टीबी एक ऐसी बीमारी है, जिसने पूरे विश्व को चिंता में डाल रखा है. इस बीमारी का इलाज उपलब्ध है लेकिन फिर भी यह फैलती ही जा रही है. पूरी दुनिया मेंं टीबी को जड़ से खत्म करने के उपाय किए जा रहे हैं, फिर भी न केवल टीबी बरकरार है बल्कि यह अन्य रोगों एवं समस्याओं का भी कारण बन रही है. टीबी के कारण महिलाओं मेंं बांझपन का खतरा बढ़ रहा है.विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे देश मेंं गर्भाश्य की टीबी का तेजी से प्रसार हो रहा है.
इससे गर्भाशय बुरी तरह प्रभावित होता है. भारत में गर्भाश्य मेंं टीबी की वजह से 25-30 फीसदी औरतें बांझपन झेलने पर मजबूर हो जाती हैं.एक संक्रामक रोग के रूप में टीबी उस स्वस्थ व्यक्ति को सरलता से चपेट मेंं ले लेती है, जो किसी संक्रंमित व्यक्ति के संपर्क में आ जाता है. जो लोग टीबी से संक्रमित व्यक्ति के नजदीक होते हैं, उनके रोगग्रस्त होने का अंदेशा अधिक हो जाता है.
संक्रमित व्यक्ति के छींकने, खांसने से टीबी का संक्रमण हवा द्वारा फैलता है. इससे कोई भी संक्रमित हो सकता है पर कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों के संक्रमित होने की आशंका ज्यादा रहती है. टीबी को केवल मात्र फेफड़ों का रोग समझा जाना भी समस्या की वजह बन रहा है. आरंभ में भले ही टीबी फेफड़ों पर असर डालती है लेकिन इसके उपरांत टीबी का बैक्टीरिया रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य हिस्सों में भी जा पहुंचता है.
इस प्रकार टीबी दिमाग, विभिन्न जोड़ों, हड्डियोंं, रीढ़, पेट, आंतों, मूत्र मार्ग, गर्भाश्य आदि को संक्रमित कर देती है. इस प्रकार अगर कोई महिला टीबी से संक्रमित हो जाती है तो उसके गर्भाश्य तक संक्रमण फैलने की आशंका तीस फीसदी बढ़ जाती है. हर बीमारी आने से पहले किसी न...
टीबी एक ऐसी बीमारी है, जिसने पूरे विश्व को चिंता में डाल रखा है. इस बीमारी का इलाज उपलब्ध है लेकिन फिर भी यह फैलती ही जा रही है. पूरी दुनिया मेंं टीबी को जड़ से खत्म करने के उपाय किए जा रहे हैं, फिर भी न केवल टीबी बरकरार है बल्कि यह अन्य रोगों एवं समस्याओं का भी कारण बन रही है. टीबी के कारण महिलाओं मेंं बांझपन का खतरा बढ़ रहा है.विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे देश मेंं गर्भाश्य की टीबी का तेजी से प्रसार हो रहा है.
इससे गर्भाशय बुरी तरह प्रभावित होता है. भारत में गर्भाश्य मेंं टीबी की वजह से 25-30 फीसदी औरतें बांझपन झेलने पर मजबूर हो जाती हैं.एक संक्रामक रोग के रूप में टीबी उस स्वस्थ व्यक्ति को सरलता से चपेट मेंं ले लेती है, जो किसी संक्रंमित व्यक्ति के संपर्क में आ जाता है. जो लोग टीबी से संक्रमित व्यक्ति के नजदीक होते हैं, उनके रोगग्रस्त होने का अंदेशा अधिक हो जाता है.
संक्रमित व्यक्ति के छींकने, खांसने से टीबी का संक्रमण हवा द्वारा फैलता है. इससे कोई भी संक्रमित हो सकता है पर कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों के संक्रमित होने की आशंका ज्यादा रहती है. टीबी को केवल मात्र फेफड़ों का रोग समझा जाना भी समस्या की वजह बन रहा है. आरंभ में भले ही टीबी फेफड़ों पर असर डालती है लेकिन इसके उपरांत टीबी का बैक्टीरिया रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य हिस्सों में भी जा पहुंचता है.
