भारत जैसे विशालकाय देश का बजट. कॉर्पोरेट और निवेशकों के अलावा आम-आदमी के मन में उत्सुकता रहती है. कौन सा टैक्स उसकी जेब पर क्या असर डालेगा. कौन सी चीजें सस्ती होंगी, कौन सी महंगी. लेकिन पिछले दो साल बजट के स्वरूप में आ रहे बदलाव ने इस रोमांच को लगभग खत्म कर दिया है.
तीन दिन बजट का ही माहौल रहता था. पहले दिन रेल बजट पेश होता था. फिर लोग उसे लेकर चर्चा करते थे. अगले दिन सरकार आर्थिक सर्वे पेश करती थी, जिसके बाद असली माहौल तैयार होता था बजट का. बजट सुनने की ललक लोगों की आंखों में दिखती थी. बजट को लेकर लोगों का उत्साह भी अखबारों की सुर्खियां बन जाया करना था. लेकिन आम आदमी से लेकर नौकरीपेशा और कारोबारियों तक के लिए बेहद अहम ये बजट कब लोगों की चाहत से दूर होता गया, पता ही नहीं चला. अब बजट को लेकर लोगों में न तो पहले जैसी बहस देखने को मिलती है, ना ही चाय-पकौड़े की दुकानों पर कोई सस्ते-महंगे का जिक्र करता हुआ नजर आता है. इस बार का बजट तो और भी फीका रहने की उम्मीद है, क्योंकि जीएसटी लागू होने की वजह से बजट स्पीच का एक पूरा हिस्सा ही खत्म हो गया है और उसकी जगह जीएसटी आ गया है. आखिर अब बजट में पहले वाली बात क्यों नहीं रही? क्या कारण है कि इसे सुनने वाले लोग कम हो रहे हैं? आइए आपको बताते हैं क्यों फीकी पड़ती जा रहा है बजट को जानने और सुनने की चाहत.
सस्ता-महंगा का किस्सा अब जीएसटी काउंसिल के हवाले
क्या महंगा हुआ, क्या सस्ता हुआ, ये बताने वाला बजट का सबसे अहम हिस्सा होता था पार्ट-बी. मोदी सरकार ने जुलाई 2017 में जीएसटी लागू कर के अधिकतर अप्रत्यक्ष कर खत्म कर दिए, जो अभी...
भारत जैसे विशालकाय देश का बजट. कॉर्पोरेट और निवेशकों के अलावा आम-आदमी के मन में उत्सुकता रहती है. कौन सा टैक्स उसकी जेब पर क्या असर डालेगा. कौन सी चीजें सस्ती होंगी, कौन सी महंगी. लेकिन पिछले दो साल बजट के स्वरूप में आ रहे बदलाव ने इस रोमांच को लगभग खत्म कर दिया है.
तीन दिन बजट का ही माहौल रहता था. पहले दिन रेल बजट पेश होता था. फिर लोग उसे लेकर चर्चा करते थे. अगले दिन सरकार आर्थिक सर्वे पेश करती थी, जिसके बाद असली माहौल तैयार होता था बजट का. बजट सुनने की ललक लोगों की आंखों में दिखती थी. बजट को लेकर लोगों का उत्साह भी अखबारों की सुर्खियां बन जाया करना था. लेकिन आम आदमी से लेकर नौकरीपेशा और कारोबारियों तक के लिए बेहद अहम ये बजट कब लोगों की चाहत से दूर होता गया, पता ही नहीं चला. अब बजट को लेकर लोगों में न तो पहले जैसी बहस देखने को मिलती है, ना ही चाय-पकौड़े की दुकानों पर कोई सस्ते-महंगे का जिक्र करता हुआ नजर आता है. इस बार का बजट तो और भी फीका रहने की उम्मीद है, क्योंकि जीएसटी लागू होने की वजह से बजट स्पीच का एक पूरा हिस्सा ही खत्म हो गया है और उसकी जगह जीएसटी आ गया है. आखिर अब बजट में पहले वाली बात क्यों नहीं रही? क्या कारण है कि इसे सुनने वाले लोग कम हो रहे हैं? आइए आपको बताते हैं क्यों फीकी पड़ती जा रहा है बजट को जानने और सुनने की चाहत.
