कोर्ट से आने वाले फैसलों की ऐसी हैट्रिक कम ही देखने को मिलती है. ऐसे फैसले, जो सरकारों से निराश हो चुके जनमानस में फिर से उम्मीद की किरण जगा दें. तीन तलाक और निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पंचकूला स्पेशल कोर्ट का फैसला बिलकुल ऐसा ही है.
स्पेशल कोर्ट के फैसले से एक बात और भी साफ हो गयी है कि 'तोता' अगर पिंजरे से बाहर निकल कर काम करे तो कानून से खेलने वाले बच कर नहीं निकल सकते.
गुमनाम खत का कमाल
भारतीय न्याय व्यवस्था वाकई बेमिसाल है. इस व्यवस्था में कसाब जैसे आतंकवादी को भी इंसाफ पाने का पूरा मौका दिया जाता है जिसे सरेआम गोलियों की बौछार करते देखा जाता है - और एक गुमनाम खत भी सारी राजनीतिक पहुंच और तमाम लाव लश्कर पर भारी पड़ता है.
बता दें कि ये गुमनाम खत 13 मई 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखा गया था. खत में एक लड़की ने आपबीती सुनाई थी. ये खत वाकई आखें खोल देने वाला था.
"मैं पंजाब की रहने वाली हूं और अब पांच साल से डेरा सच्चा सौदा सिरसा (हरियाणा, धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा) में साधु लड़की के रूप में काम कर रही हूं. सैकड़ों लड़कियां भी डेरे में 16 से 18 घंटे सेवा करती हैं. हमारा यहां शारीरिक शोषण किया जा रहा है. मैं बीए पास लड़की हूं. मेरे परिवार के सदस्य महाराज के अंध श्रद्धालु हैं, जिनकी वजह से मैं डेरे में साधु बन गयी...
साधु बनने के दो साल बाद...
कोर्ट से आने वाले फैसलों की ऐसी हैट्रिक कम ही देखने को मिलती है. ऐसे फैसले, जो सरकारों से निराश हो चुके जनमानस में फिर से उम्मीद की किरण जगा दें. तीन तलाक और निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पंचकूला स्पेशल कोर्ट का फैसला बिलकुल ऐसा ही है.
स्पेशल कोर्ट के फैसले से एक बात और भी साफ हो गयी है कि 'तोता' अगर पिंजरे से बाहर निकल कर काम करे तो कानून से खेलने वाले बच कर नहीं निकल सकते.
गुमनाम खत का कमाल
भारतीय न्याय व्यवस्था वाकई बेमिसाल है. इस व्यवस्था में कसाब जैसे आतंकवादी को भी इंसाफ पाने का पूरा मौका दिया जाता है जिसे सरेआम गोलियों की बौछार करते देखा जाता है - और एक गुमनाम खत भी सारी राजनीतिक पहुंच और तमाम लाव लश्कर पर भारी पड़ता है.
बता दें कि ये गुमनाम खत 13 मई 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखा गया था. खत में एक लड़की ने आपबीती सुनाई थी. ये खत वाकई आखें खोल देने वाला था.
"मैं पंजाब की रहने वाली हूं और अब पांच साल से डेरा सच्चा सौदा सिरसा (हरियाणा, धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा) में साधु लड़की के रूप में काम कर रही हूं. सैकड़ों लड़कियां भी डेरे में 16 से 18 घंटे सेवा करती हैं. हमारा यहां शारीरिक शोषण किया जा रहा है. मैं बीए पास लड़की हूं. मेरे परिवार के सदस्य महाराज के अंध श्रद्धालु हैं, जिनकी वजह से मैं डेरे में साधु बन गयी...
साधु बनने के दो साल बाद एक दिन महाराज गुरमीत की प्रमाशया साधु गुरजोत ने रात 10 बजे मुझे बताया कि महाराज ने गुफा (महाराज के रहने की जगह) में बुलाया है. मैं क्योंकि पहली बार वहां जा रही थी, मैं बहुत खुश थी. यह जानकर कि आज खुद परमात्मा ने मुझे बुलाया है. गुफा में ऊपर जाकर जब मैंने देखा महाराज बेड पर बैठे हैं. हाथ में रिमोट है, सामने टीवी पर ब्लू फिल्म चल रही है. बेड पर सिरहाने की ओर रिवॉल्वर रखा हुआ है. मैं ये सब देख कर हैरान रह गई… मेरे पांव के नीचे की ज़मीन खिसक गई. यह क्या हो रहा है. महाराज ऐसे होंगे, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था. महाराज ने टीवी बंद किया व मुझे साथ बिठाकर पानी पिलाया और कहा कि मैंने तुम्हें अपनी खास प्यारी समझकर बुलाया है.
