पेट्रोल हमारे देश में क्या मायने रखता है? शायद इस सवाल का जवाब देने में किसी को ज्यादा दिक्कत न हो. देश में पेट्रोल सरकार बना भी सकता है और गिरा भी सकता है. हमारे देश में पेट्रोल की हालत ये है कि इसी साल अगस्त में जब पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के दाम बढ़े थे तब भी देश में हर दिन 4.4 मिलियन बैरल तेल इम्पोर्ट किया गया जिसकी कीमत लगभग 12 बिलियन डॉलर थी. इस साल तेल मार्केट में बड़े उतार चढ़ाव देखे गए और सिर्फ भारत पर ही इसका असर ये पड़ेगा कि 2018 में तेल आयात 47 प्रतिशत ज्यादा महंगा हो गया और सीधे तौर पर ये भारत की जीडीपी पर असर डालेगा. पर तेल के इस उतार चढ़ाव से क्या सिर्फ भारत जैसे देश ही परेशान हैं जो अपनी जरूरत का 80% हिस्सा तेल आयात करवाता है. अगर आपका ये सोचना है तो ये गलत है.
तेल की ये समस्या उन देशों के लिए ज्यादा परेशानी का सबब है जिनकी पूरी अर्थव्यवस्था ही तेल पर निर्भर करती है. यहां बात हो रही है सऊदी जैसे देश की जिसके निर्यात का 70% हिस्सा तेल है. जरा सोचिए अगर उस देश का तेल खत्म हो जाए या फिर उस देश के तेल का इस्तेमाल ही बंद हो जाए तो उसका क्या होगा?
अगर आपको लगता है कि ये थोड़ी अजीब बात है कि सऊदी का तेल कैसे खत्म हो सकता है या फिर उसका इस्तेमाल कैसे बंद हो सकता है तो मैं आपको बता दूं कि सऊदी के तेल के कुएं भले ही न सूखें, लेकिन जिस तरह से प्रदूषण बढ़ रहा है और तेल की मंहगाई का असर अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है उस हिसाब से तेल का इस्तेमाल जरूर कम हो सकता है.
दुनिया में ऐसे कई देश हैं जो पूरी तरह से ईंधन वाले वाहनों का इस्तेमाल बंद कर चुके हैं. नॉर्वे जैसे देश जिनके पास खुद का पेट्रोल है वो भले ही उसे निर्यात कर दें, लेकिन खुद पूरी तरह से प्राकृतिक सोर्स...
पेट्रोल हमारे देश में क्या मायने रखता है? शायद इस सवाल का जवाब देने में किसी को ज्यादा दिक्कत न हो. देश में पेट्रोल सरकार बना भी सकता है और गिरा भी सकता है. हमारे देश में पेट्रोल की हालत ये है कि इसी साल अगस्त में जब पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के दाम बढ़े थे तब भी देश में हर दिन 4.4 मिलियन बैरल तेल इम्पोर्ट किया गया जिसकी कीमत लगभग 12 बिलियन डॉलर थी. इस साल तेल मार्केट में बड़े उतार चढ़ाव देखे गए और सिर्फ भारत पर ही इसका असर ये पड़ेगा कि 2018 में तेल आयात 47 प्रतिशत ज्यादा महंगा हो गया और सीधे तौर पर ये भारत की जीडीपी पर असर डालेगा. पर तेल के इस उतार चढ़ाव से क्या सिर्फ भारत जैसे देश ही परेशान हैं जो अपनी जरूरत का 80% हिस्सा तेल आयात करवाता है. अगर आपका ये सोचना है तो ये गलत है.
तेल की ये समस्या उन देशों के लिए ज्यादा परेशानी का सबब है जिनकी पूरी अर्थव्यवस्था ही तेल पर निर्भर करती है. यहां बात हो रही है सऊदी जैसे देश की जिसके निर्यात का 70% हिस्सा तेल है. जरा सोचिए अगर उस देश का तेल खत्म हो जाए या फिर उस देश के तेल का इस्तेमाल ही बंद हो जाए तो उसका क्या होगा?
