बसपा प्रमुख मायावती ने कल राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. मगर किस बात पर दिया गया ये बड़ी हैरान करने वाली बात है. मायावती ने ये बोलकर इस्तीफा दिया कि उन्हें दलितों पर हो रहे हमले और सहारनपुर में हुई घटना पर बोलने नहीं दिया गया. जिसके बाद उन्होंने तुरंत ही इस्तीफा दे दिया.
मायावती पिछले कई सालों से राज्यसभा की सदस्य हैं. हर सदस्य को उप सभापति तीन मिनट बोलने की अनुमति देते हैं. जब मायावती के तीन मिनट खत्म हो गए तो उप सभापति के द्वारा ही उन्हें रोका गया. मायावती बखूबी जानती हैं कि तीन मिनट का समय तो हमेशा से ही तय होता है. उसके बाद घण्टी बजा दी जाती है. मायावती ये भी जानती हैं कि ऐसी घण्टी बजते उन्होंने कई बार देखा है. उसके बाद भी वो बोलती आयी हैं. रहा सवाल विपक्ष के विरोध का तो वो तो उनका काम ही है. संसद में जब तक हो हल्ला न हो तब तक वो संसद कैसे रह सकती है भला.
यानी कि मायावती घर से ही सोच कर आई थीं कि उन्हें आज इस्तीफा देना है मगर कैसे ? इसकी भी प्लानिंग पहले से थी. मायावती दलितों के लिए जोर जोर से बोलेंगी और सरकार पर आरोप लगाएंगी मगर जब बीजेपी उन्हें बोलने से रोकेगी तो वो जनता को या जिनके लिए वो बोल रही हैं यानी दलितों को ये दिखाएंगी कि देखिये मैं आपके लिए संसद में लड़ रही थी और बीजेपी ने मुझे बोलने नहीं दिया इसके बाद मैंने आप लोगों के लिए इस्तीफा दे दिया. मायावती सोचती हैं कि उनके इस इस्तीफे से शायद दलित समाज एक बार उनके समर्थन में आए.
अगले साल ही खत्म हो रहा कार्यकाल
मायावती का कार्यकाल अगले साल 2 अप्रैल 2018 को खत्म हो रहा है. यानी वो बखूबी जानती थीं कि समर्थकों का समर्थन पाने का इससे अच्छा मौका उनके पास नहीं होगा. वैसे भी मायावती के पास अब इतनी...
बसपा प्रमुख मायावती ने कल राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. मगर किस बात पर दिया गया ये बड़ी हैरान करने वाली बात है. मायावती ने ये बोलकर इस्तीफा दिया कि उन्हें दलितों पर हो रहे हमले और सहारनपुर में हुई घटना पर बोलने नहीं दिया गया. जिसके बाद उन्होंने तुरंत ही इस्तीफा दे दिया.
मायावती पिछले कई सालों से राज्यसभा की सदस्य हैं. हर सदस्य को उप सभापति तीन मिनट बोलने की अनुमति देते हैं. जब मायावती के तीन मिनट खत्म हो गए तो उप सभापति के द्वारा ही उन्हें रोका गया. मायावती बखूबी जानती हैं कि तीन मिनट का समय तो हमेशा से ही तय होता है. उसके बाद घण्टी बजा दी जाती है. मायावती ये भी जानती हैं कि ऐसी घण्टी बजते उन्होंने कई बार देखा है. उसके बाद भी वो बोलती आयी हैं. रहा सवाल विपक्ष के विरोध का तो वो तो उनका काम ही है. संसद में जब तक हो हल्ला न हो तब तक वो संसद कैसे रह सकती है भला.
यानी कि मायावती घर से ही सोच कर आई थीं कि उन्हें आज इस्तीफा देना है मगर कैसे ? इसकी भी प्लानिंग पहले से थी. मायावती दलितों के लिए जोर जोर से बोलेंगी और सरकार पर आरोप लगाएंगी मगर जब बीजेपी उन्हें बोलने से रोकेगी तो वो जनता को या जिनके लिए वो बोल रही हैं यानी दलितों को ये दिखाएंगी कि देखिये मैं आपके लिए संसद में लड़ रही थी और बीजेपी ने मुझे बोलने नहीं दिया इसके बाद मैंने आप लोगों के लिए इस्तीफा दे दिया. मायावती सोचती हैं कि उनके इस इस्तीफे से शायद दलित समाज एक बार उनके समर्थन में आए.
अगले साल ही खत्म हो रहा कार्यकाल
मायावती का कार्यकाल अगले साल 2 अप्रैल 2018 को खत्म हो रहा है. यानी वो बखूबी जानती थीं कि समर्थकों का समर्थन पाने का इससे अच्छा मौका उनके पास नहीं होगा. वैसे भी मायावती के पास अब इतनी सीटें नहीं कि वो दोबारा राजयसभा में प्रवेश कर सकें. मगर इसके बाद ही एक सवाल और सामने आया है. इस बार मायावती को विधानसभा चुनाव में सिर्फ 18 सीटें ही मिली थीं. जिसके बाद मायावती की राज्यसभा में दोबारा आने की संभावना खत्म हो चुकी है.
तो क्या उपचुनाव लड़ेंगी मायावती ?
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अभी तक संसद से त्यागपत्र नहीं दिया है. साथ ही उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद भी संसद से इस्तीफा देंगे. यानी कि गोरखपुर और फूलपुर ये दो लोकसभा सीटें हैं जिनपर उप चुनाव होने हैं. ऐसे में क्या मायावती इन दोनों ही सीटों पर किस्मत आजमाएंगी. क्योंकि वैसे भी मायावती के पास अब खोने के लिए कुछ नहीं है. ऐसे में वो एक सीट क्या इन दोनों ही सीटों पर खुद चुनाव लड़ सकती हैं. शायद राजयसभा से इस्तीफा भी इसीलिए प्लान कर दिया हो कि एक तरफ लोगों की सहानुभूति मिल जाये और दूसरी ओर लोकसभा का उपचुनाव भी लड़ लें. खैर देखते हैं कि आगे क्या होता है. फिलहाल इन दोनों ही सीटों पर बीजेपी बहुत मजबूत दिखाई देती है इसीलिए यहां से भी मायावती का जीतना मुश्किल ही होगा.
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