नवंबर 2016, वो दिन जब लोगों की जेब में पड़े 500 और 1000 के नोट महज कागज का टुकड़ा भर रह गए थे. मोदी सरकार ने 500 और 1000 रुपए के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था. पीएम मोदी ने दावा किया था कि इस अहम कदम से कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी. जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे कालेधन और भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा मानकर लागू की गई नोटबंदी का मूल भी बदल गया. पहले दावा था कि कालाधन बाहर लाएंगे, फिर दावा किया जाने लगा कि डिजिटल इंडिया और कैशलेस इकोनॉमी को नोटबंदी से बढ़ावा मिलेगा. लेकिन अब भारतीय रिजर्व बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उनसे ऐसा लग रहा है कि सरकार अपने किसी भी दावे में सफल नहीं हो पाई है. ये आंकड़े सरकार की नाक में दम करने के लिए काफी हैं.
कैशलेस इकोनॉमी का सपना टूटा !
नोटबंदी के दौरान ऑनलाइन लेन-देन और भुगतान में काफी तेजी देखी गई. माना गया कि देश कैशलेस इकोनॉमी की ओर बढ़ रहा है और डिजिटल इंडिया का सपना साकार हो रहा है. लेकिन अब भारतीय रिजर्व बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं उनके अनुसार नोटबंदी से ठीक पहले जितनी करंसी सर्कुलेशन में थी, लगभग उतनी ही करंसी (99.17%) फरवरी 2018 तक दोबारा सर्कुलेशन में आ चुकी है. तो क्या जो लोग नोटबंदी से पहले कैश में लेन-देन करते थे, अब भी उनमें से अधिकतर लोग कैश में ही लेन-देन कर रहे हैं?
डिजिटल ट्रांजेक्शन बढ़ा है, तो फिर कहां जा रहा है कैश?
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2017 में कुल 106 करोड़ डिजिटल ट्रांजेक्शन हुए. जिनमें 125 लाख करोड़ रुपयों का लेन-देन हुआ. जबकि दिसंबर 2016 में कुल 95.7 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए थे, जिनमें कुल 104 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ था. यानी दिसंबर 2016 में कैश न होने की मजबूरी के बावजूद जितना ऑनलाइन ट्रांजेक्शन हुआ था, उससे...
नवंबर 2016, वो दिन जब लोगों की जेब में पड़े 500 और 1000 के नोट महज कागज का टुकड़ा भर रह गए थे. मोदी सरकार ने 500 और 1000 रुपए के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था. पीएम मोदी ने दावा किया था कि इस अहम कदम से कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी. जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे कालेधन और भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा मानकर लागू की गई नोटबंदी का मूल भी बदल गया. पहले दावा था कि कालाधन बाहर लाएंगे, फिर दावा किया जाने लगा कि डिजिटल इंडिया और कैशलेस इकोनॉमी को नोटबंदी से बढ़ावा मिलेगा. लेकिन अब भारतीय रिजर्व बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उनसे ऐसा लग रहा है कि सरकार अपने किसी भी दावे में सफल नहीं हो पाई है. ये आंकड़े सरकार की नाक में दम करने के लिए काफी हैं.
कैशलेस इकोनॉमी का सपना टूटा !
नोटबंदी के दौरान ऑनलाइन लेन-देन और भुगतान में काफी तेजी देखी गई. माना गया कि देश कैशलेस इकोनॉमी की ओर बढ़ रहा है और डिजिटल इंडिया का सपना साकार हो रहा है. लेकिन अब भारतीय रिजर्व बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं उनके अनुसार नोटबंदी से ठीक पहले जितनी करंसी सर्कुलेशन में थी, लगभग उतनी ही करंसी (99.17%) फरवरी 2018 तक दोबारा सर्कुलेशन में आ चुकी है. तो क्या जो लोग नोटबंदी से पहले कैश में लेन-देन करते थे, अब भी उनमें से अधिकतर लोग कैश में ही लेन-देन कर रहे हैं?
डिजिटल ट्रांजेक्शन बढ़ा है, तो फिर कहां जा रहा है कैश?
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2017 में कुल 106 करोड़ डिजिटल ट्रांजेक्शन हुए. जिनमें 125 लाख करोड़ रुपयों का लेन-देन हुआ. जबकि दिसंबर 2016 में कुल 95.7 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए थे, जिनमें कुल 104 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ था. यानी दिसंबर 2016 में कैश न होने की मजबूरी के बावजूद जितना ऑनलाइन ट्रांजेक्शन हुआ था, उससे ज्यादा दिसंबर 2017 में हुआ.
