तीन अहम राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आने के एक दिन पहले ही आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया है. तत्काल प्रभाव से पद छोड़ देने की बात कहकर पटेल ने सरकार को शॉक ही दिया है. अपने स्टेटमेंट में उर्जित पटेल ने कहा कि, 'कुछ निजी कारणों से मैं अपने मौजूदा पद से इस्तीफा दे रहा हूं और ये तत्काल प्रभाव से लागू होगा. ये मेरे लिए सौभाग्य और गर्व की बात थी कि मैंने रिजर्व बैंक में इतने साल अलग-अलग पदों पर काम किया. आरबीआई के स्टाफ, ऑफिसर्स और मैनेजमेंट का कड़ा परिश्रम और सहयोग पिछले कुछ वर्षों की आरबीआई की कई उपलब्धियों का कारण रहा है. मैं अपने सभी साथियों, डायरेक्टरों और आरबीआई सेंट्रल बोर्ड का आभारी हूं और उनके अच्छे भविष्य की कामना करता हूं.'
1935 से लेकर अभी तक आरबीआई ने 24 गवर्नर देखे हैं. आरबीआई गवरनर का कार्यकाल सिर्फ 3 साल का होता है और अभी भी उर्जित पटेल के कार्यकाल के 9 महीने बचे हुए थे. पर पहले दिया गया उनका इस्तीफा ये बताता है कि कहीं न कहीं सरकार और उनके बीच सबकुछ ठीक नहीं था. 90 के दशक के बाद ये पहले गवर्नर हैं जिन्होंने इस्तीफा दिया है.
उर्जित पटेल अपने इस इस्तीफे की वजह को 'निजी' कहकर किसी तरह का विवाद खड़ा करने से बच रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से जो आरबीआई और सरकार के बीच जो कुछ भी चल रहा था वो देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि उनके लिए गवर्नर पद पर काम करना मुश्किल हो गया होगा.
उर्जित पटेल का कार्यकाल तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है, जहां वो बेहद कम समय में सरकार के चहेते गवर्नर से हटकर आंख की किरकिरी बन गए.
1. एक दौर, जब उर्जित पटेल को 'गुजराती' गवर्नर माना गया-
मूलत: गुजराती परिवार से ताल्लुक रखने वाले...
तीन अहम राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आने के एक दिन पहले ही आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया है. तत्काल प्रभाव से पद छोड़ देने की बात कहकर पटेल ने सरकार को शॉक ही दिया है. अपने स्टेटमेंट में उर्जित पटेल ने कहा कि, 'कुछ निजी कारणों से मैं अपने मौजूदा पद से इस्तीफा दे रहा हूं और ये तत्काल प्रभाव से लागू होगा. ये मेरे लिए सौभाग्य और गर्व की बात थी कि मैंने रिजर्व बैंक में इतने साल अलग-अलग पदों पर काम किया. आरबीआई के स्टाफ, ऑफिसर्स और मैनेजमेंट का कड़ा परिश्रम और सहयोग पिछले कुछ वर्षों की आरबीआई की कई उपलब्धियों का कारण रहा है. मैं अपने सभी साथियों, डायरेक्टरों और आरबीआई सेंट्रल बोर्ड का आभारी हूं और उनके अच्छे भविष्य की कामना करता हूं.'
1935 से लेकर अभी तक आरबीआई ने 24 गवर्नर देखे हैं. आरबीआई गवरनर का कार्यकाल सिर्फ 3 साल का होता है और अभी भी उर्जित पटेल के कार्यकाल के 9 महीने बचे हुए थे. पर पहले दिया गया उनका इस्तीफा ये बताता है कि कहीं न कहीं सरकार और उनके बीच सबकुछ ठीक नहीं था. 90 के दशक के बाद ये पहले गवर्नर हैं जिन्होंने इस्तीफा दिया है.
उर्जित पटेल अपने इस इस्तीफे की वजह को 'निजी' कहकर किसी तरह का विवाद खड़ा करने से बच रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से जो आरबीआई और सरकार के बीच जो कुछ भी चल रहा था वो देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि उनके लिए गवर्नर पद पर काम करना मुश्किल हो गया होगा.
