सरकार की तमाम समस्याओं में से एक समस्या यह भी है कि तमाम दावों के बाद भी वो देश के युवाओं को कोई स्थायी रोजगार नहीं दे पा रही है. जो संस्थाएं रोजगार दे रही हैं उनसे वो बेतहाशा टैक्स जरूर वसूलना चाह रही है. सरकार को टैक्स इसलिए चाहिए कि सरकार युवाओं को रोजगार दे ना दे लेकिन देश को बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे रोड, एक्सप्रेस वे, बुलेट ट्रेन, एयरपोर्ट्स, बड़े बड़े पार्क, ऊंची-ऊंची विशालकाय मूर्तियां और वर्ग विशेष को मूलभूत सुविधाएं, सब्सिडी, ग़रीब आवास, शौचालय, बेरोजगारी भत्ते दे सके और इसी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कुछ चुनिंदा देसी व विदेशी कंपनियों को टैक्स रिबेट, सब्सिडी देते हुए डायरेक्ट टेंडर या PPP मॉडल से हजारों करोड़ों के काम दिए जाते हैं. जिनका अधिकांश हिस्सा वो मटेरिअल व इम्पोर्टेड मशीनारिज में खर्च करते हैं और टोटल बजट का 10 से 20 % से भी कम हिस्सा उसके अस्थाई लेबर पर खर्च होते हैं न की स्थाई रोजगार देने में. फिर बनने के बाद अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर के रख रखाव के नाम पर जनता से इसपे सालों टोल टैक्स वसूला जाता है.
हरे भरे पेड़ से दीमक को साफ करने के लिए सरकार उनपर दवा छिड़कने के बजाए आरी चला रही है. उनकी जगह नए पौधे लगाने का ठेका कुछ करीबी चुनिंदा कंपनियों को देती है व बढ़ती GPD दिखाने के लिए असली आंकड़ों में फेरबदल करती है और समय समय परस्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे बुरी तरह पिटे हुए जुमलों को बड़े बड़े भारी भरकम विज्ञापनों के जरिये उछालती रहती है.
खैर देश में बेरोजगारी के ताजे आंकड़ों को देखें तो मिलता है कि आज देश में 86 करोड़ नौकरी लायक लोग हैं और इस संख्या में 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जो बेरोजगार हैं. सीधे शब्दों में कहें तो आज हर 5 में से 1 व्यक्ति...
सरकार की तमाम समस्याओं में से एक समस्या यह भी है कि तमाम दावों के बाद भी वो देश के युवाओं को कोई स्थायी रोजगार नहीं दे पा रही है. जो संस्थाएं रोजगार दे रही हैं उनसे वो बेतहाशा टैक्स जरूर वसूलना चाह रही है. सरकार को टैक्स इसलिए चाहिए कि सरकार युवाओं को रोजगार दे ना दे लेकिन देश को बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे रोड, एक्सप्रेस वे, बुलेट ट्रेन, एयरपोर्ट्स, बड़े बड़े पार्क, ऊंची-ऊंची विशालकाय मूर्तियां और वर्ग विशेष को मूलभूत सुविधाएं, सब्सिडी, ग़रीब आवास, शौचालय, बेरोजगारी भत्ते दे सके और इसी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कुछ चुनिंदा देसी व विदेशी कंपनियों को टैक्स रिबेट, सब्सिडी देते हुए डायरेक्ट टेंडर या PPP मॉडल से हजारों करोड़ों के काम दिए जाते हैं. जिनका अधिकांश हिस्सा वो मटेरिअल व इम्पोर्टेड मशीनारिज में खर्च करते हैं और टोटल बजट का 10 से 20 % से भी कम हिस्सा उसके अस्थाई लेबर पर खर्च होते हैं न की स्थाई रोजगार देने में. फिर बनने के बाद अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर के रख रखाव के नाम पर जनता से इसपे सालों टोल टैक्स वसूला जाता है.
हरे भरे पेड़ से दीमक को साफ करने के लिए सरकार उनपर दवा छिड़कने के बजाए आरी चला रही है. उनकी जगह नए पौधे लगाने का ठेका कुछ करीबी चुनिंदा कंपनियों को देती है व बढ़ती GPD दिखाने के लिए असली आंकड़ों में फेरबदल करती है और समय समय परस्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे बुरी तरह पिटे हुए जुमलों को बड़े बड़े भारी भरकम विज्ञापनों के जरिये उछालती रहती है.