इसके अलावा यूपीआई भुगतान को सरकार ने बढ़ावा दिया, जिसके चलते दिसंबर 2016 में जहां सिर्फ 20 लाख ट्रांजेक्शन होती थीं, उसकी संख्या दिसंबर 2017 तक 14.55 करोड़ पर पहुंच गई. साल भर में यूपीआई से भुगतान में करीब 7000 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई. दिसंबर 2017 में कुल 1.31 लाख करोड़ रुपए का भुगतान यूपीआई के जरिए हुआ.
अर्थव्यवस्था ने फिर ले लिया पुराना स्वरूप
सरकार ने कैशलेस इकोनॉमी बनाने के लिए भले ही सख्त कदम उठाए, लेकिन नोटबंदी के करीब 15 महीने बाद अर्थव्यवस्था ने दोबारा से वही रूप ले लिया जो पहले था. सवाल उठता है कि कमी कहां रह गई? यहां बात कमी की नहीं है, बल्कि लोगों का कैश का प्रति आकर्षण इसकी सबसे बड़ी वजह है. लोग भले ही ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करने लगे, लेकिन अपने पास कुछ कैश रखना लोगों की आदत में शुमार है. वहीं गांव और असंगठित क्षेत्र में ऑनलाइन भुगतान करने के आसान विकल्प भी मौजूद नहीं हैं, जिसके चलते इकोनॉमी में कैश वापस उतना ही हो गया, जितना नोटबंदी से पहले था. हालांकि, अगर देखा जाए तो पहले जिस तेजी से कैश का सर्कुलेशन बाजार में बढ़ रहा था वह रुक गया और आज भी बाजार में कैश उतना ही है, जितना नोटबंदी से पहले था.
'भ्रष्टाचार' तो अभी तक सता रहा है
नोटबंदी करके भ्रष्टाचार को खत्म करने का दावा तो मोदी सरकार ने कर दिया, लेकिन शायद सरकार को यह अंदाजा नहीं है कि भ्रष्टाचार की जड़ें कहां-कहां तक फैली हैं. नीरव मोदी जैसे लोगों ने भ्रष्टाचार को खत्म करने का भ्रम भी तोड़ दिया. पहले विजय माल्या बैंकों के पैसे लेकर फरार हो गया था, अब नीरव मोदी ने भी पीएनबी को 11,400 करोड़ की चपत लगा दी और रफूचक्कर हो गया. भले ही इनका नोटबंदी के साथ कुछ लेना-देना ना हो, लेकिन नोटबंदी के अहम मुद्दे यानी भ्रष्टाचार से इनका सीधा नाता है.
आईटीआर फाइल करने वाले बढ़े, लेकिन क्या सबने टैक्स दिया?
मोदी सरकार ने दावा किया था कि नोटबंदी की तारीख यानी 9 नवंबर 2016 से लेकर 31 मार्च 2017 तक कुल 1.96 करोड़ रिटर्न फाइल हुए, जबकि उससे पिछले साल इसी अवधि में 1.63 करोड़ आयकर रिटर्न फाइल हुए थे. सरकार का कहना था कि नोटबंदी की वजह से टैक्सपेयर्स की संख्या में इजाफा हुआ है, लेकिन यहां सरकार का 'टैक्सपेयर्स' से मतलब आईटीआर फाइल करने वालों की संख्या से था. आपको बताते चलें कि ये जरूरी नहीं आईटीआर में टैक्स का भुगतान किया जाए. आईटीआर फाइल करने का मतलब है कि आप आयकर विभाग को अपनी कमाई का ब्योरा देते हैं और टैक्स बचत के सारे टूल्स का इस्तेमाल भी करते हैं.
यानी देखा जाए तो मोदी सरकार की नोटबंदी से लोगों को दिक्कतें तो बहुत हुईं, लेकिन लोग सब कुछ सिर्फ पीएम मोदी के दावों के भरोसे झेलते रहे। नीरव मोदी के पीएनबी घोटाले से ये तो साफ हो गया कि भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आई और न ही दावे के अनुसार सीमा पर घुसपैठ रुकी. कालेधन से मुक्ति का दावा तो रिजर्व बैंक के आंकड़ों ने पहले ही धराशायी कर दिया था. बची-खुची कसर करंसी सर्कुलेशन ने निकाल दी और कैशलेस इकोनॉमी का सपना भी टूट गया. यानी देखा जाए तो मोदी सरकार सिर्फ डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देने में कामयाब रही है, बाकी कोई भी दावे धरातल पर नहीं उतर सके. मोदी सरकार को इन आंकड़ों से थोड़ी उलझन जरूर हो सकती है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि अब मोदी सरकार 2000 के नोटों को भी बंद करने की सोच ले.
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