2017 की शुरुआत उस दौर में हुई थी जब हर भारतीय अपने ही पैसे के लिए लाइन में लगा हुआ था. 8 नवंबर को हुई नोटबंदी ने देश को हिला कर रख दिया था और सरकार द्वारा दिया गया आश्वासन कि 28 दिसंबर 2016 तक सब ठीक हो जाएगा ये भी फीका ही साबित हुआ और अगला पूरा साल बीतने के बाद भी नोटबंदी की मार से हिंदुस्तान ऊपर नहीं उठ पाया है. 2017 में कई ऐसी बातें हुईं जिसने आम आदमी के पैसे की परेशानी को थोड़ा बढ़ा दिया...
1. नोटबंदी का 2017 पर असर...
भले ही लोग डिजिटल ट्रांजैक्शन और कैशलेस इंडिया की बात करें, लेकिन एक बात तो पक्की है कि 2017 पर नोटबंदी का असर काफी गहरा पड़ा है. चाहें IT कंपनियों की मंदी हो या फिर नौकरियां जाना. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार भारत में करीब 15 लाख नौकरियां जनवरी से लेकर अप्रैल 2017 तक गईं. इसे नोटबंदी से ही जोड़ा जा रहा है.
दबी जुबान में तो लोग ये भी कह रहे हैं कि कम इंक्रिमेंट का कारण भी नोटबंदी ही है. नोटबंदी के बाद से ही खुदरा दुकानदारों को जितनी समस्या हुई उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. भारत जैसा देश जहां लगभग 70% कारोबार किसी न किसी स्टेज पर बिना लिखा पढ़ी के होता है और करीब 86% नोट सिस्टम में फैले हुए थे वहां नोटबंदी ने यकीनन आम आदमी की किसी न किसी तरह से कमर तोड़ दी थी. सब्जी वाले अपनी सब्जियां बेहद कम दाम में बेचने को तैयार थे क्योंकि उन्हें कोई कैश नहीं दे पा रहा था.
जीडीपी भी गिरी ... नोटबंदी के तुरंत बाद IMF (इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड) ने भारत के ग्रोथ रेट को 6.6% कर दिया है और ये पिछले साल 7.6% था. ऐसा नोटबंदी के तत्कालीन प्रभाव को देखते हुए किया गया. भारत की जीडीपी पहले 6.1 और फिर जीएसटी के बाद 5.7% तक कम हो गई. दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का टाइटल भी इस साल मार्च में भारत ने...
2017 की शुरुआत उस दौर में हुई थी जब हर भारतीय अपने ही पैसे के लिए लाइन में लगा हुआ था. 8 नवंबर को हुई नोटबंदी ने देश को हिला कर रख दिया था और सरकार द्वारा दिया गया आश्वासन कि 28 दिसंबर 2016 तक सब ठीक हो जाएगा ये भी फीका ही साबित हुआ और अगला पूरा साल बीतने के बाद भी नोटबंदी की मार से हिंदुस्तान ऊपर नहीं उठ पाया है. 2017 में कई ऐसी बातें हुईं जिसने आम आदमी के पैसे की परेशानी को थोड़ा बढ़ा दिया...
1. नोटबंदी का 2017 पर असर...
भले ही लोग डिजिटल ट्रांजैक्शन और कैशलेस इंडिया की बात करें, लेकिन एक बात तो पक्की है कि 2017 पर नोटबंदी का असर काफी गहरा पड़ा है. चाहें IT कंपनियों की मंदी हो या फिर नौकरियां जाना. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार भारत में करीब 15 लाख नौकरियां जनवरी से लेकर अप्रैल 2017 तक गईं. इसे नोटबंदी से ही जोड़ा जा रहा है.
दबी जुबान में तो लोग ये भी कह रहे हैं कि कम इंक्रिमेंट का कारण भी नोटबंदी ही है. नोटबंदी के बाद से ही खुदरा दुकानदारों को जितनी समस्या हुई उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. भारत जैसा देश जहां लगभग 70% कारोबार किसी न किसी स्टेज पर बिना लिखा पढ़ी के होता है और करीब 86% नोट सिस्टम में फैले हुए थे वहां नोटबंदी ने यकीनन आम आदमी की किसी न किसी तरह से कमर तोड़ दी थी. सब्जी वाले अपनी सब्जियां बेहद कम दाम में बेचने को तैयार थे क्योंकि उन्हें कोई कैश नहीं दे पा रहा था.
जीडीपी भी गिरी ... नोटबंदी के तुरंत बाद IMF (इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड) ने भारत के ग्रोथ रेट को 6.6% कर दिया है और ये पिछले साल 7.6% था. ऐसा नोटबंदी के तत्कालीन प्रभाव को देखते हुए किया गया. भारत की जीडीपी पहले 6.1 और फिर जीएसटी के बाद 5.7% तक कम हो गई. दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का टाइटल भी इस साल मार्च में भारत ने खो दिया.
2. बजट 2017...
न ही कोई ऐसी घोषणा हुई जो सीधे आम आदमी पर असर करे और न ही बहुत सी चीजें सस्ती हुईं. लेदर का सामान, सोलार पैनल, LED-LCD स्क्रीन, नमक, एल्युमीनियम फॉयल और फिंगरप्रिंट स्कैनर जैसी चीजें बजट में सस्ती हुई थीं तो सिगरेट, मोबाइल फोन, एलईडी बल्ब, चांदी का सामान, स्टील का सामान, हार्डवेयर, ड्रायफ्रूट्स, साइकल आदि चीजें महंगी भी हुई थीं.
