बहुत से लोगों को वोडाफोन (Vodafone) का हो दौर शायद ही याद हो, जब वह वोडाफोन नहीं, बल्कि हच हुआ करता था. तभी से इसके विज्ञापनों में पग का इस्तेमाल होता आ रहा है. हच यानी वोडाफोन तो तभी से बहुत सो लोगों का फेवरेट हो गया था. वोडाफोन ने खुद को यही कहते हुए स्थापित किया कि आप जहां-जहां जाएंगे, हमारा नेटवर्क आपको फॉलो करेगा. वोडाफोन में वो बात थी भी, लेकिन 5 सितंबर 2016 को बाजार में रिलायंस जियो (Reliance Jio) ने एंट्री की. उस दिन के बाद से न केवल वोडाफोन, बल्कि सभी टेलिकॉम (Telecom) कंपनियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा. देखते ही देखते कई छोटी टेलिकॉम कंपनियां बंद भी हो गईं. यहां तक कि वोडाफोन को भी आइडिया के सहारे की जरूरत पड़ गई, क्योंकि इसके लिए अकेले खड़े होना मुश्किल पड़ रहा था. अब सुनने में आ रहा है कि वोडाफोन बोरिया बिस्तरा बांधकर भारत छोड़कर वापस जा सकता है. कुछ भी हो, लेकिन वोडाफोन को बंद नहीं होना चाहिए. और कुछ नहीं तो कंपनियों का कॉम्पटीशन जिंदा रखने के लिए ही इस विदेशी टेलिकॉम कंपनी को बंद नहीं होना चाहिए.
क्यों आ गई वोडाफोन के बंद होने की नौबत?
वोडाफोन की नाक में पहले ही रिलायंस जियो ने दम किया था, जिसकी वजह से उसे लगातार नुकसान हो रहा था, ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने भी वोडाफोन को झटका दे दिया. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले ही महीने दूरसंचार विभाग की लेवी और ब्याज के तौर पर 13 अरब डॉलर की मांग को सही ठहराया था. आदित्य बिड़ला समूह कह चुका है कि अगर उसकी देनदारियों से राहत नहीं मिलती है तो वह कंपनी में निवेश नहीं करेगा और ऐसे में वोडाफोन-आइडिया का दिवालिया होना तय समझिए.
वोडाफोन के जाने का मतलब,...
बहुत से लोगों को वोडाफोन (Vodafone) का हो दौर शायद ही याद हो, जब वह वोडाफोन नहीं, बल्कि हच हुआ करता था. तभी से इसके विज्ञापनों में पग का इस्तेमाल होता आ रहा है. हच यानी वोडाफोन तो तभी से बहुत सो लोगों का फेवरेट हो गया था. वोडाफोन ने खुद को यही कहते हुए स्थापित किया कि आप जहां-जहां जाएंगे, हमारा नेटवर्क आपको फॉलो करेगा. वोडाफोन में वो बात थी भी, लेकिन 5 सितंबर 2016 को बाजार में रिलायंस जियो (Reliance Jio) ने एंट्री की. उस दिन के बाद से न केवल वोडाफोन, बल्कि सभी टेलिकॉम (Telecom) कंपनियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा. देखते ही देखते कई छोटी टेलिकॉम कंपनियां बंद भी हो गईं. यहां तक कि वोडाफोन को भी आइडिया के सहारे की जरूरत पड़ गई, क्योंकि इसके लिए अकेले खड़े होना मुश्किल पड़ रहा था. अब सुनने में आ रहा है कि वोडाफोन बोरिया बिस्तरा बांधकर भारत छोड़कर वापस जा सकता है. कुछ भी हो, लेकिन वोडाफोन को बंद नहीं होना चाहिए. और कुछ नहीं तो कंपनियों का कॉम्पटीशन जिंदा रखने के लिए ही इस विदेशी टेलिकॉम कंपनी को बंद नहीं होना चाहिए.
क्यों आ गई वोडाफोन के बंद होने की नौबत?
वोडाफोन की नाक में पहले ही रिलायंस जियो ने दम किया था, जिसकी वजह से उसे लगातार नुकसान हो रहा था, ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने भी वोडाफोन को झटका दे दिया. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले ही महीने दूरसंचार विभाग की लेवी और ब्याज के तौर पर 13 अरब डॉलर की मांग को सही ठहराया था. आदित्य बिड़ला समूह कह चुका है कि अगर उसकी देनदारियों से राहत नहीं मिलती है तो वह कंपनी में निवेश नहीं करेगा और ऐसे में वोडाफोन-आइडिया का दिवालिया होना तय समझिए.
वोडाफोन के जाने का मतलब, जियो की मोनोपोली
अगर वोडाफोन बंद हुआ, तो आइडिया भी बंद ही होगा, फिर बचेगा कौन? बीएसएनएल तो पहले ही राम भरोसे हैं. टक्कर सिर्फ जियो और एयरटेल में ही होगी. इस समय सिर्फ जियो ही है जो लगातार फायदा कमा रहा है, बाकी की टेलिकॉम कंपनियां नुकसान ही उठा रही हैं. ऐसे में टेलिकॉम मार्केट में जियो की ही मोनोपली हो जाएगी और जिस कंपनी ने एक वक्त में सब कुछ फ्री बांटा था, वही कंपनी गले की हड्डी बन जाएगी.
जियो करेगा मनमानी !
वोडाफोन का रहना जरूरी है, ताकि एक हेल्दी कॉम्पटीशन बना रहे. अगर ये कॉम्पटीशन खत्म हुआ, तो समझिए रिलायंस जियो मनमानी पर उतर आएगा. पहले जियो ने सब फ्री में बांटा, उस दौरान छोटी-छोटी कंपनियां बंद हुईं. फिर बेहद सस्ते दामों में टैरिफ ले आया, उनसे भी बाकी टेलिकॉम कंपनियों को नुकसान हुआ. अब जियो को दिखने लगा है कि बाकी कंपनियां भी टूटने की कगार पर हैं तो उसने चुपके से आईयूसी चार्ज के नाम प्रति मिनट 6 पैसे का चार्ज (नॉन जियो कॉल्स पर) लेना शुरू कर दिया है, जबकि उसे कोई घाटा नहीं हो रहा था. अब जियो ने ये भी कह दिया है कि वह अपने टैरिफ बढ़ाने वाला है.
जियो का बर्ताव देखकर एक बात तो साफ हो रही है कि वह अब खुद को बाजार का राजा समझने लगा है. आप ही सोचिए, अगर किसी को घाटा ना हो, तो वह अपनी चीजों की कीमतें क्यों बढ़ाएगा, जबकि जियो ऐसा कर रहा है. इस समय टेलिकॉम बाजार में जियो एकमात्र कंपनी है जो फायदा कमा रही है और उसके यूजर्स भी बढ़ रहे हैं. बाकी की टेलिकॉम कंपनियों के यूजर भी घट रहे हैं और उन्हें नुकसान भी हो रहा है. कहीं ऐसा ना हो कि वोडाफोन भी चली जाए और एयरटेल भी लाचार पड़ जाए, फिर तो जियो जैसे रेट चाहेगा, वैसे रखेगा. वैसे भी, पहले चीजें मुफ्त में बांट दो और फिर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाओ, ये बहुत ही पुराना पैंतरा है, जिसे जियो ने आज के वक्त में इस्तेमाल किया है.
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