क्या आप जानते हैं कि कुछ देशों में किसी महिला का अपहरण करने के बाद उससे शादी कर लेना कानूनी तौर पर जायज है? जी, ये कोई भद्दा मजाक नहीं, बल्कि कड़वा सच है!
एक ओर जहां महिलाएं समाज में समान अधिकार पाने की लड़ाई लड़ रही हैं तो दूसरी ओर दुनिया में अभी भी ऐसे कई देश हैं जहां के कानून उनको समानता का अधिकार तो दूर की बात जीने के अधिकार के साथ जीवन जीने के अधिकार को भी कठिन बनाते हैं. रूस में महिलाओं को ट्रेन या ट्रैक्टर चलाने पर पाबंदी है तो भारत में मैराइटल रेप जैसी वहशियत को कानूनी दर्जा मिलने जैसे सेक्सिस्ट कानून पूरे विश्व में पाए जाते हैं.
आइए आपको बताते पाँच ऐसे देशों की लिस्ट जिन्हें शायद ये अहसास ही नहीं है कि अब 21वीं सदी आ चुकी है.
जॉर्डन, लेबनान, और मोनाको जैसे देशों में महिलाओं को नागरिकता के नाम पर सेकेंड क्लास सीटिजन का दर्जा मिलता है
अभी भी ऐसे देश हैं जहां महिलाओं के खिलाफ भेदभाव में कोई कोताही नहीं की जाती. इन देशों में जब एक नागरिक के बतौर महिलाओं के पहचान की बात आती है तो उन्हें दोयम दर्जा ही दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर जॉर्डन और लेबनान में किसी बच्चे की नागरिकता उसके पिता से ही तय होता है. मतलब अगर बच्चे को जॉर्डन या लेबनान की नागरिकता चाहिए तो पिता जॉर्डन या लेबनान का नागरिक होना चाहिए. मां की राष्ट्रीयता क्या है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता!
हालांकि महिलाओं की दुर्दशा में लेबनान एक कदम आगे ही है. यहां के कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति किसी औरत का रेप या अपहरण करता है और वो पीड़िता से शादी कर लेता है तो उस पर कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.
नाइजीरिया में एक पति अपनी पत्नी को तब तक मार सकता है जब तक कि उसके शरीर पर कोई गंभीर चोट नहीं लग जाती
क्या आप जानते हैं कि कुछ देशों में किसी महिला का अपहरण करने के बाद उससे शादी कर लेना कानूनी तौर पर जायज है? जी, ये कोई भद्दा मजाक नहीं, बल्कि कड़वा सच है!
एक ओर जहां महिलाएं समाज में समान अधिकार पाने की लड़ाई लड़ रही हैं तो दूसरी ओर दुनिया में अभी भी ऐसे कई देश हैं जहां के कानून उनको समानता का अधिकार तो दूर की बात जीने के अधिकार के साथ जीवन जीने के अधिकार को भी कठिन बनाते हैं. रूस में महिलाओं को ट्रेन या ट्रैक्टर चलाने पर पाबंदी है तो भारत में मैराइटल रेप जैसी वहशियत को कानूनी दर्जा मिलने जैसे सेक्सिस्ट कानून पूरे विश्व में पाए जाते हैं.
आइए आपको बताते पाँच ऐसे देशों की लिस्ट जिन्हें शायद ये अहसास ही नहीं है कि अब 21वीं सदी आ चुकी है.
जॉर्डन, लेबनान, और मोनाको जैसे देशों में महिलाओं को नागरिकता के नाम पर सेकेंड क्लास सीटिजन का दर्जा मिलता है
अभी भी ऐसे देश हैं जहां महिलाओं के खिलाफ भेदभाव में कोई कोताही नहीं की जाती. इन देशों में जब एक नागरिक के बतौर महिलाओं के पहचान की बात आती है तो उन्हें दोयम दर्जा ही दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर जॉर्डन और लेबनान में किसी बच्चे की नागरिकता उसके पिता से ही तय होता है. मतलब अगर बच्चे को जॉर्डन या लेबनान की नागरिकता चाहिए तो पिता जॉर्डन या लेबनान का नागरिक होना चाहिए. मां की राष्ट्रीयता क्या है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता!
