मैं बचपन से ही खुद को बड़ा होशियार समझता था. जब मैं छोटा था तो मैं बिल्कुल अरबी घोड़े की तरह एक्टिव था और पूरे ज़ोर ओ शोर से हर काम को अंजाम देटा था, जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ मेरा स्वरुप बदला घर से लेकर स्कूल और दोस्तों से लेकर रिश्तेदारों तक सब मुझे गधा समझते थे. मैं चाहें अच्छा बुरा कुछ भी कहूं या उल्टे से लेकर सीधे तक कुछ भी करूं, अगले व्यक्ति का सवाल 'अरे गधे' से शुरू होता और वो ये मानते हुए सवाल पूछना ही बंद कर देता कि अरे ये क्या जवाब दे पायगा ये तो गधा है.
मुझे अच्छे से याद है पिता जी के बाद किसी बाहरी व्यक्ति के रूप में मुझे पहली बार गधा मैथ्स के सर ने कहा था. हां आज भी “न मैथ आती है, न मौत आती है! बेगैरती में जीवन कट रहा है कटे जा रहा है”.
मितरों, घोड़े से गधा बनने की प्रकिया बड़ी जटिल है. बाय गॉड बड़े कष्ट होते हैं लेकिन घोड़े से गधा बनने के अपने कई फायदे हैं, जो एक तरफ सामाजिक भी हैं वहीं दूसरी तरफ इसका आर्थिक लाभ भी है. कई बार आप महत्वपूर्ण कार्यों से सिर्फ इसलिए बच जाते हैं क्योंकि आप गधे हैं. कुल मिलाकर व्यक्ति को ताउम्र याद रखना चाहिए कि जो कल तक घोड़े थे वही आज के गधे हैं और यूं भी गधा एक सामाजिक प्राणी है.
मैं गधे पर बात कर रहा हूं. गधे पर बात करते हुए मुझे प्रसिद्ध व्यंगकार हरिशंकर पारसाई की एक बात याद गयी, मैं आगे बढूंगा मगर पारसाई की बात सुन लीजिये. पारसाई ने बहुत पहले कहा था “पर बेचारा गधा भी कैसा तिरस्कृत जानवर है. इसकी सहनशीलता, सीधापन और गंभीर उदासी ही तो इस अपमान का कारण नहीं है ? उसका भोलापन ही शायद उसे “मूर्ख” विशेषण दिलवाता हो.
आप इतना पढ़ चुके हैं हो सकता है अपने को गधा सुनकर आपका मन अशांत हो गया हो. एक काम कीजिए ठंडा पानी पी लीजिये और फिर विचार के समुद्र में गोते लगाइए. जब आप अपने...
मैं बचपन से ही खुद को बड़ा होशियार समझता था. जब मैं छोटा था तो मैं बिल्कुल अरबी घोड़े की तरह एक्टिव था और पूरे ज़ोर ओ शोर से हर काम को अंजाम देटा था, जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ मेरा स्वरुप बदला घर से लेकर स्कूल और दोस्तों से लेकर रिश्तेदारों तक सब मुझे गधा समझते थे. मैं चाहें अच्छा बुरा कुछ भी कहूं या उल्टे से लेकर सीधे तक कुछ भी करूं, अगले व्यक्ति का सवाल 'अरे गधे' से शुरू होता और वो ये मानते हुए सवाल पूछना ही बंद कर देता कि अरे ये क्या जवाब दे पायगा ये तो गधा है.
मुझे अच्छे से याद है पिता जी के बाद किसी बाहरी व्यक्ति के रूप में मुझे पहली बार गधा मैथ्स के सर ने कहा था. हां आज भी “न मैथ आती है, न मौत आती है! बेगैरती में जीवन कट रहा है कटे जा रहा है”.
मितरों, घोड़े से गधा बनने की प्रकिया बड़ी जटिल है. बाय गॉड बड़े कष्ट होते हैं लेकिन घोड़े से गधा बनने के अपने कई फायदे हैं, जो एक तरफ सामाजिक भी हैं वहीं दूसरी तरफ इसका आर्थिक लाभ भी है. कई बार आप महत्वपूर्ण कार्यों से सिर्फ इसलिए बच जाते हैं क्योंकि आप गधे हैं. कुल मिलाकर व्यक्ति को ताउम्र याद रखना चाहिए कि जो कल तक घोड़े थे वही आज के गधे हैं और यूं भी गधा एक सामाजिक प्राणी है.