इस प्रकार टीबी दिमाग, विभिन्न जोड़ों, हड्डियोंं, रीढ़, पेट, आंतों, मूत्र मार्ग, गर्भाश्य आदि को संक्रमित कर देती है. इस प्रकार अगर कोई महिला टीबी से संक्रमित हो जाती है तो उसके गर्भाश्य तक संक्रमण फैलने की आशंका तीस फीसदी बढ़ जाती है. हर बीमारी आने से पहले किसी न किसी तरह के संकेत देती है. बीमारी से पहले शरीर में उसके लक्षण उभरते हैं.
अगर समय रहते उन संकेतों को समझ कर लक्षणों पर ध्यान दिया जाए तो बीमारी से निपटने में मदद मिल सकती है. डॉक्टरों का कहना है कि अगर किसी महिला को ज्यादा पसीना आए, उबकाई आए, हल्का बुखार आए, वजन कम हो, दिल तेजी से धडक़े, पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द हो, उल्टी आए, अत्यधिक रक्तस्राव हो या सफेद पानी का स्राव हो तो उसे सचेत हो जाना चाहिए लेकिन ज्यादातर मामलों में लोग इन लक्षणों की अनदेखी कर देते हैं.
ऐसे लक्षण उभरते हैं तो अपना वहम या आम बात मानकर उनकी उपेक्षा कर दी जाती है. इसी कारण गर्भाशय में टीबी के मामले बढ़ रहे हैं. ऐसे मामलों में टीबी के बैक्टीरिया सीधे गर्भाशय पर आक्रमण करते हैं, जिससे महिलाओं को अनियमित मासिक स्राव, गर्भ धारण में समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं. टीबी का दुष्परिणाम गर्भाशय की सबसे अंदरूनी परत कमजोर होने के रूप में सामने आता है, जिस कारण भू्रण अच्छी प्रकार विकसित नहीं हो पाता.
जो महिलाएं खान-पान पर ध्यान नहीं देतीं और स्वच्छता का ख्याल नहीं रखतीं, उनके स्वास्थ्य पर खतरा अधिक होता चला जाता है. हर जगह टीबी का नि:शुल्क उपचार उपलब्ध है. सरकार ने वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. अगर कोई रोगी इलाज कराना आरंभ करता है तो वह छह महीने का कोर्स पूरा कर रोग मुक्त हो सकता है.
महिलाओं को लक्षण सामने आने पर तुरंत जांच करा लेनी चाहिए मगर लापरवाही के कारण समस्या बढ़ती चली जाती है. टीबी का समय रहते इलाज शुरू करना अत्यंत आवश्यक है. डॉक्टर की सलाह से समुचित इलाज होना चाहिए. कई बार देखा गया है कि महिलाएं दो-तीन महीने के बाद दवाएं खाना बंद कर देती हैं. इस कारण संक्रमण उनके जिस्म मेंं फैलता है.
अगर किसी महिला को फेफड़ों की टीबी है और यदि वह उपचार नहीं करवाती है तो संक्रमण उसके गर्भाश्य अथवा अन्य अंगों तक फैलने का पूरा अंदेशा रहता है. लिहाजा, न केवल यथाशीघ्र टीबी का इलाज आरंभ करवाना चाहिए बल्कि पूरा इलाज करवाकर ही दवा बंद की जानी चाहिए. महिलाओं को पूरा पोषण मिलना चाहिए.
समय पर एवं पूरा इलाज करवा कर ही टीबी को मात दी जा सकती है. इसे लापरवाही से नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि टीबी ऐसा रोग है, जो विश्व में मौतों के दस मुख्य कारणों मेंं से एक है. यह संक्रामक कारक की वजह से मौतों की मुख्य वजह भी है. दुनिया के समस्त देशों में हर उम्र के लोग टीबी के शिकार बनते हैं पर टीबी की रोकथाम तथा इसका इलाज संभव है, यह हमें ध्यान मेें रखना चाहिए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.