यह क्या हो रहा है. महाराज ऐसे होंगे, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था. महाराज ने टीवी बंद किया और मुझे साथ बिठाकर पानी पिलाया और कहा कि मैंने तुम्हें अपनी खास प्यारी समझकर बुलाया है. मेरा ये पहला दिन था. महाराज ने मेरे को बांहों में लेते हुए कहा कि हम तुझे दिल से चाहते हैं. तुम्हारे साथ प्यार करना चाहते हैं क्योंकि तुमने हमारे साथ साधु बनते वक्त तन मन धन सतगुरु को अर्पण करने को कहा था. सो अब ये तन मन हमारा है."
मानना पड़ेगा पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट को, जिसने न सिर्फ राम रहीम के खिलाफ रेप के आरोपों की जांच के लिए सीबीआई को हिदायत दी, बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचने तक निगरानी रखी. जब कोर्ट को लगा कि सरकार हीलाहवाली कर रही है तो बड़े ही सख्त लहजे में डीजीपी की भूमिका पर सवाल खड़े किये. कोर्ट ने साफ कर दिया कि अगर सरकार कानून व्यवस्था कायम नहीं रख सकती तो उसे सेना के हवाले किया जा सकता है. हाई कोर्ट ने साफ तौर पर हिदायत दी कि हर हालत में राम रहीम को सीबीआई कोर्ट तक पहुंचाया जाये. सजा सुनाये जाते वक्त मुल्जिम की मौजूदगी जरूरी होती है. हाई कोर्ट की सख्ती के बाद सरकार ने भी तत्परता दिखायी और जिस राम रहीम के यहां बड़े से बड़े सियासी शूरमा सिर झुकाये रहते थे वो कोर्ट के कठघरे में जज के सामने हाथ जोड़े खुद को बेगुनाह बताने की आखिरी कोशिश करता रहा.
बाकी बाबाओं के लिए बड़ा सबक
राम रहीम को बलात्कार के मामले में दोषी करार दिया जाना देश में रंगीन चोले के साये में गैरकानूनी कामों में लिप्त बाकी बाबाओं के लिए बहुत बड़ा सबक है. ये सबक बाबाओं के लिए ही नहीं उन हजारों लोगों के लिए भी है जिनकी अंध श्रद्धा ऐसे अपराधियों को भी भगवान मान बैठती है.
लोगों को समझना होगा कि चाहे जितने भी चमत्कार की ये बातें किया करें - इनका सारा ढोंग कभी न कभी सामने आना ही है. आसाराम और स्वामी नित्यानंद जैसे न जाने कितने ढोंगी हैं जो धर्म की आड़ में तमाम गैरकानूनी कामों में शामिल हैं. किसी पर हवाला कारोबार में शामिल होने की खबरें आती हैं तो किसी के राजनीतिक साठगांठ के इस्तेमाल से कारोबार बढ़ाने की. आसाराम से लेकर स्वामी नित्यानंद तक - इनकी बड़ी तादाद है जो बनते तो संन्यासी हैं लेकिन हकीकत तो ये है कि ये धर्म का नाम और कपड़े के रंग को अपने कारनामे छुपाने के लिए कवर के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
सुना करते थे कि आसाराम बड़े चमत्कारी हुआ करते थे. यहां तक कि एक बार दुर्घटना के शिकार हो चुके हेलीकॉप्टर को भी सुरक्षित जमीन पर उतार लिया जिसमें वो खुद भी बच गये और उनके भक्त भी. मालूम नहीं वो चमत्कार कहां गुम गया है. बलात्कार के आरोप में सलाखों के पीछे जिंदगी गुजार रहे आसाराम को अभी तक जमानत भी नहीं मिल सकी है.
खुद को बाबा बताने वाले स्वामी ओम सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की नियुक्ति को चैलेंज करने पहुंचे थे. जब जजों ने कहा कि ये उनका पब्लिसिटी स्टंट है तो ओम का कहना था कि बिग बॉस से वो इतनी शोहरत हासिल कर चुके हैं कि उन्हें पब्लिसिटी की जरूरत नहीं. ओम ने इसी क्रम में अपने करोड़ों प्रशंसकों का भी हवाला दिया.
आखिर में जब ओम और उनके साथी पर कोर्ट ने दस-दस लाख का जुर्माना देने की हिदायत दी तो औकात में आ गये - मेरे पास तो दस रुपये भी नहीं, दस लाख कहां से लाऊंगा. फिर जजों ने सलाह दी कि वो चाहें तो प्रशंसकों से एक-एक रुपये मांग लें और जुर्माना भरें. नाम चाहे जो भी हों संन्यासी का शक्ल में घूम रहे हर बाबा की हकीकत एक ही जैसी है.
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