टैक्स स्लैब में भी बदलाव किए गए, लेकिन सिर्फ 5 लाख से कम आय वालों का ही फायदा हुआ. उसके आगे वालों को ज्यादा टैक्स देना पड़ा. टैक्स दर 5 से 10 लाख वाले लोगों के लिए 10% की जगह 20% कर दी गई. जिसमें लगभग देश का पूरा मिडिल क्लास इंसान आ जाएगा.
अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए भी बजट में काफी कुछ किया गया, नैशनल हाउसिंग बैंक 20 हजार करोड़ के लोन फाइनैंस करेंगे, प्रधान मंत्री आवास योजना को 23000 करोड़ रुपए मिलेंगे, लेकिन इससे पूछा जाए कि आम आदमी को क्या असर पड़ा तो ये कहना थोड़ा मुश्किल है. हां रेरा (RERA) एक्ट लागू हो गया, पर फिर भी अभी तक कोई असर नहीं हुआ. नोटबंदी के बाद से ही रियल एस्टेट सेक्टर में मंदी आई थी और वो इतने कम से नहीं ठीक हुई.
गरीबों के लिए: 50 हजार पंचायतें गरीबी मुक्त, 2018 तक सभी गांवों में बिजली, 60% तक गांवों में शौचालय बनेंगे. जैसी घोषणाएं भी हुईं... 1 लाख 30 हजार करोड़ रुपए आवंटित, ऑनलाइन कोर्स के लिए 'स्वयं' चैनल, 'स्किल इंडिया' के 100 नए सेंटर्स. किसान और गांव के लिए: कृषि विज्ञान क्षेत्र में 100 नए लैब, 48 हजार करोड़ रुपए मनरेगा का बजट, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का मॉडल. महिलाओं के लिए- कौशल विकास के लिए 1.84 लाख करोड़ रुपये, लोन सस्ता, गर्भवती महिलाओं के लिए 6000 रुपए सीधे अकाउंट में. जैसे सभी घोषणाएं नाकाफी साबित हुईं. कुल मिलाकर बजट सपाट सा रहा. आम आदमी को जो राहत मिलनी चाहिए थी वो बजट से तो नहीं मिली.
3. GST..
कांग्रेस गुजरात इलेक्शन के दौर में सिर्फ नोटबंदी और जीएसटी की बात ही क्यों उठा रही है? जीएसटी लागू होने के बाद से ही न ही सिर्फ दुकानदारों को बल्कि ग्राहकों को भी खासी परेशानी उठानी पड़ी. एक तरफ से देखा जाए तो बार-बार जीएसटी रेट बदलना ही एक बड़ी परेशानी थी. उसपर अभी हाल फिलहाल में सर्विसेज काफी महंगी हो गई हैं. चाहें मोबाइल का बिल हो, या फिर ट्रैवल का सब कुछ महंगा ही है. क्रेकिड कार्ड और बैंकिंग सर्विसेज भी वैसी ही हैं. सिर्फ बाहर खाना खाना सस्ता हुआ है (पहले जीएसटी के बाद महंगा हुआ और फिर सस्ता).
जीएसटी के बाद सबसे ज्यादा समस्या उन दुकानदारों को हुई जिन्हें बार-बार अपना काम करने का तरीका बदलना पड़ा. वो लोग जो पहले कच्चा काम करते थे वो सिस्टम में आए और ऐसी खबरें भी आईं कि उन्हें जीएसटी के बारे में न पता होने के कारण उन्हें बेवकूफ बनाया गया.
जीएसटी के बाद सर्विस टैक्स 15% से 18% हो गया और तुरंत प्रभाव से आम आदमी की जेब में 3% की चपत लगी.
4. महंगाई...
अब अगर सब्जियों की हालत देखें जो कोल्ड स्टोरेज के कारण बढ़ी हैं, या फिर बाकी सर्विसेज की जो जीएसटी के कारण बढ़ी है.. ये नवंबर पिछले कई सालों में सबसे महंगा नवंबर साबित हुआ. प्याज और टमाटर 100 का आंकड़ा बस छूकर वापस आ गए, लेकिन अभी भी सब्जी का थैला आम आदमी के लिए काफी महंगा है.
अभी और भी बाकी...
अगर 2017 की ही बात करें तो अभी FRDI बिल को लेकर बहस चल रही है. सरकार 'फाइनेंशियल रिसॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल 2017' (FRDI Bill) ला रही है, जो आपके पैसों पर ताला लगाने का काम करेगा. जून में ही सरकार ने इस बिल की मंजूरी दे दी है, जिससे सेविंग बैंक खाताधारकों में चिंता की स्थिति पैदा हो गई है. इस नियम के तहत अगर किसी बैंक के डूबने की स्थिति हो जाती है तो उसे कर्ज से निपटने के लिए खाताधारकों के पैसों को इस्तेमाल करने की इजाजत भी दी जा सकती है. इसका मतलब हुआ कि बैंक आपके द्वारा जमा किए पैसों का एक हिस्सा या पूरा पैसा लॉक कर सकते हैं और उससे आपना कर्ज चुका सकते हैं.
अगर ये लागू हो जाता है तो लोग अपना ही पैसा नहीं निकाल पाएंगे और ये होगा आने वाले समय में लोगों का अपना पैसा ही नहीं निकाल पाएंगे. तो क्या ये 2017 आम आदमी के पैसे के लिए सही रहा? अगर आपकी कोई राय हो तो वो जरूर बताएं...
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कितना सच है कि सरकार हमारा बैंक में जमा पैसा छीनने जा रही है...
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