इन दिनों केरल के कोझीकोड में एक खतरनाक वायरस निपाह पहुंच का है, जो अब तक 10 से भी अधिक लोगों की जान ले चुका है. इस जानलेवा वायरस ने उस नर्स को भी अपना शिकार बना लिया जो निपाह वायरस से पीड़ित लोगों के इलाज कर रही थी. वो नर्स तो अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसने जो उसके त्याग को देखते हुए लोग उसे एक हीरो की तरह देख रहे हैं. इस नर्स का नाम लिनी पुथुस्सेरी था, जिसे पता चल चुका था कि वह इस वायरस की चपेट में आ चुकी हैं और अब उनका बचना नामुमकिन है. इसी के चलते उन्होंने अपने पति के नाम एक पत्र लिखा था, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
क्या लिखा है पत्र में?
नर्स ने बेहद भावुक अंदाज में अपने पत्र में लिखा था- 'साजीशेट्टा, मैं बस जा ही रही हूं. मुझे नहीं लगता, मैं दोबारा आपको देख पाऊंगी. माफ करना. हमारे बच्चों का ख्याल रखना. हमारा मासूम बच्चा, उसे अपने साथ खाड़ी देश (गल्फ कंट्री) में ले जाना. उन्हें अकेले मत छोड़ना और चले मत जाता जैसा मेरे पिता ने किया. बहुत सारा प्यार... किस.'
लिनी सिर्फ 31 साल की थीं, जिनके दो छोटे बच्चे भी हैं. बड़े बेटे का नाम सिद्धार्थ (5 साल) है और छोटे बेटे का नाम रितुल (2 साल) है. लिनी का ये पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. वह पेरांबरा तालुक अस्पताल में काम करती थीं. जब उन्हें इस बात का अहसास हो गया कि उन्हें निपाह वायरस ने...
इन दिनों केरल के कोझीकोड में एक खतरनाक वायरस निपाह पहुंच का है, जो अब तक 10 से भी अधिक लोगों की जान ले चुका है. इस जानलेवा वायरस ने उस नर्स को भी अपना शिकार बना लिया जो निपाह वायरस से पीड़ित लोगों के इलाज कर रही थी. वो नर्स तो अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसने जो उसके त्याग को देखते हुए लोग उसे एक हीरो की तरह देख रहे हैं. इस नर्स का नाम लिनी पुथुस्सेरी था, जिसे पता चल चुका था कि वह इस वायरस की चपेट में आ चुकी हैं और अब उनका बचना नामुमकिन है. इसी के चलते उन्होंने अपने पति के नाम एक पत्र लिखा था, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
क्या लिखा है पत्र में?
नर्स ने बेहद भावुक अंदाज में अपने पत्र में लिखा था- 'साजीशेट्टा, मैं बस जा ही रही हूं. मुझे नहीं लगता, मैं दोबारा आपको देख पाऊंगी. माफ करना. हमारे बच्चों का ख्याल रखना. हमारा मासूम बच्चा, उसे अपने साथ खाड़ी देश (गल्फ कंट्री) में ले जाना. उन्हें अकेले मत छोड़ना और चले मत जाता जैसा मेरे पिता ने किया. बहुत सारा प्यार... किस.'
लिनी सिर्फ 31 साल की थीं, जिनके दो छोटे बच्चे भी हैं. बड़े बेटे का नाम सिद्धार्थ (5 साल) है और छोटे बेटे का नाम रितुल (2 साल) है. लिनी का ये पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. वह पेरांबरा तालुक अस्पताल में काम करती थीं. जब उन्हें इस बात का अहसास हो गया कि उन्हें निपाह वायरस ने अपना शिकार बना लिया है तो उन्होंने एक बड़ा त्याग किया. मरते दम तक लिनी ने अपने परिवार को खुद से दूर रखा, ताकि उनके चहेतों में से किसी को भी इस बीमारी का वायरस न लगे.
मरने के बाद भी नहीं देख सका परिवार
वो स्थिति कैसे होगी, जब किसी के मरने के बाद घरवालों को उसे ठीक से देखना भी नसीब ना हो. ये ख्याल दिल में आते ही किसी की भी आंखें नम हो सकती हैं. लिनी के परिवार के साथ भी ऐसा ही हुआ. बच्चे आखिरी बार अपनी मां को देख भी नहीं सके. यह वायरस बेहद जानलेवा है, जिसका अभी तक कोई टीका या वैक्सीन तक उपलब्ध नहीं है. ऐसे में लिनी के घरवालों से इजाजत देखकर अस्पताल प्रशासन ने मौत के तुरंत बाद ही उनका दाह संस्कार कर दिया, ताकि यह वायरस और ना फैल सके. उनकी बीमारी के बारे में सुनकर दो दिन पहले ही उनके पति सजीश खाड़ी देश से वापस घर आए थे, वह खाड़ी देश में ही नौकरी करते हैं.
कितना खतरनाक है ये वायरस?
इस वायरस की वजह से करीब 10 लोगों की मौत हो चुकी है और 6 लोग गंभीर बताए जा रहे हैं. 25 लोगों को निगरानी में भी रखा गया है. इसकी वजह से सांस लेने में तकलीफ होती है, तेज बुखार, सिरदर्द, जलन, चक्कर आता है. बीमारी अधिक बढ़ जाने पर मरीज 48 घंटे में कोमा में भी जा सकता है और बहुत से मामलों में इससे मौत भी हो जाती है. सबसे जानलेवा बात ये है कि इस बीमारी के लिए कोई वैक्सीन यानी टीका नहीं है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक, निपाह वायरस फल खाने वाले चमगादड़ (फ्रूट बैट) से फलों में जाता है और फिर उन फलों से इंसानों और अन्य जानवरों पर आक्रमण करता है. नीचे गिरे फल और बीमार जानवरों से दूर रहें और साथ ही उन लोगों से भी दूर रहें जो निपाह से पीड़ित हैं, क्योंकि यह वायरस एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है.
पहली बार 1998 में मलेशिया के कांपुंग सुंगई निपाह में इसकी पहचान हुई थी, जिसके बाद इसका नाम 'निपाह' पड़ गया. सबसे पहले इसका असर सुअरों में देखा गया था. भारत में पहली बार जनवरी 2001 में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में इस वायरस को देखा गया था. तब इस वायरस से करीब 45 लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद 2001 और 2007 में पश्चिम बंगाल में इस वायरस ने करीब 50 लोगों की जान ले ली थी.
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