खैर देश में बेरोजगारी के ताजे आंकड़ों को देखें तो मिलता है कि आज देश में 86 करोड़ नौकरी लायक लोग हैं और इस संख्या में 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जो बेरोजगार हैं. सीधे शब्दों में कहें तो आज हर 5 में से 1 व्यक्ति बेरोजगार है. बात आंकड़ों की हुई है तो हमारे लिए ये बताना भी बेहद जरूरी है कि आज बेरोजगारी का जो आंकड़ा हमारे हमारे पेश किया जा रहा है वो बेरोजगारी से ज्यादा असंतोष का आंकड़ा है.
ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी सरकार में युवा बेरोजगार हैं, NSSO के हिसाब से पिछले 45 सालों में ये आंकडें सबसे ज्यादा हैं जो निश्चित ही चिंताजनक है. 'सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी' नामक निजी संस्था के सर्वे की माने तो सिर्फ 2018 में ही करीब 1 करोड़ 10 लाख लोगों की जॉब चली गयी थी और आज भी कई इंडस्ट्रीज बड़े पैमाने पर मैनपॉवर ले ऑफ़ की तैयारी में हैं. तो निश्चित ही ये आंकड़े आने वाले समय में और भी भयानक हो सकते हैं.
समझने वाली बात यह है कि पढ़े लिखे का जॉब न मिलने के चलते बेरोजगार रहने में और सालों से एम्प्लॉयड पर्सन का ले ऑफ़ (छटनी) वाला बेरोजगार होने में भी बड़ा अंतर है. बैंकिंग सेक्टर की अधिकतर कमाई इनकी EMI से ही आती है. खैर भारत में रोजगार के लिए 'अन ऑर्गेनाइज्ड' सेक्टर हमेशा से अव्वल रहा है. और ऑर्गेनाइज सेक्टर में रियल एस्टेट, एजुकेशन और मैन्यूफैक्चरिंग/प्रोडक्शन सेक्टर के बाद ज्यादा लोग बैंकिंग/इन्सुरेंस सेक्टर में खपते हैं.
तमाम अखबारों की माने तो इन सेक्टर्स की हालत अब खस्ता हाल हो रही है. आर्थिक मंदी लगभग इनसे जुड़े रोजगार के मुहाने पर दस्तक देने को है. रोजगार रातों रात पैदा नहीं किये जा सकते. ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार में इनसे निपटने के लिए कुछ किया नहीं पर जो भी किया वह सिनर्जिक व सिंक्रोनाइज नहीं है.स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया उसके बाद मुद्रा लोन.
जैसे स्कूल में एडमिशन करा लेने से स्किल डेवलपमेंट का कोई लेना देना नहीं है. वैसे ही 2 मिनट में बिज़नेस लोन दे देने से बिज़नेस के सफ़ल होने का कोई लेना देना नहीं है. तमाम रिसर्च कहती हैं कि देश में विभिन्न कारणों से लगभग 90% स्टार्टअप्स अपने पहले साल के अंदर फेल कर जाते हैं. ऐसे में ज़रूरत है उन्हें सही मार्गदर्शन की, पर देश का दुर्भाग्य है कि इतने बड़े फैल्योर रेट होने के बावजूद इसकी दिशा और दशा तय करने वाला कोई नहीं है.
बल्कि इसके विपरीत फैल्योर के कारणों को समझे, बिना किसी खाते बही और जिम्मेदारी के मुद्रा योजना के तहत 14.97 लाख करोड़ का लोन बांट दिया जाता है. नतीजन देश मे मुद्रा लोन शुरू हुए अभी ठीक से 2 साल भी नहीं हुए और इसके चलते बैंकों का NPA अब तक 14 हज़ार करोड़ से ज्यादा हो चुका है.
खैर ज्यादा चौकाने वाला मुद्दा यह है कि इतने जतन के बाद भी बेरोजगारी के आंकड़ों में कुछ खास परिवर्तन नहीं देखने को मिला. उसके उलट NPA का दंश और बढ़ गया. और बढ़ते NPA ने बैंकिंग सेक्टर के हाथ पैर फुलाने शुरू कर दिए हैं और जल्द ही कुछ न किया गया तो बैंकिंग सेक्टर में भी छटनी की सूनामी आनी तय है. सरकार की इस कयावत को जूमलों में समझें तो गए तो नमाज़ अदा करने और रोज़े गले पड़ गए.
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