यस बैंक (Yes Bank) में जिस तरह की लोन देने के नाम पर लूट मची हुई थी उससे यह साफ हो गया है कि देश के बैंकिंग सेक्टर में नए सिरे से समीक्षा कर प्राण फूंकने की जरूरत हैं. बैंकिंग सेक्टर तो जंगग्रस्त हो गया लगता है. अब यस बैंक के देशभर में फैले लाखों खातेदार अपना पैसा निकालने के लिए मारे-मारे घूम रहे हैं. आपको याद ही होगा कि पिछले साल के अंतिम महीनों में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (PMC Bank crisis) पर अलग-अलग तरह की कई पाबंदियां लगा दी थीं. जिसके बाद इसके खातेदारों को अपने ही बैंक से अपना पैसा निकालना मुश्किल हो गया था.
यकीन मानिए कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों के हर माह करीब 90 मुलाजिमों को चोरी-चकारी, भ्रस्टाचार और अकर्मण्यता के पुख्ता कारणों से नौकरी से बर्खास्त किया जा रहा है. इनमें से ज्यादातर पर भ्रष्टाचार में फंसे होने के पुख्ता साक्ष्य हैं. ये काम करने की बजाय काली कमाई का धंधा करते रहे हैं. इनका जमीर मर गया था. ये देश को धोखा दे रहे थे. इनके संबंध में यह जानकारी सेंट्रल विजिलेंस कमीशन ने दी है. जहां तक यस बैंक की बात हैं तो वहां इसके फाउंडर राणा कपूर (Rana Kapoor) और सरकार व आरबीआई के बीच काफी लंबे समय से चूहे-बिल्ले का खेल चल रहा था. दरअसल, राणा कपूर बैंक के सीईओ पद से हटाए जाने के बाद लंदन चले गए थे. इसके बाद सरकार व आरबीआई ने उन्हें बुलाने के लिए जाल बुना. उन्हें लगा कि शायद उन्हें फिर CEO बनाया जा सकता है I लेकिन, राणा को भारत आने के बाद लगा कि उनके चारों तरफ जांच एजेंसियों का शिकंजा कस रहा है तो वह फिर भागने की फिराक में लग गये थे. लेकिन यह हो नहीं सका. अब उनके काले कारनामे सबके सामने धीरे-धीरे रहे हैं.
यस बैंक (Yes Bank) में जिस तरह की लोन देने के नाम पर लूट मची हुई थी उससे यह साफ हो गया है कि देश के बैंकिंग सेक्टर में नए सिरे से समीक्षा कर प्राण फूंकने की जरूरत हैं. बैंकिंग सेक्टर तो जंगग्रस्त हो गया लगता है. अब यस बैंक के देशभर में फैले लाखों खातेदार अपना पैसा निकालने के लिए मारे-मारे घूम रहे हैं. आपको याद ही होगा कि पिछले साल के अंतिम महीनों में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (PMC Bank crisis) पर अलग-अलग तरह की कई पाबंदियां लगा दी थीं. जिसके बाद इसके खातेदारों को अपने ही बैंक से अपना पैसा निकालना मुश्किल हो गया था.
यकीन मानिए कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों के हर माह करीब 90 मुलाजिमों को चोरी-चकारी, भ्रस्टाचार और अकर्मण्यता के पुख्ता कारणों से नौकरी से बर्खास्त किया जा रहा है. इनमें से ज्यादातर पर भ्रष्टाचार में फंसे होने के पुख्ता साक्ष्य हैं. ये काम करने की बजाय काली कमाई का धंधा करते रहे हैं. इनका जमीर मर गया था. ये देश को धोखा दे रहे थे. इनके संबंध में यह जानकारी सेंट्रल विजिलेंस कमीशन ने दी है. जहां तक यस बैंक की बात हैं तो वहां इसके फाउंडर राणा कपूर (Rana Kapoor) और सरकार व आरबीआई के बीच काफी लंबे समय से चूहे-बिल्ले का खेल चल रहा था. दरअसल, राणा कपूर बैंक के सीईओ पद से हटाए जाने के बाद लंदन चले गए थे. इसके बाद सरकार व आरबीआई ने उन्हें बुलाने के लिए जाल बुना. उन्हें लगा कि शायद उन्हें फिर CEO बनाया जा सकता है I लेकिन, राणा को भारत आने के बाद लगा कि उनके चारों तरफ जांच एजेंसियों का शिकंजा कस रहा है तो वह फिर भागने की फिराक में लग गये थे. लेकिन यह हो नहीं सका. अब उनके काले कारनामे सबके सामने धीरे-धीरे रहे हैं.
