जीएसटी लागू होने के पहले हर तरह की बात कही जा रही है, हर चीज के महंगे और सस्ते होने की बात भी की जा चुकी है. जीएसटी बिना किसी शकोशुबा को भारत का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म कहा जा सकता है. खाने की टेबल से लेकर पान के ठेले तक और नुक्कड़ से लेकर चौराहे तक सभी को ये चिंता है कि आखिर जीएसटी लगने के बाद होगा क्या? जिन लोगों को इसके बारे में ज्यादा नहीं पता उन्हें भी ये तो जरूर पता है कि कुछ बड़ा होने वाला है और इससे बाजार पर फर्क पड़ेगा.
अब सोना, हीरा से लेकर जूते, कपड़े तक पहले भी हम बहुत सी बातें जीएसटी को लेकर कर चुके हैं, लेकिन कई लोगों ने आम तौर पर मुझसे ये सवाल किया है कि रियल एस्टेट को इससे क्या फर्क पड़ेगा. आखिर घर सस्ते होंगे, महंगे होंगे या फिर इन्हें किसी भी तरह का कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
सबसे बड़ी कश्मकश में वो लोग हैं जिनके फ्लैट्स की ईएमआई शुरू हो गई है. आखिर ईएमआई में बदलाव आएगा या खरीदे गए फ्लैट की कीमत ही बढ़ जाएगी ये सोचकर अगर आप भी परेशान हैं तो आपके जवाब हम देते हैं..
रियल एस्टेट सेक्टर पर जिएसटी 12% लगेगा. हालांकि, सिर्फ जीएसटी के रेट से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. जो रूल्स बनाए जाएंगे उन्हें भी ध्यान रखना होगा. अगर देखा जाए तो वो नियम भी मायने रखेंगे जिनके अंडर ट्राजिशन होगा. इसका मतलब अभी सर्विस टैक्स के दौर से जीएसटी के दौर में किस तरह ट्रांसफर होता है.
अभी घर खरीदने वालों को कई तरह के टैक्स देने होते हैं जिनमें एक्साइज ड्यूटी, वैट, सर्विस टैक्स आदि शामिल होते हैं. कुछ राज्यों में ये टैक्स वैसे भी 11% के आस-पास पहुंच जाता है. इसके बाद स्टांप ड्यूटी लगती है.
अंडर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट का क्या...
जीएसटी लागू होने के पहले हर तरह की बात कही जा रही है, हर चीज के महंगे और सस्ते होने की बात भी की जा चुकी है. जीएसटी बिना किसी शकोशुबा को भारत का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म कहा जा सकता है. खाने की टेबल से लेकर पान के ठेले तक और नुक्कड़ से लेकर चौराहे तक सभी को ये चिंता है कि आखिर जीएसटी लगने के बाद होगा क्या? जिन लोगों को इसके बारे में ज्यादा नहीं पता उन्हें भी ये तो जरूर पता है कि कुछ बड़ा होने वाला है और इससे बाजार पर फर्क पड़ेगा.
अब सोना, हीरा से लेकर जूते, कपड़े तक पहले भी हम बहुत सी बातें जीएसटी को लेकर कर चुके हैं, लेकिन कई लोगों ने आम तौर पर मुझसे ये सवाल किया है कि रियल एस्टेट को इससे क्या फर्क पड़ेगा. आखिर घर सस्ते होंगे, महंगे होंगे या फिर इन्हें किसी भी तरह का कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
सबसे बड़ी कश्मकश में वो लोग हैं जिनके फ्लैट्स की ईएमआई शुरू हो गई है. आखिर ईएमआई में बदलाव आएगा या खरीदे गए फ्लैट की कीमत ही बढ़ जाएगी ये सोचकर अगर आप भी परेशान हैं तो आपके जवाब हम देते हैं..
रियल एस्टेट सेक्टर पर जिएसटी 12% लगेगा. हालांकि, सिर्फ जीएसटी के रेट से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. जो रूल्स बनाए जाएंगे उन्हें भी ध्यान रखना होगा. अगर देखा जाए तो वो नियम भी मायने रखेंगे जिनके अंडर ट्राजिशन होगा. इसका मतलब अभी सर्विस टैक्स के दौर से जीएसटी के दौर में किस तरह ट्रांसफर होता है.
अभी घर खरीदने वालों को कई तरह के टैक्स देने होते हैं जिनमें एक्साइज ड्यूटी, वैट, सर्विस टैक्स आदि शामिल होते हैं. कुछ राज्यों में ये टैक्स वैसे भी 11% के आस-पास पहुंच जाता है. इसके बाद स्टांप ड्यूटी लगती है.
अंडर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट का क्या होगा...
