नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली की जोड़ी ने 2014 के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था को बदलने के लिए कई फैसले लिए हैं. इसमें नोटबंदी, जीएसटी सभी शामिल हैं और इससे देश को कितना नुकसान या कितना फायदा हुआ है इसके बारे में अभी भी साफ नहीं है, लेकिन अब मोदी और जेटली को इस बात का तो सुकून होगा कि अर्थव्यवस्था थोड़ा ठीक हो रही है.
जैसे ही देश नए वित्तीय वर्ष की ओर आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे भारतीय अर्थव्यवस्था थोड़ी मजबूत हो रही है और नोटबंदी के असर को पीछे छोड़ रही है.
वो कारण जो बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है?
1. भारत की जीडीपी..
पिछले साल जीडीपी तीन साल के सबसे निचले आंकड़े 5.7% पर पहुंच गई थी. अब 2018 की पहली तिमाही में काफी बदलाव आया है और ये 7.2% पहुंच गई है. इस हिसाब से देखा जाए तो साल भर की जीडीपी 6.5% का आंकड़ा छू लेगी. अगले साल के लिए एक्सपर्ट्स ने ये दावा किया है कि ये 7.2% से लेकर 7.5% तक हो जाएगी. यानी बहुत केज़ बढ़त.
2. टैक्स कलेक्शन में बढ़त...
भारत में टैक्स कलेक्शन ग्रोथ लगभग 19.3% दर्ज की गई है. ये जनवरी तक के आंकड़े हैं. कार्पोरेट टैक्स 19.3% तो पर्सनल इनकम टैक्स 18.6% बढ़ गया है.
लगातार गिरने के बाद अब जीएसटी कलेक्शन भी संभलने लगा है. जीएसटी कलेक्शन फरवरी 25 तक 86318 करोड़ हुआ जो जनवरी के कलेक्शन 86,703 करोड़ से थोड़ा ही कम है. ये कलेक्शन अक्टूबर नवंबर में 83,000 करोड़ और 80,000 करोड़ तक पहुंच गया था.
3. 8 सेक्टर में नौकरियां..
IT, मैन्युफैक्चरिंग, ट्रांसपोर्ट जैसे भारत के आठ बड़े सेक्टर कुल 1.36 लाख नौकरियां औसत जुलाई-सितंबर में जोड़ चुके हैं. सिर्फ कंस्ट्रक्शन सेक्टर में ही नौकरियां घटी हैं. पर कुल मिलाकर पिछली तिमाही के...
नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली की जोड़ी ने 2014 के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था को बदलने के लिए कई फैसले लिए हैं. इसमें नोटबंदी, जीएसटी सभी शामिल हैं और इससे देश को कितना नुकसान या कितना फायदा हुआ है इसके बारे में अभी भी साफ नहीं है, लेकिन अब मोदी और जेटली को इस बात का तो सुकून होगा कि अर्थव्यवस्था थोड़ा ठीक हो रही है.
जैसे ही देश नए वित्तीय वर्ष की ओर आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे भारतीय अर्थव्यवस्था थोड़ी मजबूत हो रही है और नोटबंदी के असर को पीछे छोड़ रही है.
वो कारण जो बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है?
1. भारत की जीडीपी..
पिछले साल जीडीपी तीन साल के सबसे निचले आंकड़े 5.7% पर पहुंच गई थी. अब 2018 की पहली तिमाही में काफी बदलाव आया है और ये 7.2% पहुंच गई है. इस हिसाब से देखा जाए तो साल भर की जीडीपी 6.5% का आंकड़ा छू लेगी. अगले साल के लिए एक्सपर्ट्स ने ये दावा किया है कि ये 7.2% से लेकर 7.5% तक हो जाएगी. यानी बहुत केज़ बढ़त.
2. टैक्स कलेक्शन में बढ़त...
भारत में टैक्स कलेक्शन ग्रोथ लगभग 19.3% दर्ज की गई है. ये जनवरी तक के आंकड़े हैं. कार्पोरेट टैक्स 19.3% तो पर्सनल इनकम टैक्स 18.6% बढ़ गया है.
लगातार गिरने के बाद अब जीएसटी कलेक्शन भी संभलने लगा है. जीएसटी कलेक्शन फरवरी 25 तक 86318 करोड़ हुआ जो जनवरी के कलेक्शन 86,703 करोड़ से थोड़ा ही कम है. ये कलेक्शन अक्टूबर नवंबर में 83,000 करोड़ और 80,000 करोड़ तक पहुंच गया था.
3. 8 सेक्टर में नौकरियां..
IT, मैन्युफैक्चरिंग, ट्रांसपोर्ट जैसे भारत के आठ बड़े सेक्टर कुल 1.36 लाख नौकरियां औसत जुलाई-सितंबर में जोड़ चुके हैं. सिर्फ कंस्ट्रक्शन सेक्टर में ही नौकरियां घटी हैं. पर कुल मिलाकर पिछली तिमाही के मुकाबले नौकरियां बढ़ी हैं. इसमें महिलाओं के लिए नौकरियां 74000 और मर्दों के लिए 62000 हो गई हैं.
4. NPA में कमी..
NPA यानी नॉन पर्रफॉर्मिंग असेट. ऐसे अकाउंट या असेट जिनसे कोई फायदा नहीं होता और अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ता है. भारत में NPA में लगातार कमी का अंदेशा लगाया जा रहा है और लगभग 1 लाख करोड़ के NPA जल्दी ही सुलझा लिए जाएंगे.
5. विनिवेश
विनिवेश यानी ऐसा समय जब सरकार या कोई बड़ी कंपनी अपने असेट बेचकर उसे लिक्विफाई करती है. इसे अंग्रेजी में Disinvestment कहा जाता है. इसका अहम कारण होता है ताकि सरकार पर वित्तीय भार कम हो सके.
सरकार ने मुनाफा न देने वाली PS (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग) कंपनियों के विनिवेश से उम्मीद से बेहतर मुनाफा कमा लिया है. विनिवेश का टार्गेट 72,500 करोड़ था और सरकार ने 91,256.6 करोड़ कमा लिए हैं. अगले वित्तीय वर्ष में सरकार विनिवेश से करीब 80,000 करोड़ रुपए कमा सकती है.
6. कॉर्पोरेट अर्निंग (कमाई)..
इस वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में कमाई बढ़ रही है. अगर औसत की बात करें तो लगभग 15.23% साल दर साल से बढ़ रही है.
7. IIP
इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन भी इस वित्तीय वर्ष में बढ़ गई है. 2.2% की धीमी दर से बढ़ने के बाद अब इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन ने नवंबर में 8.4% की ग्रोथ हासिल की थी. इसके बाद दिसंबर में 7.1% पर आ गई थी और अब फिर से 7.5% बढ़ गई है.
8. सीपीआई दर..
सीपीआई यानी कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स दर अब घटकर 4.44% हो गई है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे प्रेशर कम होगा और रिजर्व बैंक को अप्रैल मॉनिटरी पॉलिसी मीटिंग में नीतियां तय करने और दरें कम करने में मदद मिलेगी. 17 महीनों की बढ़त जिसने महंगाई और सीपीआई दर को 5.21% तक पहुंचा दिया था वो अब कम हो गई है और खाने-पीने के सामान की कीमतें भी कम हो गई हैं.
तो कुल मिलाकर मोदी सरकार का काम इतना बुरा भी नहीं कहा जा सकता.
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