आपने अक्सर ही लोगों को ये कहते सुना होगा कि 'अमीर दिन-ब-दिन अधिक अमीर होते जा रहे हैं'. इसे सच होता दिखा रही है हाल ही में आई Oxfam की रिपोर्ट. रिपोर्ट के अनुसार 2018 में भारत की एक फीसदी आबादी की दौलत करीब 39 फीसदी बढ़ गई, जिनमें अंबानी जैसे खरबपति शामिल हैं. वहीं देश की आधी आबादी यानी 50 फीसदी लोगों की दौलत में सिर्फ 3 फीसदी का इजाफा देखने को मिला. 2018 में देश के 1 फीसदी अमीरों की दौलत हर दिन औसतन 2200 करोड़ रुपए बढ़ी है. अब अंदाजा लगाते रहिए कि इन अमीरों के पास इतना पैसा आता कहां से है.
अगर इस रिपोर्ट को पूरी दुनिया के संदर्भ में देखा जाए तो अरबपतियों की संपत्ति में 12 फीसदी की दर से इजाफा हुआ है. जबकि गरीबों की दुनिया और कंगाली की तरफ बढ़ी. दुनिया के हर दूसरे गरीब की संपत्ति तो इस एक साल में 11 फीसदी की दर से कम हुई है. अमीरी और गरीबी की खाई को सिर्फ एक लाइन में यूं समझ लीजिए कि दुनिया के सबसे रईस 26 लोगों के पास इतनी दौलत है, जितनी बाकी आधी आबादी यानी करीब 340 करोड़ लोगों के पास है. दुनिया की आधी आबादी यानी करीब 340 करोड़ लोगों की रोजाना आय 5.50 डॉलर (करीब 390 रुपए) से भी कम है. तेजी से बढ़ी संपत्ति और आय उन लोगों के पास जाती है, जो लोग टॉप पर बैठे हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ गरीबों के ही पैसे कम हो रहे हैं, बल्कि मिडिल क्लास भी कमाई नहीं बढ़ रही है और बढ़ता हुआ पैसा अमीरों की जेब में जा रहा है.
क्या यही है समानता?
एक ओर वो 26 लोग, जिनकी अथाह दौलत न जाने कितने देशों की जीडीपी को पछाड़ दे. वहीं दूसरी ओर हैं 380 करोड़ गरीब, जो दो जून की रोटी तक के लिए संघर्ष कर रहे हैं. एक तरफ वो अमीर हैं, सुविधाएं जिनके दरवाजे पर खुद दस्तक देती हैं...
आपने अक्सर ही लोगों को ये कहते सुना होगा कि 'अमीर दिन-ब-दिन अधिक अमीर होते जा रहे हैं'. इसे सच होता दिखा रही है हाल ही में आई Oxfam की रिपोर्ट. रिपोर्ट के अनुसार 2018 में भारत की एक फीसदी आबादी की दौलत करीब 39 फीसदी बढ़ गई, जिनमें अंबानी जैसे खरबपति शामिल हैं. वहीं देश की आधी आबादी यानी 50 फीसदी लोगों की दौलत में सिर्फ 3 फीसदी का इजाफा देखने को मिला. 2018 में देश के 1 फीसदी अमीरों की दौलत हर दिन औसतन 2200 करोड़ रुपए बढ़ी है. अब अंदाजा लगाते रहिए कि इन अमीरों के पास इतना पैसा आता कहां से है.
अगर इस रिपोर्ट को पूरी दुनिया के संदर्भ में देखा जाए तो अरबपतियों की संपत्ति में 12 फीसदी की दर से इजाफा हुआ है. जबकि गरीबों की दुनिया और कंगाली की तरफ बढ़ी. दुनिया के हर दूसरे गरीब की संपत्ति तो इस एक साल में 11 फीसदी की दर से कम हुई है. अमीरी और गरीबी की खाई को सिर्फ एक लाइन में यूं समझ लीजिए कि दुनिया के सबसे रईस 26 लोगों के पास इतनी दौलत है, जितनी बाकी आधी आबादी यानी करीब 340 करोड़ लोगों के पास है. दुनिया की आधी आबादी यानी करीब 340 करोड़ लोगों की रोजाना आय 5.50 डॉलर (करीब 390 रुपए) से भी कम है. तेजी से बढ़ी संपत्ति और आय उन लोगों के पास जाती है, जो लोग टॉप पर बैठे हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ गरीबों के ही पैसे कम हो रहे हैं, बल्कि मिडिल क्लास भी कमाई नहीं बढ़ रही है और बढ़ता हुआ पैसा अमीरों की जेब में जा रहा है.
क्या यही है समानता?