दरअसल देश के बैंकिंग सेक्टर को विगत लंबे समय से नोच-नोच कर खाया जा रहा था. बैंकों में घोर अराजकता और अव्यवस्था फैली हुई थी. अब सरकार ने जब बैंकिंग की दुनिया के लुटेरों पर शिकंजा कसा तो उनके कारनामे सबके सामने आने लगे. गौर करें कि इस लूट के खेल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से लेकर प्राइवेट बैंक और कोपरेटिव बैंक सब के सब शामिल हैं. यानी पूरे कुएं में ही भांग पड़ी हुई है.
अब हाल जरा पंजाब नेशनल बैंक (PNB) की भी सुन लें. यहां जान-बूझकर कर्ज न चुकाने वाले बड़े कर्जदारों पर बकाया धन बढ़कर 15,490 करोड़ रुपये पहुंच गया. इसमें वे कर्जदार भी शामिल हैं जिन पर बैंक का बकाया 25 लाख रुपये या उससे अधिक का है. पीएनबी में उन विलफुल डिफॉल्टरों की बड़ी तादाद शामिल हैं, जो क्षमता होने के बावजूद अपना कर्ज नहीं चुका रहे हैं. यानी कि ये लुटेरे इस सिस्टम में व्याप्त कमियों का ही अपने हक में लाभ उठा रहे हैं. ये अब भी बाज नहीं आ रहे. अब आप समझ सकते हैं कि हमारे यहां बैंकिंग क्षेत्र की साख किस हदतक धूल में मिल चुकी है. यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी वाणिज्यिक बैंक है और भारत के लगभग 700 शहरों में इसकी करीब पौने पांच हजार शाखायें हैं. अविभाजित भारत के लाहौर शहर में 1895 में स्थापित पीएनबी को ऐसा पहला भारतीय बैंक होने का गौरव प्राप्त है जो पूर्णत: भारतीय पूँजी से प्रारम्भ किया गया था. इसकी अनेक शाखाएं देश से बाहर भी हैं. इतने अहम बैंक की आज दुर्दशा सबके सामने है. अब इसमें मुनाफा कमाने वाले ओरिएंटल बैंक आफ कॉमर्स (OBC) का विलय हो रहा है ताकि इसकी हालात में कुछ सुधर आ सके. लेकिन, यह भी तो ग्राहकों की आँखों में धूल झोंकने जैसी ही कारवाई हुई न?
अब आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) की बात कर लें. इसमें अपने खास ग्राहकों को मोटे लोन देने के कारण इसकी एमडी और सीईओ चंदा कोचर की तो बैंक से छुट्टी हो चुकी है. कोचर और उनके परिवार के सदस्यों पर वीडियोकॉन को लोन देने और हितों के टकराव का मामला है. राणा कपूर और चंदा कोचर से पहले या कहा जाए कि विगत कुछ समय के दौरान देश के कई दिगगज बैंकर फंसे हैं. यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया (यूबीआई) की पूर्व चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर (सीएमडी) अर्चना भार्गव के खिलाफ भी करप्शन का केस दर्ज किया जा चुका है. रिटायरमेंट की उम्र आने से पहले ही बैंक की नौकरी को खराब सेहत का बहाना बनाकर छोड़ने वाली अर्चना भार्गव पर आरोप है कि वर्ष 2011 में केनरा बैंक का कार्यकारी निदेशक रहते हुए और 2013 में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की सीएमडी के तौर पर उन्होंने उन कंपनियों को दिल खोलकर लोन दिलवाया जो उनके पति-पुत्र के स्वामित्व वाली कंपनियों से डील कर रही थीं. यानि पति और पुत्र के जरिये कमीशन खाने का धंधा I सीबीआई ने अगस्त, 2014 में सिंडिकेट बैंक के सीएमडी एस.के.जैन को 50 लाख रुपये की घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था. उन्होंने एक कंपनी को मोटा लोन दिलवाया था.
