मैन्यूफैक्चिरिंग क्षेत्र को जेट की उड़ान देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी सात दिनों की अमेरिका यात्रा पर हैं. द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के साथ-साथ मोदी की कोशिश सिलिकन वैली में स्थित कंपनियों को भारत में बड़ा निवेश करने के लिए राजी करना है. इसके लिए केन्द्र सरकार दो सूत्री कार्यक्रम की जोरशोर से शुरुआत करने जा रही है- स्टार्ट अप इंडिया और स्टैंड अप इंडिया.
केन्द्र सरकार का मानना है कि स्टार्ट अप इंडिया के जरिए देश में बड़ी संख्या में रोजगार देने वाले उपक्रमों को खड़ा किया जा सकता है. लिहाजा, प्रधानमंत्री मोदी सिलिकन वैली में मौजूद माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और फेसबुक जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों से भारत में बड़ा निवेश कर लगभग 10,000 करोड़ रुपये का स्टार्ट फंड बनाना चाहते हैं जिसकी मदद से देश में स्टार्टअप लगाने के लिए फंडिंग की व्यवस्था की जा सके.
भारतीय कंपनियों की मोदी से उम्मीद
सिलिकन वैली में अपनी अहम मुलाकातों में मोदी गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और फेसबुक समेत कई मल्टीनैशनल कंपनियों के प्रमुखों से मुलाकात कर उन्हें देश में बड़ा फायदा दिखाते हुए बड़ा निवेश करने की वकालत करेंगे. इन मुलाकातों को देखते हुए घरेलू कंपनियों को उम्मीद है कि मोदी इन 6 बातों को पूरी मजबूती के साथ रखेंगे-
1. प्रधानमंत्री मोदी को देश में तेजी से बढ़ रहे स्टार्टअप कल्चर का जिक्र करना चाहिए और सिलिकन वैली का ध्यान ओला, फ्लिपकार्ट और जोमैटो जैसे सफल स्टार्टअप का उदाहरण देते हुए अपनी ओर खीचना चाहिए.
2. देश में स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ाने के लिए अधिक निवेश और फंड लाने की जरूरत है.
3. मोदी को अमेरिका की ज्यादातर टेक कंपनियों और सफल स्टार्टअप का दौरा करना चाहिए और उन्हें एशिया के अन्य देशों के बजाए भारत में बड़ा निवेश करने के लिए राजी करना चाहिए.
4. ग्रीन टेक्नोलॉजी क्षेत्र की मल्टीनैशनल...
मैन्यूफैक्चिरिंग क्षेत्र को जेट की उड़ान देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी सात दिनों की अमेरिका यात्रा पर हैं. द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के साथ-साथ मोदी की कोशिश सिलिकन वैली में स्थित कंपनियों को भारत में बड़ा निवेश करने के लिए राजी करना है. इसके लिए केन्द्र सरकार दो सूत्री कार्यक्रम की जोरशोर से शुरुआत करने जा रही है- स्टार्ट अप इंडिया और स्टैंड अप इंडिया.
केन्द्र सरकार का मानना है कि स्टार्ट अप इंडिया के जरिए देश में बड़ी संख्या में रोजगार देने वाले उपक्रमों को खड़ा किया जा सकता है. लिहाजा, प्रधानमंत्री मोदी सिलिकन वैली में मौजूद माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और फेसबुक जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों से भारत में बड़ा निवेश कर लगभग 10,000 करोड़ रुपये का स्टार्ट फंड बनाना चाहते हैं जिसकी मदद से देश में स्टार्टअप लगाने के लिए फंडिंग की व्यवस्था की जा सके.
भारतीय कंपनियों की मोदी से उम्मीद
सिलिकन वैली में अपनी अहम मुलाकातों में मोदी गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और फेसबुक समेत कई मल्टीनैशनल कंपनियों के प्रमुखों से मुलाकात कर उन्हें देश में बड़ा फायदा दिखाते हुए बड़ा निवेश करने की वकालत करेंगे. इन मुलाकातों को देखते हुए घरेलू कंपनियों को उम्मीद है कि मोदी इन 6 बातों को पूरी मजबूती के साथ रखेंगे-
1. प्रधानमंत्री मोदी को देश में तेजी से बढ़ रहे स्टार्टअप कल्चर का जिक्र करना चाहिए और सिलिकन वैली का ध्यान ओला, फ्लिपकार्ट और जोमैटो जैसे सफल स्टार्टअप का उदाहरण देते हुए अपनी ओर खीचना चाहिए.
2. देश में स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ाने के लिए अधिक निवेश और फंड लाने की जरूरत है.
3. मोदी को अमेरिका की ज्यादातर टेक कंपनियों और सफल स्टार्टअप का दौरा करना चाहिए और उन्हें एशिया के अन्य देशों के बजाए भारत में बड़ा निवेश करने के लिए राजी करना चाहिए.
4. ग्रीन टेक्नोलॉजी क्षेत्र की मल्टीनैशनल कंपनियों का भारत आने और बड़ा निवेश करने का रास्ता आसान करने की जरूर पर जोर देना.
