अरुण जेटली की मदद करने के लिए प्रभु ने खुद को ही नुकसान पहुंचाने वाला कदम उठाया. रेल मंत्री सुरेश प्रभु का नया कदम 'सर्ज प्राइसिंग फेयर सिस्टम' अरुण जेटली की तकलीफ कम करने की कवायद का हिस्सा है. अगर सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हुआ तो पिछले 93 वर्षों से चला आ रहा रेल बजट अगले वित्त वर्ष से पेश नहीं किया जाएगा.
रेल बजट, यात्री वर्ग में करीब 34,000 करोड़ रूपए के भारी भरकम नुकसान के साथ अरुण जेटली के आम बजट का हिस्सा बन सकता है. लेकिन सुरेश प्रभु का 'सर्ज प्राइसिंग फेयर' का फैसला वित्त मंत्रालय के इस बोझ को कम करने की कवायद का हिस्सा था. इसके अनुसार, यात्री परिवहन के इस प्रतियोगी बाजार में रेलवे अपने विशिष्ट यात्री वर्ग को खो सकता है जिसका फायदा हवाई और सड़क मार्ग के साधनों को होगा. परिवर्तन और नई रिपोर्टों के तमाम दावों के बीच तथ्य यही है कि रेलवे की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और इसके उबरने की कोई संभावना भी नहीं दिखती.
रेलवे को पिछले वर्ष की ही तरह इस वित्तीय वर्ष में भी नुकसान उठाना पड़ा. जून तिमाही में रेलवे को मालभाड़ा परिवहन में करीब 10.3 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ा. सब्सिडाइज्ड यात्री किराया और भारी भरकम कर्ज के बोझ से दबे रेलवे के इस दावे में कोई दम नहीं दिखता कि बदलाव की बयार बस आने को है.
अब अपनी आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए रेलवे अपनी प्रतिस्पर्धा का त्याग करने को मजबूर है. रेलवे की लगातार बिगड़ रही बैलेंस शीट को ठीक करने तथा यात्री किराया और माल भाड़ा को आर्थिक रूप से फायदेमंद बनाने के लिए प्रभु ने पिछले एक महीने में भारी मशक्कत की है. विशेष ट्रेनें और एसी कोच रेलवे के यात्री किराया व्यवसाय के प्रमुख आधार हैं क्योंकि इनमें सामान्य वर्ग के मुकाबले कम सब्सिडी दी जाती है.
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अरुण जेटली की मदद करने के लिए प्रभु ने खुद को ही नुकसान पहुंचाने वाला कदम उठाया. रेल मंत्री सुरेश प्रभु का नया कदम 'सर्ज प्राइसिंग फेयर सिस्टम' अरुण जेटली की तकलीफ कम करने की कवायद का हिस्सा है. अगर सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हुआ तो पिछले 93 वर्षों से चला आ रहा रेल बजट अगले वित्त वर्ष से पेश नहीं किया जाएगा.
रेल बजट, यात्री वर्ग में करीब 34,000 करोड़ रूपए के भारी भरकम नुकसान के साथ अरुण जेटली के आम बजट का हिस्सा बन सकता है. लेकिन सुरेश प्रभु का 'सर्ज प्राइसिंग फेयर' का फैसला वित्त मंत्रालय के इस बोझ को कम करने की कवायद का हिस्सा था. इसके अनुसार, यात्री परिवहन के इस प्रतियोगी बाजार में रेलवे अपने विशिष्ट यात्री वर्ग को खो सकता है जिसका फायदा हवाई और सड़क मार्ग के साधनों को होगा. परिवर्तन और नई रिपोर्टों के तमाम दावों के बीच तथ्य यही है कि रेलवे की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और इसके उबरने की कोई संभावना भी नहीं दिखती.
रेलवे को पिछले वर्ष की ही तरह इस वित्तीय वर्ष में भी नुकसान उठाना पड़ा. जून तिमाही में रेलवे को मालभाड़ा परिवहन में करीब 10.3 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ा. सब्सिडाइज्ड यात्री किराया और भारी भरकम कर्ज के बोझ से दबे रेलवे के इस दावे में कोई दम नहीं दिखता कि बदलाव की बयार बस आने को है.