हालांकि महिलाओं की दुर्दशा में लेबनान एक कदम आगे ही है. यहां के कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति किसी औरत का रेप या अपहरण करता है और वो पीड़िता से शादी कर लेता है तो उस पर कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.
नाइजीरिया में एक पति अपनी पत्नी को तब तक मार सकता है जब तक कि उसके शरीर पर कोई गंभीर चोट नहीं लग जाती
घरेलू हिंसा. ये एक ऐसा कड़वा सच है जिससे दुनिया का कोई भी देश या समाज अनछुआ नहीं है. असल में दुनिया में 46 ऐसे देश हैं जो महिलाओं को घरेलू हिंसा से किसी भी तरह का कोई कानूनी संरक्षण नहीं देते हैं. हालांकि नाइजीरिया में पुरुषों अपनी विवाहिता पत्नियों को मारने की कानूनी अनुमति नहीं है.
नाइजीरिया के कानून के मुताबिक पति अपनी पत्नी को 'सुधारने के उद्देश्य से' मार सकता है. हालांकि नाइजीरिया वाले महिलाओं के प्रति इतने भी क्रूर नहीं हैं. उन्होंने पति की कुटाई पर ये शर्त जरुर लगा दी है कि वो बीवी को मार तो सकता है लेकिन उसके शरीर पर मार के या घाव के गहरे निशान नहीं पड़ने चाहिए. अब आखिर यार पत्नी की सुरक्षा के नाम पर उसे इतना हक देना तो बनता है ना? बेशर्म समाज और बेशर्म लोग.
चिली और ट्यूनीशिया जैसे देशों में पुरुष को खानदानी संपत्ति में ज्यादा हिस्सा दिया जाता है
जब बात संपत्ति के बंटवारे की बात आती है तो लड़की हो या लड़का हिस्सा बराबरी में बंटना चाहिए ना? लेकिन ट्यूनीशिया के लोगों को ऐसा नहीं लगता. वहां के 1956 में बने कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि- 'जिस भी घर में बेटा है, वहां की संपत्ति में पुरूष को महिला से दो गुना हिस्सा दिया जाएगा.'
यमन, सिंगापुर या भारत अभी भी मेराइटल रेप यानि वैवाहिक बलात्कार कोई क्राइम नहीं है
कुछ देशों के लिए सहमति नाम का शब्द अभी भी एक किसी दूसरे ग्रह का विषय है. क्योंकि वहां 'नहीं' का अर्थ 'नहीं' होता है. सिंगापुर और भारत में मैराइटल रेप यानि साथी की सहमति के बिना किया गया सेक्स किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. और ना ही इसे रेप माना जाता है.
यमन एक ऐसा देश है जहां अभी भी बाल विवाह काफी बड़े पैमाने पर होता है. यहां शादी में रेप को परिभाषित करने की कोई न्यूनतम उम्र तय नहीं है.
सऊदी अरब में महिलाओं को कार चलाना मना है
दुनिया में लिंग भेद का कोई प्रतिनिधि देश है तो वो है सऊदी अरब. ये देश आज भी 1990 में लगाए गए एक फतवे को फॉलो कर रहा है. इसके अनुसार महिलाओं को कार चलाने की मनाही है.
कई बहादुर महिलाओं द्वारा इस फतवे के विरोध किए जाने और महिलाओं के प्रति भेदभाव के खिलाफ लगतार अभियान चलाए जाने के बावजूद सऊदी अरब इस फैसले को बदलने को राजी नहीं हो. और सबसे मजेदार बात ये है कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने इस खाड़ी देश को अपने महिला अधिकार आयोग में चुना है. वो भी एक-दो नहीं बल्कि चार साल के कार्यकाल के लिए. जी नहीं, हम मजाक नहीं कर रहे हैं!
महिलाओं को अगर बराबरी का स्थान देना है तो इस तरह की संस्थागत असमानता को पहले खत्म करना होगा. 21वीं सदी में सेक्सिस्ट कानूनों के लिए कोई जगह नहीं है और ये बात दुनिया को जानने और समझने की जरुरत है.
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