा समझ नहीं होती.
जब पूरे पाकिस्तान में CPEC के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है, ऐसे में इस समझौते के पक्ष में बोलते हुए पीएमएल-एन के सांसद जावेद अब्बासी ने कहा कि- 'CPEC के अतंर्गत आने वाले पावर प्रोजेक्ट पाकिस्तान की ऊर्जा संकट को कम करेगा.' उन्होंने कहा कि- 'ज्यादातर पावर प्रोजेक्ट बलुचिस्तान और सिंध प्रांत में बनेंगे, जिससे पाकिस्तान में 56 बिलियन डॉलर का निवेश आएगा. CPEC के अंतर्गत इंफ्रास्ट्रकचर प्रोजेक्ट और कई इंडस्ट्रीयल जोन भी आएंगे जिससे देश में रोजगार के मौके बढ़ेंगे.'
लेकिन, हकीकत ये है कि पाकिस्तान में कुल विदेशी निवेश का 60 फीसदी चीन से ही आ रहा है. इसका असर ये हो रहा है कि पाकिस्तान की सारी कारोबारी नीति चीन को ध्यान में रखकर ही बनाई जा रही है. जिस CPEC को पाकिस्तान के फायदे वाला बताया जा रहा था, अब उसकी असली तस्वीर सामने आ रही है.
- चीन की शर्त है कि ग्वादर पोर्ट से लेकर पूरे पाकिस्तान में उसके सामान के परिवहन पर कहीं भी कोई टोल टैक्स या अन्य टैक्स न वसूला जाए.
- CPEC के अमल में आने पर पाकिस्तान में ड्यूटी फ्री सामान काफी मात्रा में आएगा, जिसका असर पाकिस्तान की टैक्स वसूली पर पड़ेगा.
- चीन अपने कई प्रोजेक्ट पर पाकिस्तान से कर छूट चाहता है.
- चीन चाहता है कि ग्वादर में चीनी मुद्रा के चलन को स्वीकृति दी जाए.
- यदि इस प्रोजेक्ट में कहीं कोई गड़बड़ी हो, तो उस पर कार्रवाई चीन के कहने पर ही की जाए.
पाकिस्तानी विशेषज्ञों की भारत और ईरान के बीच हुए चाबहार पोर्ट समझौते पर खास निगाह रहती है. और वे उसकी तुलना CPEC से करते हैं. ईरान के चाबहार पोर्ट के विकास और उसकी देखरेख के लिए भारत ने 10 साल का समझौता किया है, जिसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है. पाकिस्तान में इसी बात को लेकर ज्यादा एतराज है. जिस तरह चीन और पाकिस्तान सरकार ने CPEC का समझौता किया है, वह लोगों को अपने हक में नहीं दिखता है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि चाबहार पोर्ट के खुल जाने से अफगानिस्तान में पाकिस्तान का निर्यात घट जाएगा.
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