अब अपनी आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए रेलवे अपनी प्रतिस्पर्धा का त्याग करने को मजबूर है. रेलवे की लगातार बिगड़ रही बैलेंस शीट को ठीक करने तथा यात्री किराया और माल भाड़ा को आर्थिक रूप से फायदेमंद बनाने के लिए प्रभु ने पिछले एक महीने में भारी मशक्कत की है. विशेष ट्रेनें और एसी कोच रेलवे के यात्री किराया व्यवसाय के प्रमुख आधार हैं क्योंकि इनमें सामान्य वर्ग के मुकाबले कम सब्सिडी दी जाती है.
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कुछ वर्ष पहले रेलवे ने उड्डयन उद्योग की तर्ज पर 'डायनैमिक फेयर' पर प्रयोग शुरू किया था. ये प्रयोग त्योहारों पर बढ़ने वाली मांग का लाभ उठाने की नीयत से किया गया था. इसके बाद रेलवे ने 'प्रीमियम तत्काल टिकट स्कीम' शुरू की जिसमें तत्काल कोटे की 50 प्रतिशत सीटें बेचने का फैसला किया गया. कुछ ट्रेनों में 'गतिशील किराए' की योजना को अच्छा रिस्पॉन्स मिलने के बाद रेल मंत्रालय राजधानी, दुरंतो और शताब्दी ट्रेनों में फ्लैक्सी फेयर और सर्ज प्राइसिंग की योजना लेकर आ गया.
रेल मंत्री सुरेश प्रभु |
इस योजना से रेलवे को कोई बहुत बड़ा लाभ नहीं होने वाला क्योंकि इन प्रीमियम ट्रेनों की संख्या बहुत कम है. बल्कि इससे तो यात्रियों का झुकाव हवाई यात्रा की ओर बढ़ेगा. प्रभु की ये योजना अच्छा कदम तो कही जा सकती है लेकिन इससे रेलवे को फायदे की जगह नुकसान होने की संभावना ज्यादा है.
घाटे में डूब रहे रेलवे के पास कोई विकल्प नहीं है सिवाए इसके कि वो अपने यात्रियों को दूसरे साधनों की ओर जाने को मजबूर करे. इससे लागत कम होगी और बचत में वृद्धि होगी.
यही कहानी माल भाड़े के साथ भी है. पिछले महीने रेलवे ने कोयला परिवहन की दरों में 8-14 प्रतिशत की वृद्धि की है. लोडिंग और अनलोडिंग पर 55 रपए प्रति टन का सरचार्ज भी लगाया गया है जिससे 1000 करोड़ का राजस्व मिलने का अनुमान है. कोयला परिवहन के लिए रेलवे ही सबसे बड़ा माध्यम है, साथ ही रेलवे को करीब 50 प्रतिशत माल भाड़ा राजस्व भी कोयले से ही प्राप्त होता है. कम उठाव की वजह से कोयला उत्पादन में अप्रेल के महीने में भारी कमी आई. लिहाजा अपनी आर्थिक स्थिति ठीक रखने के लिए रेलवे को कोयला परिवहन की दरें बढानी पड़ी.
केंद्रीय बजट का हिस्सा बनने से पहले रेलवे अपने दायित्वों में कमी करने के लिए अंतिम लड़ाई लड़ रहा है. जबकि इसके अलावा भी रेल मंत्रालय की विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 4,83,511 करोड़ रूपयों का अधिभार प्रस्तावित है. सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं को पूर्ण करने के लिए 30 हजार करोड़ रूपयों की देनदारी भी लंबित है.
अब ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि आम बजट का हिस्सा बन जाने के बाद जेटली इसकी सेहत के लिए क्या रामबाण नुस्खा लाएंगे. लेकिन ये तय है कि अगर जेटली केंद्रीय बजट को रेलवे के घाटों से बचाना चाहते हैं तो देश के इस सबसे बड़े आवागमन के साधन को अब कड़े बदलावों से गुज़रना होगा, आखिरकार वित्त वर्ष 2016 के शानदार बजट से उनके द्वारा अर्जित प्रतिष्ठा जो दांव पर है.
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