बैंकों में लोन दिलवाने का काला धंधा पुराना है. लोन दिलवाने के नाम पर बैंकों के छोटे-बड़े कर्मी अपनी कमीशन लेते रहे हैं. लेकिन, राणा कपूर जैसे बड़े बैंकरों पर आरोप है कि वे उन कंपनियों से मोटी कमीशन लेते थे, जिन्हें वे बड़ा लोन दिलवाते थे. ये कमीशन उनकी तीनों बेटियों को मिलता था. चूंकि, पहले कोई जवाबदेही नहीं होती थी इसलिए चौतरफा लूट जारी थी. एक बात तो माननी होगी कि बैंकों से लोन लेकर उसे न वापस करने वालों की बहुत लंबे हाथ और ऊपर तक पहुंच रही हैं. वे बैंकों के शिखर अफसरों को लोन की कुछ फीसद राशि घूस में देने का वादा करते और निभाते भी रहे हैं. नतीजे में बैंक अफसर उनके लोन क्लीयर करते रहे हैं. कुल मिले लोन पर मोटी घूस मिलती है. 100 करोड़ रुपये के लोन पर 50 से 75 लाख रुपए तक घूस मिलती रही है. और ये पंजरी रूपी घूस चेयरमेन से लेकर दूसरे बड़े अफसर बांटकर खाते रहे हैं.
यह किसी को कहने-बताने की जरूरत नहीं हैं कि बैंकिंग सेक्टर में फैली सडांध को अब दूर करने की जरूरत है. बैंकों में बिना सोचे-समझे लोन देने का सिलसिला चलता रहा है. इस काले खेल में नोटों की जमकर रेलमपेल होती रही.
बैंकों के डूबते लोन ने चौतरफा खलबली मचा दी है. यह फंसा हुआ कर्ज़ बैंकिंग की दुनिया की भाषा में नॉन-पर्फामिंग असेट्स (एनपीए) कहलाता है. अब सरकार बैंकों के इन लुटेरों के खिलाफ अभियान चला रही है. लेकिन,सवाल यह उठता है कि यदि यह गोरख धंधा दशकों से चला आ रहा था तो पहले की सरकारें और वित्त मंत्री सोते कैसे रह गये? उनकी क्या मज़बूरी थी.
सरकार साल 2000 के बाद से सरकारी बैंकों के एक लाख करोड़ रुपए के बैड लोन राइट-ऑफ कर चुकी है. इनमें बहुत से लोन पहले की सरकारों द्वारा ही री-स्ट्रक्चर किए गए थे. बैंकों के ढीले रवैये के चलते ही लोन की रिकवरी नहीं होती. अब सरकार को बैंकों की लोन रिकवरी प्रक्रिया को तेज करना होगा, जिससे डिफाल्टर अविलंब पकड़े जाएं. यहीं नहीं, लोन दबाकर बैठ गए लोनधारकों के साथ-साथ वे बैंक अफसर भी नपें जिन्होंने ऐसे लोन दिए.
याद रखें कि बड़े लोन बैंकों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, उनके चेयरमेन,एमडी और दूसरे आला अफसरों की सहमति के बाद ही दिए जाते हैं. इस पृष्ठभूमि में भ्रष्ट आला अफसर बचने नहीं चाहिए. नोटबंदी के बाद बड़ी तादाद में बैंक कर्मियों के फंसने के बाद किसी को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि हमारे बैंकिंग सेक्टर से जुड़े पेशेवर कितने ईमानदार हैं. बैंकिंग सेक्टर को पटरी पर लाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त और पारदर्शी किये बिना देश के चौतरफा विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है?
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