इस देश में किसानों का परेशान होना कोई नई बात नहीं है. किसानों के विषय में, आये दिन हम कुछ न कुछ ऐसा सुनते हैं जो ये साफ दर्शाता है कि इस देश का अन्नदाता बदहाली की जिंदगी जी रहा है. चाहे दक्षिण के तमिलनाडु और कर्नाटक हों या फिर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और बुंदेलखंड सम्पूर्ण भारत का किसान हाशिये की जिंदगी जी रहा है.
इन दिनों भारत की सम्पूर्ण राजनीति में केवल किसानों का बोलबाला है. हर तरफ चर्चा का केंद्र बिंदु किसान और उनसे जुड़ी बातें हैं. अभी कुछ दिन पूर्व हम राजधानी दिल्ली में तमिलनाडु के किसानों का प्रदर्शन देख चुके थे. विदर्भ और बुंदेलखंड के किसानों की हालत और उनकी रोज होती आत्महत्याएं हमसे छुपी नहीं हैं. ताजा हालात में मंदसौर में मारे गए किसानों की खबरें हम पढ़ चुके हैं और उनपर अपनी प्रतिक्रिया देकर हमने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह भी कर लिया है.
तो इसी क्रम में आज अपने इस लेख में हम आपको एक ऐसी खबर से रु-ब-रु कराने वाले हैं जो आपको हैरत में डालने के लिए काफी है. खबर है कि काफी लम्बे समय से किसानों के हितों की बात करने वाली कर्नाटक सरकार ने किसानों के साथ मुआवजे के नाम पर ऐसा मजाक किया है जो किसी भी समझदार व्यक्ति के माथे पर पसीने के बल ला सकता है. बात कर्नाटक के हुबली की है जहां तीन साल तक फसल सूखने की एवज में यहां के किसानों को मुआवजा राशि दी गई है जो महज एक रुपए से लेकर तीन हजार रुपए तक है. बताया जा रहा ही कि ज्यादातर किसानों के अकाउंट में केवल 1 ही रुपए आए हैं.
मामला मीडिया में आने के बाद जब इस विषय की पड़ताल की गयी तो जो बयान अधिकारीयों ने दिया वो अनोखा और हैरत में डालने वाला था. अधिकारीयों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चूँकि पूर्व में सभी किसानों के अकाउंट आधार...
इस देश में किसानों का परेशान होना कोई नई बात नहीं है. किसानों के विषय में, आये दिन हम कुछ न कुछ ऐसा सुनते हैं जो ये साफ दर्शाता है कि इस देश का अन्नदाता बदहाली की जिंदगी जी रहा है. चाहे दक्षिण के तमिलनाडु और कर्नाटक हों या फिर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और बुंदेलखंड सम्पूर्ण भारत का किसान हाशिये की जिंदगी जी रहा है.
इन दिनों भारत की सम्पूर्ण राजनीति में केवल किसानों का बोलबाला है. हर तरफ चर्चा का केंद्र बिंदु किसान और उनसे जुड़ी बातें हैं. अभी कुछ दिन पूर्व हम राजधानी दिल्ली में तमिलनाडु के किसानों का प्रदर्शन देख चुके थे. विदर्भ और बुंदेलखंड के किसानों की हालत और उनकी रोज होती आत्महत्याएं हमसे छुपी नहीं हैं. ताजा हालात में मंदसौर में मारे गए किसानों की खबरें हम पढ़ चुके हैं और उनपर अपनी प्रतिक्रिया देकर हमने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह भी कर लिया है.
तो इसी क्रम में आज अपने इस लेख में हम आपको एक ऐसी खबर से रु-ब-रु कराने वाले हैं जो आपको हैरत में डालने के लिए काफी है. खबर है कि काफी लम्बे समय से किसानों के हितों की बात करने वाली कर्नाटक सरकार ने किसानों के साथ मुआवजे के नाम पर ऐसा मजाक किया है जो किसी भी समझदार व्यक्ति के माथे पर पसीने के बल ला सकता है. बात कर्नाटक के हुबली की है जहां तीन साल तक फसल सूखने की एवज में यहां के किसानों को मुआवजा राशि दी गई है जो महज एक रुपए से लेकर तीन हजार रुपए तक है. बताया जा रहा ही कि ज्यादातर किसानों के अकाउंट में केवल 1 ही रुपए आए हैं.
मामला मीडिया में आने के बाद जब इस विषय की पड़ताल की गयी तो जो बयान अधिकारीयों ने दिया वो अनोखा और हैरत में डालने वाला था. अधिकारीयों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चूँकि पूर्व में सभी किसानों के अकाउंट आधार कार्ड से लिंक किये गए थे तो हम इस बात की जांच कर रहे थे कि क्या पैसा सही अकाउंट में जा रहा है या नहीं. आपको बताते चलें कि धारवाड़, हासन और कोप्पल जिले के किसानों को फसल सूखने के लिए राज्य के राजस्व विभाग ने यह मुआवजा मिला है.
इस पूरे प्रकरण में सबसे दिलचस्प बात ये है कि किसानों के अकाउंट में 1 रुपए जमा किये गए हैं ऐसे में प्रश्न उठता है कि ऐसी क्या वजह थी कि अधिकारीयों को मुआवजे के नाम पर एक ऐसी राशि ट्रांसफर करना पड़ी जो किसी मजाक से कम नहीं है.
गौरतलब है कि कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों ही हमेशा से किसानों के हित की बात करते हैं और अभी बीते दिन ही राहुल गांधी किसानों से मिलने मंदसौर गए थे जहां मध्य प्रदेश पुलिस ने उन्हें राज्य में घुसने नहीं दिया. ज्ञात हो कि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और जिस तरह उन्होंने मुआवजे के नाम पर किसानों की भावना के साथ खिलवाड़ किया है वो अपने आप में निंदनीय है और किसानों के प्रति कांग्रेस पार्टी का दोगलापन दर्शाता है.
बहरहाल, अंत में हम यही कहेंगे कि यदि पार्टी का यही खोखला रवैया रहा तो वो दिन दूर नहीं जब इस देश से भारत की सबसे पुरानी पार्टी के तौर पर प्रसिद्ध कांग्रेस का अस्तित्व मिट जायगा. साथ ही हम राहुल गाँधी से भी यही कहना चाहेंगे कि वो इधर उधर की दौड़ भाग न करे और उन राज्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें जहां उनकी पार्टी की सरकार है. इसके अलावा यदि अधिकारीयों की बात मानी जाये तो इसे महज दुर्भाग्य ही कहा जायगा कि एक तरफ हम भारत को डिजिटल और कैशलेस करने की बात कर रहे हैं वहीं ऐसी ख़बरें न सिर्फ कैशलेस के सपने पर बल्कि सम्पूर्ण भारत के तंत्र पर सवालियां निशान लगा रही हैं.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.