साल का वो समय शुरू हो गया है जब हर जगह टैक्स रिटर्न भरने और टैक्स से जुड़े काम करने की बातें शुरू हो गई हैं. हममे से कई लोगों के लिए ये समस्या बहुत बड़ी हो जाती है और किसी न किसी फाइनेंशियल एक्सपर्ट की मदद लेने की बात की जाती है. असली समस्या आती है नौकरी पेशा लोगों को, वो लोग जो साल में एक या एक से ज्यादा बार नौकरी बदल चुके होते हैं उनके लिए तो दो फॉर्म 16 जुटाना और एक स्टेप ज्यादा पूरा करना एक कठिन काम लगता है, पर असल में ये इतना भी मुश्किल नहीं है.
अगर एक ही वित्तीय वर्ष में नौकरी बदली है तो यकीनन दो फॉर्म 16 की मदद से कुल टीडीएस कैलकुलेट करना होगा. ये दोनों फॉर्म 16 अलग-अलग संस्थानों से आएगा, एक जहां पहले काम करते थे और एक जहां अभी काम करते हैं.
फॉर्म 16 में बेसिक सैलरी, सभी भत्ते और टैक्स साल में कितना कटा है इसकी डिटेल्स दी होती हैं.
अगर नौकरी बदली है तो क्या देखें?
1. इन्वेस्टमेंट डिक्लेरेशन..
अगर नौकरी बदल चुके हैं तो इस बात का ध्यान दें कि सारे डिडक्शन यानी कटौतियां साल में एक बार ही की गई हों. दो जगह नौकरी करने का मतलब ये नहीं कि साल में दो बार टैक्स डिडक्शन हों. इसी के साथ, टैक्स डिपार्टमेंट के लिए सभी तरह के प्रूफ भी रखने होते हैं.
पहले वाली कंपनी और नई कंपनी को एक ही तरह का इन्वेस्टमेंट डिक्लेरेशन दिया है और पहले की सैलरी बताना भूल गए हैं तो यकीनन आपको अपना टैक्स अमाउंट की गणना फिर से करनी होगी. इससे डुप्लिकेशन नहीं होगा. ध्यान रखें कि जितनी भी इन्वेस्मेंट की गई है उसका प्रूफ जरूर होना चाहिए.
2. टैक्स स्लैब में बदलाव का ध्यान रखें..
अगर आपकी सैलरी में बदलाव हुआ है जैसा की अक्सर होता है किसी नई जगह में नौकरी करने पर तो अपना टैक्स स्लैब जरूर चेक कर लें. अगर ये बदल गया...
साल का वो समय शुरू हो गया है जब हर जगह टैक्स रिटर्न भरने और टैक्स से जुड़े काम करने की बातें शुरू हो गई हैं. हममे से कई लोगों के लिए ये समस्या बहुत बड़ी हो जाती है और किसी न किसी फाइनेंशियल एक्सपर्ट की मदद लेने की बात की जाती है. असली समस्या आती है नौकरी पेशा लोगों को, वो लोग जो साल में एक या एक से ज्यादा बार नौकरी बदल चुके होते हैं उनके लिए तो दो फॉर्म 16 जुटाना और एक स्टेप ज्यादा पूरा करना एक कठिन काम लगता है, पर असल में ये इतना भी मुश्किल नहीं है.
अगर एक ही वित्तीय वर्ष में नौकरी बदली है तो यकीनन दो फॉर्म 16 की मदद से कुल टीडीएस कैलकुलेट करना होगा. ये दोनों फॉर्म 16 अलग-अलग संस्थानों से आएगा, एक जहां पहले काम करते थे और एक जहां अभी काम करते हैं.
फॉर्म 16 में बेसिक सैलरी, सभी भत्ते और टैक्स साल में कितना कटा है इसकी डिटेल्स दी होती हैं.
अगर नौकरी बदली है तो क्या देखें?
1. इन्वेस्टमेंट डिक्लेरेशन..
अगर नौकरी बदल चुके हैं तो इस बात का ध्यान दें कि सारे डिडक्शन यानी कटौतियां साल में एक बार ही की गई हों. दो जगह नौकरी करने का मतलब ये नहीं कि साल में दो बार टैक्स डिडक्शन हों. इसी के साथ, टैक्स डिपार्टमेंट के लिए सभी तरह के प्रूफ भी रखने होते हैं.
पहले वाली कंपनी और नई कंपनी को एक ही तरह का इन्वेस्टमेंट डिक्लेरेशन दिया है और पहले की सैलरी बताना भूल गए हैं तो यकीनन आपको अपना टैक्स अमाउंट की गणना फिर से करनी होगी. इससे डुप्लिकेशन नहीं होगा. ध्यान रखें कि जितनी भी इन्वेस्मेंट की गई है उसका प्रूफ जरूर होना चाहिए.
2. टैक्स स्लैब में बदलाव का ध्यान रखें..
अगर आपकी सैलरी में बदलाव हुआ है जैसा की अक्सर होता है किसी नई जगह में नौकरी करने पर तो अपना टैक्स स्लैब जरूर चेक कर लें. अगर ये बदल गया है तो टैक्स की गणना दोबारा से करनी होगी और देनदारी बढ़ जाएगी.
3. फॉर्म 16..
चाहें नौकरी बदली हो या नहीं, लेकिन नौकरी पेशा लोगों के लिए फॉर्म 16 बहुत मायने रखता है. पूरे वित्तीय वर्ष का लेखा-जोखा इसी फॉर्म में मिल जाता है. अगर नौकरी बदली है तो दो या दो से अधिक फॉर्म 16 हो सकते हैं. अगर आपके पास फॉर्म 16 नहीं है तो अपनी कंपनी के अकाउंट्स डिपार्टमेंट से संपर्क करें और फॉर्म 16 जरूर निकलवा लें.
अगर फॉर्म 16 नहीं है तो?
ऐसा भी हो सकता है कि आपके पास फॉर्म 16 न हो और आपको फिर भी टैक्स रिटर्न फाइल करने हों. ऐसा मुमकिन है. हालांकि, इसके लिए थोड़ी मेहनत जरूर करनी होगी.
1. अपनी टैक्सेबल सैलरी की गणना करने के लिए वित्तीय वर्ष की सभी पेस्लिप (अगर नौकरी बदली है तो पूर्व और अभी दोनों कंपनियों की पे स्लिप) के जरिए टैक्स कैल्कुलेट करें.
2. फॉर्म 16 के न होने पर फॉर्म 26AS काम आता है और इसमें टीडीएस की सारी डिटेल्स होते हैं.
3. अगली स्टेप होती है टैक्स डिडक्शन की. वो सभी टैक्स डिडक्शन जिनके लिए आप मान्य हैं जैसे सेक्शन 80C और 80D. इसमें फुल टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट जैसे ELSS, PPF, होम लोन आदि कि डिटेल्स दी जाएं और इसके सभी जरूरी दस्तावेज भी पास में हो.
4. डिडक्शन के बाद आपको वो इनकम देखनी होगी जो सैलरी के अलावा मिली हैं जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट, शेयर्स या म्यूचुअल फंड की इनकम आदि.
5. एक बार सारी गणना हो गई तो किसी भी टैक्स कैलकुलेटर की मदद से अपने टैक्स की गणना करें और देखें कि कितना पैसा देना है. ऐसे में टैक्स भर सकते हैं और अगर ज्यादा टैक्स पहले ही दिया जा चुका है तो उसे रिक्लेम कर सकते हैं.
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