एक ओर वो 26 लोग, जिनकी अथाह दौलत न जाने कितने देशों की जीडीपी को पछाड़ दे. वहीं दूसरी ओर हैं 380 करोड़ गरीब, जो दो जून की रोटी तक के लिए संघर्ष कर रहे हैं. एक तरफ वो अमीर हैं, सुविधाएं जिनके दरवाजे पर खुद दस्तक देती हैं और दूसरी ओर वो गरीब हैं, जो बच्चों की दवा तक के लिए चार पैसे खर्च करने की हालत में नहीं हैं. लोगों को अधिकारों में तो समानता मिली है, लेकिन दौलत में इतनी बड़ी असमानता है कि दुनियाभर की संस्थाएं सोचने पर मजबूर हो गई हैं. खुद ऑक्सफेम भी मानता है कि अमीर-गरीब के बीच अब कोई दीवार नहीं, बल्कि खाई बन गई है जो हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती जा रही है.
'नैतिक रूप से बेहद अपमानजनक'
अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई को देखते हुए ऑक्सफेम ने कहा है कि इससे गरीबी के खिलाफ लड़ाई कमजोर होगी, अर्थव्यवस्था बर्बाद हो सकती है और दुनियाभर में लोगों का गुस्सा बढ़ सकता है. ऑक्सफेम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानयिमा ने तो मुट्ठी भर लोगों के पास बहुत अधिक दौलत होने और दूरी ओर गरीब के और गरीब होते जाने को नैतिक रूप से बेहद अपमानजनक तक कह दिया है.
इतनी दौलत के मायने क्या?
- अमेजन के फाउंडर Jeff Bezos के पास फिलहाल 112 अरब डॉलर (करीब 8 लाख करोड़ रुपए) की संपत्ति है, जो कि इथोपिया जैसे देश के पूरे हेल्थ बजट के बराबर है, जहां की आबादी 11.50 करोड़ है.
- देश के सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी के पास जितनी दौलत (करीब 3.37 लाख करोड़ रुपए) है वो केंद्र और राज्यों के रेवेन्यू और कैपिटल एक्सपेंडिचर, साफ-सफाई और पानी की सप्लाई में होने वाले कुल खर्च से भी अधिक है
- भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार जनवरी 2019 तक देश के लोगों के पास करीब 19.5 लाख करोड़ रुपए की करंसी है. यानी सर्कुलेशन की कुल करंसी के करीब साढ़े पांचवें हिस्से के बराबर दौलत तो सिर्फ मुकेश अंबानी के पास है.
अंबानी की दौलत गरीबों में बांट दें तो क्या होगा?
वर्ल्ड बैंक के 2015 के आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब 17.57 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताने वाले लोगों की है. वहीं संपत्ति का आकलन करने वाली पत्रिका फोर्ब्स के ताजा आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो मुकेश अंबानी के पास कुल 3.37 लाख करोड़ रुपए की दौलत है. अब मान लीजिए कि मुकेश अंबानी से सारे पैसे भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताने वाले गरीबों (17.57 करोड़) लोगों में बांट दिए जाएं, तो हर गरीब को 19,180 रुपए मिलेंगे. इतने पैसे मिलने से एक गरीब खुश तो बहुत होगा, हो सकता है कि महीने भर या कुछ महीनों तक पेटभर खाना खाए और खुद के साथ-साथ अपने परिवार के लिए कुछ कपड़े भी खरीद ले, लेकिन उसके बाद क्या? ये पैसे खत्म होने के बाद सरकार क्या करेगी? क्या फिर किसी दूसरे अमीर से पैसे छीनने होंगे, ताकि गरीबों को दिए जा सकें? गरीबी दूर करने के लिए गरीबों को नौकरी और सुविधाएं देनी होंगी, ताकि वह सिर उठा कर जी सकें. मुकेश अंबानी के पैसे गरीबों को खैरात में देने से उनकी हालत में कोई खास बदलाव नहीं आएगा, हां मुकेश अंबानी जरूर गरीब हो जाएंगे.
एक वक्त था जब देश में राजा-महाराजा हुआ करते थे. वो पड़ोसी राज्यों से लड़ते थे और अपना कब्जा बढ़ाते जाते थे. दुनिया को जीत लेने का ख्वाब हर राजा देखता था, लेकिन अंत में क्या हुआ? जब देश आजाद हो गया तो सबसे पहले राजा, रजवाड़ों की दौलत को ही जब्त किया गया और सरकारी खजाने में रख दिया गया, क्योंकि अमीर और गरीब के बीच एक बहुत बड़ी खाई थी. इन पैसों से समाज कल्याण और विकास के काम किए गए. राजाओं की जमीनों को देश की जनता में बांट दिया गया, ताकि इस अमीर-गरीब के बीच का फर्क कम किया जा सके. एक बार फिर से अमीर-गरीब के बीच की खाई बहुत अधिक गहरी हो चुकी है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि टाटा-अंबानी की दौलत छीनकर जनता में बांटने की स्थिति आने तक सरकार इंतजार करेगी या फिर गरीबी से जूझ रहे लोगों को आगे बढ़ाने के मौके देगी.
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