अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़े भले ही हर किसी को समझ में न आते हों, लेकिन यह सुनना हम सभी को अच्छा लगता है कि भारत तरक्की कर रहा है. लेकिन आपसे कहा जाए कि अब भारत की तरक्की की रफ्तार से दुनिया के बाकी देशों की खुशहाली भी तय हो रही है तो शायद आप विश्वास न करें. संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को विश्व की अर्थव्यवस्था के बारे में जो आंकड़े जारी किए हैं वो इसी बात की गवाही दे रहे हैं.
यह पहली बार हुआ है जब यूएन की वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पैक्ट्स रिपोर्ट (WESP) में भारत को इतनी उम्मीद से देखा गया है. इसके अनुसार अभी चल रहे कारोबारी साल में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.4 फीसदी रहने का अनुमान है. लेकिन अप्रैल से शुरू होने वाला अगला कारोबारी साल बेहद अहम होगा. इस दौरान भारत की विकास दर 7.6 फीसदी होने का अनुमान है. यही वो समय होगा जब दुनिया भर की खुशहाली की चाभी भारत के हाथों में होगी. आईएमएफ की क्रिस्टीन लैगार्ड ने तो यहां तक कहा है कि "भारत को और ज्यादा विकास दर की जरूरत है, क्योंकि बाकी देशों की स्थितियां काफी कुछ उस पर निर्भर करती हैं."
चीन के दिन गए, भारत के अच्छे दिन आए
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े कितने महत्वपूर्ण हैं इस बात को समझने के लिए आपको बाकी विश्व परिदृश्य पर नजर डालना होगा. इस दौरान पूरी दुनिया की औसत विकास दर मात्र 3 फीसदी के आसपास होगी. अब तक ब्राइट स्पॉट समझा जाने वाला चीन भयानक मंदी की चपेट में जा रहा है. उसकी विकास दर अभी 6.6 फीसदी और अगले साल तक 6.3 फीसदी तक गिरने का अनुमान है. अमेरिका के साथ चल रहे उसके ट्रेड वॉर के कारण चीन के लिए हालात और भी बिगड़ चुके हैं. दूसरी तरफ भारत में निजी खपत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. बुनियादी ढांचे के विकास में इस समय भारत ने जितना निवेश कर रखा है उतना दुनिया के किसी देश में नहीं है. ये वो स्थिति है जब भारत न सिर्फ अपने बाजार, बल्कि दुनिया भर के दूसरे देशों के बाजारों को सहारा देने की स्थिति में है.
अगला कारोबारी साल में भारत की विकास दर 7.6 फीसदी होने का अनुमान है
आईएमएफ की सारी उम्मीदें भारत पर
आपको याद होगा कि आर्थिक सुधारों के शुरुआती दौर में अक्सर यह डर जताया जाता था कि भारत वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ का गुलाम बन जाएगा. यह आशंका सही भी साबित हो सकती थी अगर भारत सही समय पर सही आर्थिक नीतियों पर नहीं लौटा होता. फिलहाल अभी की स्थिति साफ है कि आईएमएफ बड़ी उम्मीदों से भारत की तरफ देख रहा है. उसे लग रहा है कि किसी तरह भारत अपनी इकोनॉमी की गाड़ी को थोड़ा ज्यादा स्पीड यानी 7.7 फीसदी तक पहुंचा दे तो दुनिया के आगे मुंह बाये खड़ी मंदी को टाला जा सकेगा. दावोस में चल रहे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में आईएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टीन लैगार्ड ने इस बात को बार-बार दोहराया. उन्होंने इस टारगेट तक पहुंचने के लिए भारत सरकार को कुछ उपाय भी सुझाए हैं. उनका कहना है कि अगर किसी तरह कृषि क्षेत्र का संकट हल हो जाए तो विकास दर का ऊंचा लक्ष्य असंभव नहीं रह जाएगा.
बैंक सुधार और जीएसटी बने 'गेमचेंजर'
कुल मिलाकर भारत अपने आर्थिक इतिहास के उस मुकाम पर खड़ा है जिसकी कल्पना भी कुछ साल पहले तक नहीं की जा सकती थी. अगर भारत अपने विकास के लक्ष्यों को पूरा कर पाया तो एक विश्व शक्ति के रूप में उसके उदय का पहला चरण होगा. ये वो जगह होगी जिसे वो चीन से हासिल कर रहा है. चीन के रणनीतिकारों को इस स्थिति का अच्छी तरह अहसास भी है. पिछले दिनों चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि "भारत विदेशी कंपनियों के लिए चीन के मुकाबले अधिक आकर्षक हो गया है. चीन में उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है, जबकि भारत इस मामले में बेहतर साबित हो रहा है." चीनी मीडिया जीएसटी को इस दिशा में एक बड़ा गेमचेंजर कदम मानती है. क्योंकि जीएसटी के बाद भारत में निवेश के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क खत्म हो गया है. इससे पहले दुनिया की कंपनियां भारत की टैक्स व्यवस्था को उलझाऊ मानती थीं और उन्हें लगता था कि वहां काम करना मुश्किल होगा. इसी तरह बैंक सुधार को भी बड़ा कारण माना जा रहा है. अगर भारत के बैंकों की हालत 2016 से पहले की स्थिति में होती, तो यह संभव नहीं था. पिछले 2-3 साल में बैंकों की स्थिति में भारी सुधार हुआ है और डूबे हुए पैसों (एनपीए) की तेजी के साथ वापसी शुरू हुई है.
अमेरिका-चीन के झगड़े में भारत का फायदा
चीन के लिए सबसे बड़ा संकट अमेरिका के साथ चल रहा उसका ट्रेड वॉर है. इसका पहला फायदा भी भारत की झोली में ही गिरा है. आईफोन बनाने वाली कंपनी एप्पल की सप्लायर फॉक्सकॉन ने अपनी मैनुफैक्चरिंग यूनिट चीन से भारत शिफ्ट करने की बात कही है. अगले कुछ हफ्तों में इस पर फैसला हो जाने की उम्मीद है. अगर ये होता है तो दुनिया भर की कंपनियों में चीन छोड़कर भारत आने की होड़ मच सकती है. साथ ही चीन में नए निवेश के लिए भी माहौल खराब हो जाएगा. दुनिया की अर्थव्यवस्था पर संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में इन्हीं सारी उम्मीदों की झलक साफ देखी जा सकती है.
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