मैं गधे पर बात कर रहा हूं. गधे पर बात करते हुए मुझे प्रसिद्ध व्यंगकार हरिशंकर पारसाई की एक बात याद गयी, मैं आगे बढूंगा मगर पारसाई की बात सुन लीजिये. पारसाई ने बहुत पहले कहा था “पर बेचारा गधा भी कैसा तिरस्कृत जानवर है. इसकी सहनशीलता, सीधापन और गंभीर उदासी ही तो इस अपमान का कारण नहीं है ? उसका भोलापन ही शायद उसे “मूर्ख” विशेषण दिलवाता हो.
आप इतना पढ़ चुके हैं हो सकता है अपने को गधा सुनकर आपका मन अशांत हो गया हो. एक काम कीजिए ठंडा पानी पी लीजिये और फिर विचार के समुद्र में गोते लगाइए. जब आप अपने विचारों के समुद्र में डीप..बहुत डीप...बिना किसी साज़ो सामान के गोते लगा रहे हों उस समय यूं ही टाइम पास के लिए ऊपर इंगित पारसाई की पंक्तियां और पंक्तियों के अंत के 10 शब्दों “उसका भोलापन ही शायद उसे “मूर्ख” विशेषण दिलवाता हो.” पर पुनः विचार करियेगा. यदि आपने इन पंक्तियों पर ग़ौर ओ फ़िक़्र कर ली तो आपको मोक्ष मिल जायगा और हो सकता है निर्वाण भी कहीं आउटर पर आपके झंडी हरी करने का इंतजार कर रहा हो और वो भी जल्दी ही आपके पास आ जाये.
बहरहाल आजकल शहर हो या गांव, सूबा हो या कस्बा हर तरफ गधों का बोलबाला है. यहां गधे हैं, वहां गधे हैं, इधर गधे हैं, उधर गधे हैं इनकी उनकी छोडिये सीएम और पीएम तक सब अपने को गधा मान रहे हैं और कॉलर चौड़ा करके डंके की चोट पर हंसते मुस्कुराते हुए ये बात स्वीकार कर रहे हैं कि “हां मैं गधा हूं. व्यक्ति हो या जानवर आज सभी गधे से चारों खाने चित हैं. आज गधे ने सबको परास्त करके रख छोड़ा है.
गौरतलब है कि गधे के अच्छे दिन अभी कुछ दिन पहले ही शुरू हुए हैं, जहां यूपी के चुनावी महासमर में हुंकार भरते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक सभा के दौरान सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से कहा था कि अब वो गुजरात के गधों का प्रचार करना बंद कर दें. अभी अखिलेश अपनी बात खत्म भी न कर पाए थे कि बीजेपी और मोदी समर्थकों ने अखिलेश की तीखी आलोचना करते हुए सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था. कुछ दिन बाद एक और जन सभा में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ये बात स्वीकारी थी कि वो सवा सौ करोड़ देशवासियों के गधे हैं, जो भूखा प्यासा रहकर मेहनत कर रहा है और देश को एक नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा रहा है.
अंत में इतना ही कि, अब अगर मुझे मेरा सीईओ, मैनेजर, एचआर और उनकी बीवियां गधा कहें तो मुझे अपना सीना छप्पन इंच चौड़ा कर लेना चाहिए और पूरे ज़ोर ओ शोर से इस बात को 3 से लेकर 36 बार तक कबूल कर लेना चाहिए कि हां, मैं गधा हूं, यूपी का गधा वो गधा जो है तो गधा मगर जिसमें इतना सामर्थ्य है कि वो जाने अनजाने ही सही मगर एक दिन इस उजड़े हुए देश की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल सकता है.
तो मितरों इस लेख को पढ़ने के बाद यदि आप किसी दोस्त, रिश्तेदार या बॉस के मुख से अपने लिए गधा शब्द सुनें तो घबराने की जरुरत नहीं है. मुस्कुराते हुए उन फ्रस्ट्रेटेड लोगों से कहियएगा- हां मैं गधा हूं और अपने गधा होने पर पूर्ण रूप से गर्व करता हूं, ठीक वैसे ही जैसे मेरे प्रधानसेवक को अपने गधा होने पर गर्व की अनुभूति होती है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.