अगर आपको लगता है कि ये थोड़ी अजीब बात है कि सऊदी का तेल कैसे खत्म हो सकता है या फिर उसका इस्तेमाल कैसे बंद हो सकता है तो मैं आपको बता दूं कि सऊदी के तेल के कुएं भले ही न सूखें, लेकिन जिस तरह से प्रदूषण बढ़ रहा है और तेल की मंहगाई का असर अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है उस हिसाब से तेल का इस्तेमाल जरूर कम हो सकता है.
दुनिया में ऐसे कई देश हैं जो पूरी तरह से ईंधन वाले वाहनों का इस्तेमाल बंद कर चुके हैं. नॉर्वे जैसे देश जिनके पास खुद का पेट्रोल है वो भले ही उसे निर्यात कर दें, लेकिन खुद पूरी तरह से प्राकृतिक सोर्स पर चलते हैं. यूके, नॉर्वे, फ्रांस, कोस्टा रिका, नीदरलैंड्स, जर्मनी जैसे देश अपने यहां इलेक्ट्रिक कारों का रूल ला चुके हैं. भारत भी इस लिस्ट में शामिल है जहां वो 2030 तक 37% तेल का इस्तेमाल बंद करना चाहता है और अगले 13 सालों में यहां इलेक्ट्रिक कारें बिकें. इसके अलावा, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, आयरलैंड, जापान, पुर्तगाल, कोरिया और स्पेन भी अपने-अपने देशों में इलेक्ट्रिक कारों की तारीख तय कर चुके हैं.
अब जरा सोचिए उस देश का क्या होगा जिसके पास सिर्फ पेट्रोल ही है अर्थव्यवस्था के तौर पर.
क्या होगा सऊदी का अगर वहां खत्म हो गई पेट्रोल की अर्थव्यवस्था तो?
सवाल ये सबसे बड़ा है कि अगर पेट्रोल की अर्थव्यवस्था ही चरमरा गई तो सऊदी का क्या होगा? 1930 के दशक में सऊदी में पेट्रोल के कुएं खोजे गए थे और उसके बाद से उस देश ने पलट कर नहीं देखा. पर कभी न कभी तो ऐसा मौका आएगा जब तेल की कीमत कम हो जाएगी या फिर वो खत्म हो जाएगा.
कुछ-कुछ ऐसे ही हालात कुछ समय पहले दुबई के थे. 1990 तक वहां भी तेल बहुत महत्वपूर्ण था, लेकिन अब दुबई ने हालात बदलवा लिए हैं. दुबई के इमिर शेख रशीद बिन सईल अल मख्तूम के भी एक समय पर ऐसे ही डर सताते थे और उन्हें भी ये लगता था कि तेल किसी दिन खत्म हो जाएगा और फिर क्या होगा. उन्होंने एक बहुत ही फेमस बात भी कही थी..
'मेरे दादा ऊंट की सवारी करते थे, मेरे पिता ऊंट की सवारी करते थे, मैं मर्सिडीज की सवारी करता हूं, मेरा बेटा लैंड रोवर की सवारी करता है, उसका बेटा भी लैंड रोवर की सवारी करेगा, लेकिन उसका बेटा शायद फिर से ऊंट की सवारी करे.'
यही कारण था कि दुबई ने अपनी अर्थव्यवस्था को टूरिज्म, और अन्य चीजों की तरफ मोड़ा और दुबई की अब सिर्फ 2% जीडीपी ही तेल से आती है.
सऊदी के साथ इसका उल्टा है. जब सऊदी के तेल का खुलासा हुआ था तब उस देश से टैक्स पूरी तरह से खत्म हो गया था, इसके अलावा वहां खाने और अन्य चीज़ों पर सब्सिडी दी जाने लगी थी. वहां के राज परिवार ने दुनिया भर में कई जगह उन्होंने प्रॉपर्टी खरीदीं. और सऊदी एक तरह से तेल की दुनिया का राजा बन गया. पर अब आगे क्या? ये 1938 नहीं है 2018 का अंत है और एक तरफ जहां तेल का स्त्रोत हमेशा सऊदी के पास नहीं रहने वाला वहीं दूसरी तरफ कई देश तेल का आयात कम करने पर लगे हुए हैं.