देखिए अभी अगर सिर्फ नंबरों को देखें तो लगेगा कि रियल एस्टेट सेक्टर में बहुत बवाल मच जाएगा. अभी तो 4.5% सर्विस टैक्स (1 करोड़ से ऊपर की प्रॉपर्टी पर) दिया जाता है फिर 12% लगेगा, वगैराह-वगैराह लेकिन अब इसे दूसरे नजरिए से देखिए. ये आम तौर पर 7.5% की सीधी बढ़त नहीं है.
अगर मैंने कोई फ्लैट लिया है 1 करोड़ का और उसपर मैं पहले ही 20 लाख दे चुकी हूं (4.5% सर्विस टैक्स के साथ) तो उसके ऊपर बाकी कई टैक्स भी लगाए जाएंगे. इसी के साथ, बिल्डरों के बाद इनपुट क्रेडिट भी होगा. जिसका फायदा भी ग्राहकों तक पहुंचाया जा सकता है. हालांकि, ये बिल्डर पर भी निर्भर करता है कि कितना फायदा कन्ज्यूमर तक पहुंचे, लेकिन फिर भी हालात उतने बुरे नहीं है जितने के बारे में सोचा जा रहा है.
क्या है इनपुट क्रेडिट...
आउटपुट पर टैक्स देने के समय कोई प्रोड्यूसर उस टैक्स को कम करवा सकता है अपना इनपुट क्रेडिट दिखाकर. अगर आपने ये शब्द पहली बार सुना है तो बता दूं कि ये वो कीमत होती है जो पहले ही कोई प्रोड्यूसर अपने प्रोडक्ट के लिए कच्चा माल खरीदते समय टैक्स के रूप में दे चुका होता है.
मसलन अगर मैं बिल्डर हूं और मैंने 1 लाख के सीमेंट, लोहे आदि माल पर 10,000 टैक्स दे दिया है. अब फ्लैट बेचने के समय मुझे 20000 टैक्स देना है तो मैं उसमें से 10000 कम करवा सकती हूं इनपुट क्रेडिट के रूप में. ऐसे में मुझे अंतत: फाइनल प्रोडक्ट देते समय 30000 नहीं सिर्फ 20000 ही देने होंगे.
बिल्डरों के पास ये इनपुट क्रेडिट की सुविधा होगी और इसका फायदा वो ग्राहकों तक पहुंचा सकते हैं. अब फायदा ये होगा कि वैट और अन्य टैक्स घर खरीदते समय इन्वॉइस में नहीं रहते हैं कई राज्यों में ऐसी प्रैक्टिस नहीं है, लेकिन उन्हें कीमत में जोड़ दिया जाता है. जीएसटी के बाद ये नहीं होगा.
बचें इस धोखे से...
अगर कोई बिल्डर प्री-जीएसटी सेल दे रहा है और कह रहा है कि अभी फ्लैट बुक करवाएं और 4.5% की जगह 12% देने से बचें तो ऐसे किसी ट्रैप में फंसने की जरूरत नहीं है. बिल्डर आपसे पैसे लेकर अपने कर्ज भी चुका सकते हैं. सरकार ने पहले से ही एंटी प्रॉफिटियरिंग क्लॉज जारी कर दिया है जिसके तहत बिल्डरों को इनपुट क्रेडिट का फायदा ग्राहकों को देना ही होगा. अगर कोई बिल्डर ऐसा नहीं करता है तो आप रियल एस्टेट रेग्युलेशन एक्ट के तहत उसके खिलाफ शिकायत भी कर सकते हैं. ये इसलिए किया गया है कि बिल्डर डिस्काउंट को आम लोगों तक पहुंचाएंगे. 1 जुलाई के बाद अगर आपको आपके घर का पजेशन मिल रहा है तो इनपुट क्रेडिट के कारण आप 12% जीएसटी से बच सकते हैं.
जीएसटी लागू होने के बाद क्या होगा...
अच्छी बात ये है कि अगर आप ऐसे किसी प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट करने की सोच रहे हैं जो 1 जुलाई के बाद जारी होता है. अगर आप ऐसे किसी प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट कर रहे हैं तो आप बिल्डर से इनपुट क्रेडिट को लेकर बार्गेन कर सकते हैं. ऐसे में कीमतें 5% तक घट जाएंगी. ऐसा लोअर सेग्मेंट में ज्यादा होगा. हालांकि, प्रीमियम सेग्मेंट की कीमतों में उतना फर्क नहीं पड़ेगा.
इसका मतलब कीमतों में अंतर तो जरूर आएगा, लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि लाखों का अंतर आएगा तो ऐसा नहीं होगा. जीएसटी के बाद उन लोगों को थोड़ा ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है जिनकी प्रॉपर्टी का पजेशन उन्हें बाद में मिलने वाला है.
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