एक कहावत है 'नीम हकीम खतरा ए जान'. इसका मतलब ये कि अगर हकीम अपने इल्म में कच्चा है तो इससे मरीज की जाना भी जा सकती है. अब इन पंक्तियों को इस्लाम की नज़र से देखिये तो जो आज की स्थिति है वो शीशे कि तरह साफ हो जायगी. ताजा परिस्थितियों में यही कहा जा सकता है कि इस्लाम को खतरा 'काफिरों' से बिल्कुल नहीं है बल्कि इस्लाम के लिए खतरे का कारण वो मौलवी, मौलाना और इमाम हैं जो इसकी 'रखवाली' का जिम्मा उठाए हुए हैं और 'धर्म' की सुरक्षा के लिए किसी काले नाग की तरह कुंडली मारे बैठे हैं. इस बात को एक खबर से समझिये.
खबर है कि सऊदी अरब स्थित मदीना स्थित पैगम्बर मस्जिद में धर्मोपदेश के दौरान मस्जिद के इमाम शेख सालह अल- बुदैर ने एक बड़ा ही बेतुका बयान देते हुए कहा है कि 'इस्लाम के अंतर्गत महिलाएं जन्नत तभी जा सकती है जब उनके साथ कोई महरम मर्द हो' यानी अगर इमाम की बातों पर यकीन करें तो एक औरत के लिए जन्नत तब ही संभव है जब उसके साथ अटेंडेंट के रूप में एक मर्द हो और ये मर्द कोई और नहीं बल्कि उनके परिवार का सदस्य हो.
ज्ञात हो कि इससे पूर्व इन्हीं के द्वारा ये भी कहा गया था कि जन्नत में महिलाओं की कोई जगह नहीं है. वो चाहे जो कर लें वो कभी जन्नत नहीं जा सकतीं. तब शेख ने माना था कि चूँकि महिलाएं जन्म से ही गुनाहगार होती हैं अतः जन्नत में उनका कोई स्थान नहीं है. हां अगर वो चाहें तो पुरुषों को जन्नत भेज के अपने पाप कुछ हद तक कम कर सकती हैं.
मदीना मस्जिद में इमाम द्वारा दिए गए इस धर्मोपदेश से एक बात साफ हो जाती है कि आज भी इमाम जैसे लोग औरत को भोग की वस्तु के अलावा और कुछ नहीं समझते. और न ही ये इससे आगे निकलना चाहते हैं. कहा जा सकता है कि इनकी इस घटिया सोच से न केवल धर्म बदनाम हो...
एक कहावत है 'नीम हकीम खतरा ए जान'. इसका मतलब ये कि अगर हकीम अपने इल्म में कच्चा है तो इससे मरीज की जाना भी जा सकती है. अब इन पंक्तियों को इस्लाम की नज़र से देखिये तो जो आज की स्थिति है वो शीशे कि तरह साफ हो जायगी. ताजा परिस्थितियों में यही कहा जा सकता है कि इस्लाम को खतरा 'काफिरों' से बिल्कुल नहीं है बल्कि इस्लाम के लिए खतरे का कारण वो मौलवी, मौलाना और इमाम हैं जो इसकी 'रखवाली' का जिम्मा उठाए हुए हैं और 'धर्म' की सुरक्षा के लिए किसी काले नाग की तरह कुंडली मारे बैठे हैं. इस बात को एक खबर से समझिये.
खबर है कि सऊदी अरब स्थित मदीना स्थित पैगम्बर मस्जिद में धर्मोपदेश के दौरान मस्जिद के इमाम शेख सालह अल- बुदैर ने एक बड़ा ही बेतुका बयान देते हुए कहा है कि 'इस्लाम के अंतर्गत महिलाएं जन्नत तभी जा सकती है जब उनके साथ कोई महरम मर्द हो' यानी अगर इमाम की बातों पर यकीन करें तो एक औरत के लिए जन्नत तब ही संभव है जब उसके साथ अटेंडेंट के रूप में एक मर्द हो और ये मर्द कोई और नहीं बल्कि उनके परिवार का सदस्य हो.
ज्ञात हो कि इससे पूर्व इन्हीं के द्वारा ये भी कहा गया था कि जन्नत में महिलाओं की कोई जगह नहीं है. वो चाहे जो कर लें वो कभी जन्नत नहीं जा सकतीं. तब शेख ने माना था कि चूँकि महिलाएं जन्म से ही गुनाहगार होती हैं अतः जन्नत में उनका कोई स्थान नहीं है. हां अगर वो चाहें तो पुरुषों को जन्नत भेज के अपने पाप कुछ हद तक कम कर सकती हैं.
मदीना मस्जिद में इमाम द्वारा दिए गए इस धर्मोपदेश से एक बात साफ हो जाती है कि आज भी इमाम जैसे लोग औरत को भोग की वस्तु के अलावा और कुछ नहीं समझते. और न ही ये इससे आगे निकलना चाहते हैं. कहा जा सकता है कि इनकी इस घटिया सोच से न केवल धर्म बदनाम हो रहा है बल्कि ऐसे ही बयान लोगों को आतंकवाद जैसे कृत्यों की तरफ ढकेल रहे हैं. ज्ञात हो कि शायद ये इन मौलानाओं के बयानों का नतीजा है कि जिसके चलते दुनिया ये मान बैठी है कि इस्लाम के अंतर्गत अगर कोई जिहाद करते हुए मरता है तो वो स्वर्ग में 72 हूरों का भोग करता है.
गौरतलब है कि सऊदी परिवार के करीबी माने जाने वाले इमाम शेख सालह अल- बुदैर उन लोगों में हैं जो मुस्लिम समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. ऐसी स्थिति में इनके द्वारा दिया गया बयान लोगों को काफी प्रभावित करता है. ध्यान रहे कि मुस्लिम समुदाय का एक बहुत बड़ा तबका इन जैसे लोगों के बयानों को अपने दैनिक जीवन में शामिल करता है.
अंत में हम यही कहेंगे कि दुनिया को खतरा इस्लाम से नहीं है बल्कि ऐसे मौलवी मौलानाओं से है जो और कुछ नहीं बस अपने कृत्यों से इस्लाम की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं और न सिर्फ मुसलमानों बल्कि पूरी इंसानियत को शर्मिंदा कर रहे हैं.
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