ऐसे में सऊदी की अर्थव्यवस्था बिना तेल के कारोबार के पूरी तरह चरमरा सकती है. पर सवाल ये है कि क्या सऊदी को ये नहीं दिखता? तो इसका जवाब है कि दिख रहा है और सऊदी इसके लिए बहुत कुछ कर भी रहा है.
क्या चल रहा है सऊदी में?
सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने देश के लिए विजन 2030 तैयार किया है जिसमें सऊदी की अर्थव्यवस्था को अन्य फील्ड्स में देने की बात की गई है.
उदाहरण के तौर पर सऊदी सरकार देश की सरकारी कंपनी Aramco का एक बड़ा हिस्सा बेचने की फिराक में है. ये अकेले 1 से 2 ट्रिलियन डॉलर की कमाई का माददा रखता है. ऐसा करने पर सरकार के पास बहुत ज्यादा बड़ा रिजर्व तैयार हो जाएगा जो आर्थिक तौर पर सरकार की मदद करेगा.
इसके अलावा, प्रिंस मोहम्मद ने जो सॉफ्ट इस्लामिक रिफॉर्म करना शुरू किया है जैसे महिलाओं को ड्राइविंग की सुविधा देना, फिर से फिल्म थिएटर खोलना, महिलाओं को खेल स्टेडियम में जाने देना ये एक नए तरीके की पहल है और इसे भी विजन 2030 के तहत देखा जा रहा है जहां फॉरेन इन्वेस्टमेंट बढ़ेगी.
इसके अलावा, सऊदी सरकार की तरफ से VAT टैक्स जोड़ा गया है जो सरकार को अच्छा खासा रेवेन्यू दे रहा है.
सऊदी सरकार ने कुल 755 बदलाव सोचे हैं जो विजन 2030 का हिस्सा है. इसमें ट्रांसपोर्टेशन डेवलपमेंट भी शामिल है जहां मक्का और मदीना का ट्रांसपोर्ट शामिल है. हालांकि, वहां के लोग बहुत से रिफॉर्म जैसे टैक्स आदि का विरोध कर रहे हैं पर उम्मीद है कि ज्यादातर को मान लिया जाए.
इसके अलावा, सऊदी की तरफ से एक नया शहर बसाने की प्लानिंग भी चल रही है (Qiddiya entertainment city) जो लास वेगस के साइज का होगा और ये 6 नए थीम पार्क, सफारी पार्क आदि बनाएगी और कुल मिलाकर एक ऐसा वेकेशन स्पॉट तैयार करेगी जो देश और विदेश दोनों तरह के टूरिस्ट आकर्षित करे.
इसके अलावा, सऊदी सरकार इस बात की प्लानिंग भी कर रही है कि सब्सिडी में थोड़ा कटौती की जाए और वहां टैक्स हाल ही में लागू किया गया है जहां VAT 5% लगाया जाता है. (जी हां, इसके अलावा सऊदी में और किसी भी तरह का कोई टैक्स नहीं है.)
अगर सऊदी अपना विजन पूरी तरह से लागू नहीं कर पाया तो?
देखिए ऐसा सोचना कि विजन को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सकेगा ये तो गलत होगा. लेकिन हां ऐसा हो सकता है कि इसमें देरी हो जाए. और अगर सऊदी की अर्थव्यवस्था तेल से नहीं हटती है तो ये वहां के लोगों के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन सकता है.
- सऊदी को आज से 80 साल पहले कोई ठीक से जानता भी नहीं था वहां सिर्फ दो बड़े इस्लामिक तीर्थ होने के कारण उसका नाम बना और साथ ही साथ वहां के तेल के कुएं सऊदी को पूरी दुनिया में पहचान दे पाए.
- सऊदी वापस से बंजारों के कबीलों में तब्दील होने लगेगा और अगर तेल की अर्थव्यवस्था टूटती है तो मक्का और मदीना के अलावा सऊदी के पास कुछ ज्यादा रह नहीं जाएगा.
- सऊदी के पास न तो बेहतर स्कॉलर हैं, न ही उस देश के पास अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए कुछ ज्यादा साधन और अगर विजन 2030 नहीं होता है तो जल्द ही देश की अर्थव्यवस्था चरमराने लगेगी.
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