उर्जित पटेल का कार्यकाल तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है, जहां वो बेहद कम समय में सरकार के चहेते गवर्नर से हटकर आंख की किरकिरी बन गए.
1. एक दौर, जब उर्जित पटेल को 'गुजराती' गवर्नर माना गया-
मूलत: गुजराती परिवार से ताल्लुक रखने वाले उर्जित पटेल का परिवार यूं तो नामीबिया में रहता था. और उनकी पढ़ाई भी लंदन, अमेरिका सहित कई जगह हुई, लेकिन जब उन्हें आरबीआई गवर्नर बनाया गया तो यही माना गया कि मोदी सरकार ने एक गुजराती को देश का सबसे बड़ा बैंकर नियुक्त किया है. ये चर्चाएं इसलिए भी तेज थीं क्योंकि 4 सितंबर 2016 को रघुराम राजन ने बड़े अनमने भाव से गवर्नर का पद छोड़ा था. उर्जित पटेल डेप्युटी गवर्नर के तौर पर आरबीआई से जुड़े हुए थे और मॉनिटरी पॉलिसी, इकोनॉमिक पॉलिसी रिसर्च, स्टेटिस्टिक्स एंड इन्फोर्मेशन मैनेजमेंट, डिपॉजिट इंश्योरेंस आदि का काम देखा करते थे. सरकार की ओर से तर्क दिया गया था कि उर्जित पटेल का IMF (इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड) से जुड़ाव रहा है, इसलिए वे यह जिम्मेदारी निभाने के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं.
2. नोटबंदी के दौर में सरकार के लिए लाड़ले, आलोचकों के लिए विलेन
आरबीआई के गवर्नर बनने के बाद उर्जित पटेल को सरकार का सबसे चहेता गवर्नर कहा जाता था. ये बातें नोटबंदी के दौरान आरबीआई और उर्जित पटेल के कामकाज को देखकर काफी हद तक सही भी साबित होने लगीं. पटेल के गवर्नर बनने के दो महीने के अंदर ही नोटबंदी का फैसला लागू कर दिया गया. इतने बड़े आर्थिक फैसले को लेकर आरबीआई की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. नोटबंदी का सारा सस्पेंस अपने भीतर समेट उर्जित पटेल किसी भी तरह के सवाल से बचते रहे. गुजरात में एक कार्यक्रम के दौरान जब उनसे सवाल करने के लिए पत्रकार इंतजार कर रहे थे, तो पटेल पिछले दरवाजे से निकल गए.
उर्जित पटेल की इसलिए भी आलोचना हो रही थी कि आरबीआई के स्वतंत्र संस्था होने के बावजूद वे सरकार के इशारे पर ही काम कर रहे थे. नोटबंदी से क्या फायदा हुआ, क्या नहीं, इसका जवाब उन्होंने कभी सीधे पर नहीं दिया. नोटबंदी से बैंकों के कामकाज पर क्या असर पड़ा, ये भी गवर्नर रहते उर्जित पटेल ने नहीं बताया. काफी समय तक यही बातें चलती रहीं कि आरबीआई की तरफ से सरकार का विरोध अब बंद हो गया है और भले ही कितना भी नुकसान झेला जाए.
3. और, फिर उर्जित पटेल सरकार विरोधी हो गए
नोटबंदी ने बैंकों में कैश तो ला दिया, लेकिन बाजार की आर्थिक चाल को बनाए रखने के लिए कैश का संकट खड़ा होने लगा. बैंकों को कैश से मजबूत करने के लिए सरकार ने उर्जित पटेल पर दबाव बनाना शुरू किया. सीनियर इकोनॉमिक जर्नलिस्ट पूजा मेहरा सरकार और उर्जित पटेल के बीच खींचतान की वजह कुछ यूं बताती हैं- 'नोटबंदी के बाद करंसी प्रिंटिंग कॉस्ट ज्यादा बढ़ गई, उसी कारण सरकार का डिविडेंड (लाभांश) कम हो गया और वहीं से सारी समस्या की शुरुआत हुई.' आरबीआई की तरफ से फाइनेंस मिनिस्ट्री को अगस्त में 50,000 करोड़ रुपए का डिविडेंड देने की बात पर स्वीकृति तो दे दी गई थी लेकिन सरकार इससे खुश नहीं थी. उसके बाद आया था फाइनेंस मिनिस्ट्री का वह प्रपोजल जिसमें कहा गया था कि आरबीआई के खजाने में मौजूद अतिरिक्त 3.6 लाख करोड़ रुपए सरकार को ट्रांसफर कर दिए जाएं. आरबीआई से इस पर समर्थन न मिलने पर दोनों के बीच विरोध चरम पर पहुंच गया. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तो स्पष्ट रूप से ऐसे नियमों की जरूरत का जिक्र किया, जिसके तहत आरबीआई के पास फंड रखने की सीमा तय की जा सके. सरकार ने पिछले महीने नवंबर में अप्रत्याशित रूप से RBI एक्ट सेक्शन 7 लागू कर दिया. ये वो सेक्शन है जो सरकार को आरबीआई के कामों में दखलअंदाजी करने की छूट देता है.