5. भारत में स्टार्टअप लगाने की प्रक्रिया को सरल करने की जरूरत है. इसके लिए जल्द से जल्द जीएसटी जैसे टैक्स सुधार और बैंकरप्सी कानून को सररल बनाने की जरूरत है. इसे न सिर्फ स्टार्टअप लगाने में आसानी होगी बल्कि विफल हुए स्टार्टअप को बंद करना भी आसान हो जाएगा.
6. भारत में स्टार्टअप लगाने के लिए टैक्स अवकाश (कम से कम दो वर्ष) की घोषणा पहला साहसिक कदम हो सकता है. इससे विदेशी निवेशकों को अपना पैसा सीधे भारत में निवेश करने का मौका मिलेगा और टैक्स छूट की घोषणा उन्हें ऐसा करने के लिए आकर्षित करेगी.
चीन की मंदी को भूलने की जरूरत
केन्द्र सरकार की योजना के मुताबिक स्टार्टअप इंडिया के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में समग्र विकास के लिए स्टैंडअप इंडिया को भी तरजीह दी जानी है. स्टैंडअप इंडिया के तहत देश में एन्त्रोप्रोन्योरशिप को बढ़ावा देने के लिए देश के स्कूल और कॉलेज शिक्षा में सुधार करना है. इसके जरिए मेधावी छात्रों को शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी के बजाए स्टार्टअप लगाने के लिए प्रोत्साहित करना और उसके लिए बैंक फाइनेंसिंग की सुविधा उपलब्ध कराना है.
इस काम के लिए प्रधानमंत्री मोदी को सिलिकन वैली में कुछ नहीं मिलेगा. इसके लिए हमें जरूरत है कि कुछ समय के लिए चीन में जारी मंदी को भूलने की. हाल में आई मैकेन्जी ग्लोबल की रिपोर्ट के मुताबिक मैन्यूफैक्चरिंग पॉवरहाउस बनने के बाद अब चीन ग्लोबल स्तर पर इनोवेशन पॉवरहाउस बन चुका है. आज के चीन में निजी क्षेत्र की कंपनियां अपनी इनोवेशन क्षमता से न सिर्फ रेवेन्यू में इजाफा कर रहीं है बल्कि अपने प्रॉफिट में भी कई गुना बढोत्तरी कर रही हैं.
चीन कैसे बना ग्लोबल इनोवेशन हब
पीडब्लूसी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में चीन की निजी कंपनियों ने रिसर्च और डिजाइन में ग्लोबल प्रतिद्वंदियों से ज्यादा निवेश किया है. इसके चलते आज चीन की कंपनियों पर टेक्नोलॉजी की चोरी कर थोक में मैन्यूफैक्चरिंग करने का आरोप नहीं लगाया जा सकता. पीडब्लूसी के आंकडे साफ दिखाते हैं कि इनोवेशन के मामले में चीन की कंपनियां भी सिलिकन वैली में स्थित कंपनियों की बराबरी पर खड़ी हैं. आंकड़ों के मुताबिक-
1. पिछले एक दशक में चीन ने रिसर्च और डिजाइन और शिक्षा में बड़ा निवेश किया है.
2. विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2012 में चीन ने अपनी जीडीपी का 1.98 फीसदी आरएंडडी पर खर्च किया.
3. चीन लक्ष्य है कि वह साल 2022 तक अमेरिका के आरएंडडी खर्च (जीडीपी का 2.8 फीसदी) की बराबरी कर ले.
4. चीन की मोबाइल कंपनी हुआवी अमेरिकी कंपनी एरिक्सन के बराबर 5 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष आरएंडडी पर खर्च करती है.
5. मोबाइल टेक्नोलॉजी में 5जी कंम्यूनिकेशन की तैयारी में चीन अमेरिका को पीछे छोड़ सकता है.
6. भारत अपनी जीडीपी का महज 0.9 फीसदी आरएंडडी पर खर्च करता है लिहाजा टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट में उसकी निर्भरता दूसरे देशों पर लगातार बढ़ रही है.
चीन की राह पर ही होगा स्टैंडअप इंडिया
भारतीय कंपनियां रिसर्च और डिजाइन पर बहुत कम खर्च करती है. आमतौर पर देखा गया है कि भारतीय कंपनियां आरएंडडी पर खर्च का प्रस्ताव महज टैक्स में छूट पाने के लिए करती हैं. जबकि देश को ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने के लिए जरूरी है आरएंडडी पर जोर दिया जाए. इसके लिए देश के विश्वविद्यालयों और कंपनियों में अमिरका और चीन की कंपनियों की तर्ज पर मजबूत आरएंडडी की स्थापना की जानी चाहिए. कंपनियों के आरएंडडी को कॉलेज और युनिवर्सिटी की रिसर्च के साथ जोड़ने की जरूरत है जबकि मौजूदा समय में ज्यादातर रिसर्च सरकारी लैवोरेटरी में की जाती है जो की बाजार की जरूरतों के लिए प्रभावी नहीं है.
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