यह पहली बार नहीं जब देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजरने वाला है पर मेरा अनुमान है कि विकासवादी और राष्ट्रवादी सोच के दौर का यह आर्थिक संकट पिछले वालों से बिल्कुल भिन्न होगा. यह संकट देश के मिडिल क्लास के साथ साथ मिडिल ऐज (35 से 50 की उम्र) के लोगों के लिए एक बुरे सपने जैसा होने वाला है.
आधिकारिक तौर पर कहें तो इसपर कोई बात नहीं करना चाहता पर जो सत्य है वो सत्य है. मोदी सरकार पिछले 5 सालों में नये रोजगार देने में पूरी तरह असफल रही है. स्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया चंद लोगों की जेब भरने का साधन मात्र है. कोई चैनल इसपर डिबेट करने की हिम्मत नहीं रखता और यह भी सच है कि फेसबुक, गूगल व ट्विटर की भारत से होने वाली कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा से जाता है.
फॉरेन इन्वेस्टमेंट भी नाम मात्र का हुआ जितने देश घूमे उसका 1% भी नहीं आया. उसपे अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पिछले 5 सालों में कोई ठोस उपाय नहीं किये गए. कृषि, कृषक और अनाजों के प्रेक्यूरेमेंट के तरीकों में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं किए गए. सरकारें किसी की भी हों बैकों द्वारा वसूली के खिलाफ डिफॉल्टर किसानों की कर्ज माफी के नाम की वोट लॉबिंग जरूर की जाती है. बड़ी आबादी है इसलिए खरबों रुपए माफ करना ठीक है. पर जब बात गिनती के कॉरपोरेट्स या संस्थानों की हो तो उन्हें इसका निशाना बनाना मोदी सरकार में देश भक्ति से कम नहीं.
खैर यूपी चुनाव को ध्यान में रखते हुए किए गए नोटबन्दी के फैसले ने क्षेत्रीय दलों को मानसिक तौर से डिस्टर्ब कर चुनाव तो जितवा दिया लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रियल-एस्टेट और उससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को भी बुरी तरह से तोड़ दिया. और उसके बाद...
यह पहली बार नहीं जब देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजरने वाला है पर मेरा अनुमान है कि विकासवादी और राष्ट्रवादी सोच के दौर का यह आर्थिक संकट पिछले वालों से बिल्कुल भिन्न होगा. यह संकट देश के मिडिल क्लास के साथ साथ मिडिल ऐज (35 से 50 की उम्र) के लोगों के लिए एक बुरे सपने जैसा होने वाला है.
आधिकारिक तौर पर कहें तो इसपर कोई बात नहीं करना चाहता पर जो सत्य है वो सत्य है. मोदी सरकार पिछले 5 सालों में नये रोजगार देने में पूरी तरह असफल रही है. स्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया चंद लोगों की जेब भरने का साधन मात्र है. कोई चैनल इसपर डिबेट करने की हिम्मत नहीं रखता और यह भी सच है कि फेसबुक, गूगल व ट्विटर की भारत से होने वाली कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा से जाता है.
फॉरेन इन्वेस्टमेंट भी नाम मात्र का हुआ जितने देश घूमे उसका 1% भी नहीं आया. उसपे अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पिछले 5 सालों में कोई ठोस उपाय नहीं किये गए. कृषि, कृषक और अनाजों के प्रेक्यूरेमेंट के तरीकों में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं किए गए. सरकारें किसी की भी हों बैकों द्वारा वसूली के खिलाफ डिफॉल्टर किसानों की कर्ज माफी के नाम की वोट लॉबिंग जरूर की जाती है. बड़ी आबादी है इसलिए खरबों रुपए माफ करना ठीक है. पर जब बात गिनती के कॉरपोरेट्स या संस्थानों की हो तो उन्हें इसका निशाना बनाना मोदी सरकार में देश भक्ति से कम नहीं.
खैर यूपी चुनाव को ध्यान में रखते हुए किए गए नोटबन्दी के फैसले ने क्षेत्रीय दलों को मानसिक तौर से डिस्टर्ब कर चुनाव तो जितवा दिया लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रियल-एस्टेट और उससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को भी बुरी तरह से तोड़ दिया. और उसके बाद बिना किसी मूलभूल रिसर्च के अंग्रेजों के बनाये कानून के जैसे थोपे गए GST ने भी अपना रंग दिखाना शुरू किया. जिसका असर धीमे धीमे एक के बाद एक इकनॉमिक सेक्टर्स में पड़ना शुरू हुआ.
रोजगार कम और मार्केट कॉम्पिटिशन ज्यादा. जो छोटी मोटी कंपनियां, उद्योग रोजगार दे रहे थे उनका टैक्स कल्चर, बैंकिंग और अन्य कॉम्प्लाइन्स मोदी सरकार से परे थे. नतीजा वहां भी धंधा मंदा होने लगा. पूरे स्ट्रक्चर का फायदा कुछ चुनिंदा कंपनियों को मिला जिन्होंने भाजपा को मिलने वाले चंदे में 83 गुने का इजाफ़ा कर 900+ करोड़ किया था.
FMCJ, रियल एस्टेट, बैंकिंग, इन्श्योरेंस, IT, टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल, टेलीकॉम, एयरवेज, एनर्जी और पॉवर लगभग हर सेक्टर की हालत खस्ताहाल है. और वहां गंभीर रूप से लाखों लोगों की छटनी चालू हो चुकी है. जिसका सीधा असर बैंकिंग सेक्टर पर पड़ने वाला है.
पर मेरा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है. बिल्कुल वैसे ही जैसे मास्टर जी की क्लास में दो लड़कों ने यूनिवर्सिटी टॉप किया और बाकी लड़के फेल हो गए. अब आप इसके कारण तलाशते रहिये. पर देश के इस मास्टर को मोदी कहते हैं और टॉपर को आप अच्छे से जानते हैं. बस दुख इस बात का है कि जो लोग फेल होंगे उनकी जिंदगी लोन पे चल रही है. जिसका कोई लोन माफ़ नहीं होने वाला. बाकी भाजपा की सदस्यता मिसकॉल पे मिलती है, रोजगार वाला नम्बर 6 साल से स्विच ऑफ पड़ा है.
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