गूगल सर्विसेज को प्रचारित करने का आईडिया तो सही है, लेकिन अपने फीचर को लोगों को दिखाने के लिए प्रिंट मीडिया को नीचा दिखाना कहां तक तर्कसंगत है, समझ से परे है.
मीडिया जगत में पहले से ही प्रिंट कई चुनौतियों से लड़ रहा है. कई प्रतिष्ठित अखबारों ने अपने कई संस्करण बंद कर दिए हैं. प्रिंट मीडिया में कार्यरत कई लोगों को इसका दंश बेरोजगारी के रूप में झेलना भी पड़ रहा है. ऐसे में आजकल ट्रेंड कर रहा गूगल एड अखबार और प्रिंट मीडिया के लिए और भी घातक सिद्ध हो सकता है.
इस गूगल एड की शुरुआत में दिखाया गया है कि एक व्यक्ति हाथ में अखबार लेकर पढ़ने की कोशिश करता ही है कि पीछे बैठा युवक सभी हेडलाइन्स को पहले ही पढ़ लेता है. ऐसे में उस व्यक्ति को महसूस होता है कि चोरी से वह युवक उसका अखबार पढ़ रहा है. फिर दिखाया जाता है कि युवक सभी खबरों को बगैर अखबार के गूगल एप के जरिये आसानी से पढ़ लेता है. बता दें कि इस एड को यूट्यूब पर फिलहाल करीब 37 लाख लोग देख चुके हैं.
गूगल सर्विसेज को प्रचारित करने का आईडिया तो सही है, लेकिन अपने फीचर को लोगों को दिखाने के लिए प्रिंट मीडिया को नीचा दिखाना कहां तक तर्कसंगत है, समझ से परे है. संचार क्रांति के दौर में धीरे धीरे प्रिंट कि अहमियत को बचाए रखना मीडिया जगत के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है.
ऐसे समय में यह गूगल एड कहीं न कहीं प्रिंट एक्सपर्ट्स के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है.
मीडिया जगत में पहले से ही प्रिंट कई चुनौतियों से लड़ रहा है. कई प्रतिष्ठित अखबारों ने अपने कई संस्करण बंद कर दिए हैं. प्रिंट मीडिया में कार्यरत कई लोगों को इसका दंश बेरोजगारी के रूप में झेलना भी पड़ रहा है. ऐसे में आजकल ट्रेंड कर रहा गूगल एड अखबार और प्रिंट मीडिया के लिए और भी घातक सिद्ध हो सकता है.
इस गूगल एड की शुरुआत में दिखाया गया है कि एक व्यक्ति हाथ में अखबार लेकर पढ़ने की कोशिश करता ही है कि पीछे बैठा युवक सभी हेडलाइन्स को पहले ही पढ़ लेता है. ऐसे में उस व्यक्ति को महसूस होता है कि चोरी से वह युवक उसका अखबार पढ़ रहा है. फिर दिखाया जाता है कि युवक सभी खबरों को बगैर अखबार के गूगल एप के जरिये आसानी से पढ़ लेता है. बता दें कि इस एड को यूट्यूब पर फिलहाल करीब 37 लाख लोग देख चुके हैं.
गूगल सर्विसेज को प्रचारित करने का आईडिया तो सही है, लेकिन अपने फीचर को लोगों को दिखाने के लिए प्रिंट मीडिया को नीचा दिखाना कहां तक तर्कसंगत है, समझ से परे है. संचार क्रांति के दौर में धीरे धीरे प्रिंट कि अहमियत को बचाए रखना मीडिया जगत के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है.
ऐसे समय में यह गूगल एड कहीं न कहीं प्रिंट एक्सपर्ट्स के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.