सस्ता-महंगा का किस्सा अब जीएसटी काउंसिल के हवाले
क्या महंगा हुआ, क्या सस्ता हुआ, ये बताने वाला बजट का सबसे अहम हिस्सा होता था पार्ट-बी. मोदी सरकार ने जुलाई 2017 में जीएसटी लागू कर के अधिकतर अप्रत्यक्ष कर खत्म कर दिए, जो अभी तक बजट स्पीच का पार्ट-बी हिस्सा हुआ करता था. बजट स्पीच का यही वो हिस्सा है, जिसे लेकर कई दिनों तक लोग सस्ते-महंगे की चर्चा किया करते थे. लेकिन अब जब जीएसटी ने अधिकतर अप्रत्यक्ष करों को खत्म कर दिया है, तो पार्ट-बी हिस्सा भी लगभग खत्म ही हो चुका है. इसमें सिर्फ एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी और पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर लगने वाले वैट का ही जिक्र होगा. यानी इस बार पार्ट-बी में आम आदमी के मतलब की सिर्फ एक चीज होगी और वो है डीजल-पेट्रोल. जीएसटी लागू होने के बाद मोदी सरकार का यह पहला बजट होगा और उम्मीद की जा रही है कि पार्ट बी खत्म होने की वजह से इस बार की बजट स्पीच भी बेहद छोटी होगी.
रेल बजट में भी कुछ खास नहीं होता
एक वक्त था कि रेल बजट और आम बजट अलग-अलग पेश किए जाते थे. उस दौरान रेल बजट में किराया घटाने-बढ़ाने, नई ट्रेन चलाने, ट्रेनों में नई सुविधाएं देने और भी कई तरह की घोषणाएं अलग-अलग की जाती थीं. लेकिन अब रेल बजट में भी इस तरह की घोषणाएं बहुत ही कम होती हैं. अब रेल के किराए का बढ़ना-घटना या फिर किसी नई ट्रेन के चलने की घोषणा होना सिर्फ बजट वाले दिन का मोहताज नहीं है. अब पूरे साल में कभी भी किराए में बढोत्तरी हो जाती है और कभी भी नई ट्रेन चलाने की भी घोषणा हो जाती है.
आयकर है काम का, लेकिन उम्मीद बेकार !
अंत में बजट में बचता है तो सिर्फ आयकर, जिससे नौकरीपेशा लोगों को कुछ उम्मीदें होती हैं. लेकिन अपनी मेहनत से कमाए पैसों पर टैक्स बचाने की उम्मीद में टकटकी लगाए नौकरीपेशा लोग भी बजट को सुनने के बाद मायूस ही नजर आते हैं. पिछले कुछ सालों में ये देखा गया है कि बजट में आयकर से जुड़ी घोषणाएं भी कुछ खास नहीं होती हैं. वित्त वर्ष 2014-15 में टैक्स फ्री इनकम की सीमा को 2 लाख रुपए से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए किया गया था. उसके बाद से आयकर को लेकर कोई बड़ी घोषणा देखने को नहीं मिली है. हर बार बस एक उम्मीद के साथ बजट आता है और जैसे बिना कोई तोहफा दिए ठेंगा दिखाकर ही चला जाता है.
पहले बजट में यह बात काफी अच्छे से बताई जाती थी कि किसी सेक्टर में पैसों का आवंटन कैसे किया गया है. सेक्टर के अंदर की अलग-अलग कैटेगरी में लगाए जाने वाले पैसों की भी जानकारी दी जाती थी. लेकिन अब सिर्फ सेक्टर के हिसाब से यह बताया जाता है कि कितने पैसों का आवंटन किया गया है. इसमें किस कैटेगरी को क्या मिलेगा, ये सब जानने के लिए अगले दिन का अखबार ही पढ़ना पड़ता है.
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