मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है, तब से मिडिल क्लास उससे कई सारी उम्मीदें लगाए बैठा है. बात भले ही नौकरी की हो, या फिर नौकरी करने वालों पर पड़ रहे टैक्स के बोझ की. मोदी सरकार ने कुछ उम्मीदें तो पूरी कर दी हैं, यूं लग रहा है कि अब एक बड़ी उम्मीद पर वह खरी उतरने वाली है. मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी, तो करछूट की सीमा को 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए किया था. उसके बाद सरकार ने अब तक छूट तो नहीं बढ़ाई, लेकिन कभी टैक्स कम कर के तो कभी रिबेट बढ़ाकर मिडिल क्लास को राहत दी. इस बार मोदी सरकार टैक्स स्लैब में ही बदलाव करने की योजना बना रही है, जिसका सीधा फायदा नौकरीपेशा लोगों को मिलेगा.
मौजूदा समय में टैक्स स्लैब 5, 20 और 30 फीसदी हैं, जबकि इन दरों में बदलाव की सिफारिश के तहत इन्हें 5, 10 और 20 फीसदी किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है. यानी 2.5 से 5 लाख रुपए की आय वालों को 5 फीसदी टैक्स देना होगा, 5-10 लाख की आय पर करदाता को 10 फीसदी टैक्स देना होगा, जबकि 10 लाख से अधिक आय वालों पर 20 फीसदी टैक्स का बोझ पड़ेगा. यकीनन मोदी सरकार की इस पहल से जनता को फायदा होगा, लेकिन सरकार का क्या?
5 टैक्स स्लैब बनाए जा सकते हैं
बताया जा रहा है कि जिस समिति ने टैक्स स्लैब में बदलाव की सिफारिश की है, उसने कुल 5 स्लैब बनाने का प्रस्ताव रखा है. ये 5, 10, 20, 30 औ 35 फीसदी हैं. 5 फीसदी वाले स्लैब में तो कोई भी बदलाव करने की सिफारिश नहीं की है, लेकिन बाकी को बदला जा सकता है. इसमें 5-10 लाख वालों पर 10 फीसदी टैक्स, 10 से 20 लाख वालों पर 20 फीसदी टैक्स, 20 लाख से 2 करोड़ रुपए तक 30 फीसदी और 2 करोड़ से अधिक आमदनी वालों पर 35 फीसदी का टैक्स...
मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है, तब से मिडिल क्लास उससे कई सारी उम्मीदें लगाए बैठा है. बात भले ही नौकरी की हो, या फिर नौकरी करने वालों पर पड़ रहे टैक्स के बोझ की. मोदी सरकार ने कुछ उम्मीदें तो पूरी कर दी हैं, यूं लग रहा है कि अब एक बड़ी उम्मीद पर वह खरी उतरने वाली है. मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी, तो करछूट की सीमा को 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए किया था. उसके बाद सरकार ने अब तक छूट तो नहीं बढ़ाई, लेकिन कभी टैक्स कम कर के तो कभी रिबेट बढ़ाकर मिडिल क्लास को राहत दी. इस बार मोदी सरकार टैक्स स्लैब में ही बदलाव करने की योजना बना रही है, जिसका सीधा फायदा नौकरीपेशा लोगों को मिलेगा.
मौजूदा समय में टैक्स स्लैब 5, 20 और 30 फीसदी हैं, जबकि इन दरों में बदलाव की सिफारिश के तहत इन्हें 5, 10 और 20 फीसदी किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है. यानी 2.5 से 5 लाख रुपए की आय वालों को 5 फीसदी टैक्स देना होगा, 5-10 लाख की आय पर करदाता को 10 फीसदी टैक्स देना होगा, जबकि 10 लाख से अधिक आय वालों पर 20 फीसदी टैक्स का बोझ पड़ेगा. यकीनन मोदी सरकार की इस पहल से जनता को फायदा होगा, लेकिन सरकार का क्या?
5 टैक्स स्लैब बनाए जा सकते हैं
बताया जा रहा है कि जिस समिति ने टैक्स स्लैब में बदलाव की सिफारिश की है, उसने कुल 5 स्लैब बनाने का प्रस्ताव रखा है. ये 5, 10, 20, 30 औ 35 फीसदी हैं. 5 फीसदी वाले स्लैब में तो कोई भी बदलाव करने की सिफारिश नहीं की है, लेकिन बाकी को बदला जा सकता है. इसमें 5-10 लाख वालों पर 10 फीसदी टैक्स, 10 से 20 लाख वालों पर 20 फीसदी टैक्स, 20 लाख से 2 करोड़ रुपए तक 30 फीसदी और 2 करोड़ से अधिक आमदनी वालों पर 35 फीसदी का टैक्स लगाया जा सकता है. इस पूरी कवायद की कोशिश ये है कि सरचार्ज से मुक्ति पाई जा सके. अब सरकार को कितने प्रस्ताव पसंद आते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा.
घरेलू उपभोक्ता वर्ग को ताकत देने की कोशिश
अर्थव्यवस्था की मंदी के चलते मोदी सरकार पर दबाव है कि वे ऐसे प्रबंध करें, जिनसे घरेलू उपभोक्ता वर्ग ताकतवर हो, जिससे घरेलू डिमांड बढ़े और मैनुफैक्चरिंग इंडस्ट्री को रफ्तार मिले. ऐसे में आयकर की दरों का कम करने का प्रस्ताव उपभोक्ताओं की जेब में नकदी बढ़ाएगा. बाजार में लिक्विडिटी की बढ़ोत्तरी के साथ ही उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी. ऐसे में आयकर दरों में बदलाव का प्रस्ताव अर्थव्यवस्था के सुधार में भी मददगार साबित होगा.
सरकार के खजाने पर असर पड़ना तय
एक बात तो साफ है कि अगर मोदी सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी तो इससे सरकार की आदमनी घटना तय है. टैक्सेशन के जरिेए सरकार की काफी कमाई होती है, जिस पर सीधा असर पड़ेगा. माना जा रहा है कि इसकी वजह से कम से कम 2-3 साल तक सरकार की आमदनी में कमी रहेगी. हां ये तय है कि रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी.
जो रिपोर्ट पिछले हफ्ते वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सौंपी गई है, उसमें सिर्फ टैक्स स्लैब बदलने की सिफारिश ही नहीं है, बल्कि डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स यानी डीडीटी को भी खत्म करने का सुझाव दिया है. आपको बता दें कि अभी डिविडेंट पर 3 बार टैक्स लग रहा है. पहले तो कुल डिविडेंट पर 15 फीसदी डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स, 12 फीसदी सरचार्ज और 3 फीसदी एजुकेशन सेस. इस तरह कुल टैक्स 20.35 फीसदी चुकाना पड़ रहा था. इसके लिए समिति ने इनकम टैक्स कानून की धारा 115 (o) में बदलाव का सुझाव दिया है. हालांकि, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स यानी एलटीसीजी और सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स यानी एसटीटी को बनाए रखने की सिफारिश की है.
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