प्रधानमंत्री मोदी ने देश में 500 और 1000 रुपये की नोट को जैसे ही गैरकानूनी घोषित किया, आपने और हमने सबसे पहले अपनी पॉकेट में झांका. कुछ ने तिजोरी तो कुछ ने गद्दों और घर के बेसमेंट में बोरों तक को खंगाला. सबने देखा कि आखिर कितने 1000 और 500 के नोट है उनके पास हैं. फिर सवाल कि कैसे इन नोटों से जल्द से जल्द पिंड छुड़ाया जाए?
पिंड छुड़ाने के चुटकुलों से बाजार गर्म हो रहा था. फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्स एप चुटकुलों का संचार कर रहे थे- आप और हम उन चुटकुलों में सार्थकता खोज रहे थे. शायद इन चुटकुलों का कोई दांव सटीक पड़ जाए और आप मध्यरात्रि को रद्दी होने वाले नोटों में कुछ को तो भुना लें.
जिसके गले जितना बड़ा फंदा था वह रातोरात उतना बड़ा रिस्क लेने के लिए तैयार बैठा था. कहीं पर पता चला कि किसी ज्वैलर ने सोना खरीदने की तरकीब सुझाई है. शहर के नामी-गिरामी ज्वैलरों के यहां सोने की डिमांड बढ़ गई. बाजार भाव से ऊपर सोना बिकने की खबर आने लगी. जिसे सोना है सदा के लिए का फॉर्मूला भाया उसने खरीद लिया सोने की गिन्नी, सिक्का और बिस्कुट ज्वैलरी.
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सुबह बुलियन मार्केट खुलते ही रातभर चली इस कवायद का असर दिखा. आनन-फानन में सोने की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों से लगभग 3000 रुपये ऊपर तय कर दी गई. क्योंकि इस नई कीमत पर रातभर सोना खूब बिका. लेकिन भाव की सरकारी वृद्धि हो जाने के बाद इस तरकीब से 500 और 1000 की नोट पर बट्टा बढ़ गया. भाव देखें तो 1000 रुपये के बदले महज 900 रुपये का सोना मिला. सौ रुपये बट्टे के चले गए. लेकिन जैसे ही सुबह सोने के दाम में इजाफा किया गया वह 900 रुपये का सोना और घटा और घटकर महज 750-800 रुपये का रह गया.
अब भगवान भी नहीं लेगा चढ़ावे में आपका कालाधन |
फिर 500 और 1000 रुपये को बंद करने की घोषणा को 24 घंटे हो गए. परेशान होकर कुछ लोगों को भगवान की याद आ गई. किसी नई तरकीब के लिए लोग ऊपर वाले को याद करने लगे. इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में आस्था और आशीर्वाद का सबसे बड़ा रीटेलर मंदिर है. कैश फ्लो लगातार बना रहता है. मुसीबत के दिनों में चढ़ावा भी बढ़ जाता है. खासबात यह कि यहां नोट के बदले न सोना मिलता है और न ही लड्डू. मिलता है तो सिर्फ आशीर्वाद- दूधो नहाओ पूतो फलो. लेकिन जब ये नहाना और फूलना ही मूसीबत बन गई तो डील भगवान से भी शुरू हो गई.
मंदिरों में चढ़ावे की कोई रेट लिस्ट नहीं होती. आप स्वेच्छा से दान पात्र में भी डालते हैं और आरती के थाल में भी. आपके पास 500 का नोट है और आप दानपात्र या थाल में सिर्फ 100 रुपये डालना चाहता है तो मंदिर सेवक या पुजारी आपको बाकी पैसा रिफंड कर देगा. लेकिन हिसाब-किताब जब 500 और 1000 की बहुत ज्यादा नोटों का हो पुजारी से कुछ डायरेक्ट डील की जरूरत पड़ेगी.
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देश का संविधान आपकी सरकार को धर्म की स्वतंत्रता और लोगों की आस्था के नाम पर मंदिरों के कामकाज से दूर ही रखता है. मंदिरों में भक्तों की बड़ी भीड़ हो तो चढ़ावा भी करोड़ों में पहुंच जाता है. लेकिन आजादी के बाद से जिस गति से हमारी जनसंख्या बढ़ी उससे कहीं ज्यादा तेज मंदिरों का चढ़ावा बढ़ा. अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार का बड़ा दीमक फैलता गया. मंदिर भी ट्रस्टी हो गए. साथ में उसे एक व्यवहारिक लाइसेंस मिल गया जिससे कालेधन को सफेद करने का करिश्मा होने लगा. इस करिश्में के लिए आपको बस करना इतना था कि 500 और 1000 रुपये के नोटों से भरे अपने बैग को दानपात्र में डाल दें. या बातचीत कर उसे आरती के थाल में डाल दें. अगले दिन वह पैसा बैंक पहुंच जाएगा और मंदिरों की अर्जित आय के रूप में व्हाइट मनी कहलाएगा. फिर यह उस मंदिर या ट्रस्ट पर छोड़ दिया जाएगा कि वह अपनी आय से धर्म का विस्तार करें.
धर्म का यह काम भी ज्यादा देर तक नहीं चल पाया. देश में सैकड़ों मंदिरों के बैंकों के जारिए जानकारी दी गई कि मंदिरों द्वारा बड़ी संख्या में 500 और 1000 रुपये के नोट जमा कराए जा रहे हैं. इसे देखते हुए देश में सभी बड़े ट्रांजैक्शन (रुपया निकालना और जमा करना, रुपया लेना और रुपया देना) पर निगरानी तेज कर दी गई है. मंदिरों के अंदर चल रहे इस खेल से नाराज भगवान भी अब सख्त निर्देश दे चुके होंगे कि भक्तों से चढ़ावे में 500 और 1000 रुपये के नोट पर प्रतिबंध लगा दो.
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