जेटली ने ये भी कहा था कि सरकार कोई सीमा नहीं पार कर रही है ये जानी पहचानी बात है कि इससे पहले भी कई सरकारों ने आरबीआई गवर्नरों को इस्तीफा देने पर मजबूर भी किया है और उनका कार्यकाल खत्म भी किया है.
अरुण जेटली का ये बयान उर्जित पटेल पर दबाव को समझने के लिए काफी है. 19 नवंबर को आरबीआई बोर्ड मीटिंग में सरकार और आरबीआई दोनों बैठे. बैठक के बाद जिस तरह की तस्वीर पेश की गई, उससे यही लगा कि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है. सरकार और आरबीआई के आलोचक रहे पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी राहत जताते हुए कहा कि मैं खुश हूं कि सरकार ने अपने कदम पीछे ले लिए और अनेच्छा से ही सही, ये तय कर लिया कि आरबीआई की स्वतंत्रता जरूरी है.
लेकिन अब उर्जित पटेल का इस्तीफा देखकर लग रहा है जैसे सरकार और आरबीआई के बीच जो समझौता था, वह अस्थायी था. शायद विधानसभा चुनाव की पोलिंग खत्म होने का ही इंतजार था. कयास लगाया जा रहा है कि यदि उर्जित पटेल वोटिंग से पहले इस्तीफा देते तो वह बीजेपी के खिलाफ चुनावी मुद्दा बन सकता था.
उर्जित पटेल के इस्तीफे पर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री की प्रतिक्रिया
इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी और अरुण जेटली ने ट्वीट कर उर्जित पटेल को भविष्य के लिए शुभकामनाएं भी दे दीं.
पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की राय कुछ और है...
उर्जित पटेल के इस्तीफे के तुरंत बाद ही टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में रघुराम राजन ने कहा कि अब सभी को चिंता करने की जरूरत है. क्या वाकई ऐसा समय आ गया है कि अब चिंता की जाए? सरकार का ये फैसला कितना सही माना जाए?
तो क्या अगला नंबर विरल आचार्य का है?
उर्जित पटेल का इस्तीफा आते ही ये खबर उड़ गई कि आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने भी त्यागपत्र दे दिया है. पिछले दिनों सरकार और आरबीआई के बीच हुए टकराव के दौरान आचार्य ने सरकार की तीखी आलोचना की थी. उन्होंने 26 नवंबर को एक स्पीच में कहा था कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता खत्म करने के परिणाम घातक हो सकते हैं.
आचार्य बता रहे थे कि केंद्रीय बैंक के रिजर्व से जरूरत से ज्यादा पैसा सरकार के पास ट्रांसफर करने में क्या खतरा है. अर्जेंटीना का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 6.6 बिलियन डॉलर का ऐसा ही एक ट्रांसफर उस देश के इतिहास की सबसे बड़ी संवैधानिक आपदा को जन्म दे चुका है.
इस पर अरुण जेटली ने सिर्फ इतना ही कहा कि कभी-कभी अप्रिय सुझाव मिलें तो एक जिम्मेदार सरकार के नाते हम उसे विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर सकते हैं.
ऐसे में कहा जा सकता है उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद सरकार का और आरबीआई के बीच का विवाद खत्म नहीं हुआ हो. आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में सरकार की राय से इत्तेफाक न रखने वाले आरबीआई के और भी वरिष्ठ अधिकारियों को फैसला करने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
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