'इस घटना ने समाज को हिला दिया. ऐसा लगा ये धरती पर नहीं बल्कि किसी और ग्रह की घटना हो. घटना के बाद सदमे की सुनामी आ गई.' सुप्रीम कोर्ट ने जब इन कमेंट के साथ निर्भया रेप केस के आरोपियों पर सजा-ए-मौत के फैसले को बरकरार रखा, तो यकीन मानिए यह जीत केवल निर्भया और उनके परिवार की नहीं बल्कि उन करोड़ों भारतीयों की भी थी जो पिछले 4 बरस 4 महीने और 20 दिन से उन दरिंदों को कठोरतम सजा देने के पक्ष में थे.
हालांकि यह भी एक सच है कि निर्भया मामलें के चार साल बाद भी आज देश में महिला सुरक्षा के नाम पर कोरे वादे और दावे ही किये गए, इन चार सालों में ना तो नारी सुरक्षा के लिए कोई ठोस रणनीति बनाई गई और न ही महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में कमी लाई जा सकी. इसके उलट 16 दिसंबर 2012 के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में वृद्धि की दर सिहरन पैदा करने के लिए काफी है. केवल दिल्ली में बलात्कार के मामलों में तीन गुना वृद्धि देखी गई. जहां साल 2012 में दिल्ली में बलात्कार के 706 मामले दर्ज किये गए थे तो चार साल बाद साल 2016 में बलात्कार के मामले तिगुने होकर 2155 तक पहुंच गए. ये आकंड़े तब हैं जब दिल्ली में जनता सड़कों पर थी और सरकार नारी सुरक्षा के तमाम दावे करते नहीं थक रही थी.
कमोबेश यही वृद्धि दर पूरे देश के बलात्कार के मामले में भी देखने को मिली 2012 में जहां पूरे देश में बलात्कार के 24,923 मामले दर्ज किये गए थे तो 2015 तक यह आकंड़ा बढ़ कर 34651 जा पहुंचा.
यहां एक बात और गौर करने वाली है कि इसी दौरान दोषियों की रिहाई के मामलें में भी वृद्धि देखी गयी. 2013 में जहां 1636 रेप हुये और सजा 35 फिसदी को हुई तो वहीं 2015 में 2199 रेप हुये और सजा 29 फिसदी को ही मिल पायी.
यह आकंड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि देश भर...
'इस घटना ने समाज को हिला दिया. ऐसा लगा ये धरती पर नहीं बल्कि किसी और ग्रह की घटना हो. घटना के बाद सदमे की सुनामी आ गई.' सुप्रीम कोर्ट ने जब इन कमेंट के साथ निर्भया रेप केस के आरोपियों पर सजा-ए-मौत के फैसले को बरकरार रखा, तो यकीन मानिए यह जीत केवल निर्भया और उनके परिवार की नहीं बल्कि उन करोड़ों भारतीयों की भी थी जो पिछले 4 बरस 4 महीने और 20 दिन से उन दरिंदों को कठोरतम सजा देने के पक्ष में थे.
हालांकि यह भी एक सच है कि निर्भया मामलें के चार साल बाद भी आज देश में महिला सुरक्षा के नाम पर कोरे वादे और दावे ही किये गए, इन चार सालों में ना तो नारी सुरक्षा के लिए कोई ठोस रणनीति बनाई गई और न ही महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में कमी लाई जा सकी. इसके उलट 16 दिसंबर 2012 के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में वृद्धि की दर सिहरन पैदा करने के लिए काफी है. केवल दिल्ली में बलात्कार के मामलों में तीन गुना वृद्धि देखी गई. जहां साल 2012 में दिल्ली में बलात्कार के 706 मामले दर्ज किये गए थे तो चार साल बाद साल 2016 में बलात्कार के मामले तिगुने होकर 2155 तक पहुंच गए. ये आकंड़े तब हैं जब दिल्ली में जनता सड़कों पर थी और सरकार नारी सुरक्षा के तमाम दावे करते नहीं थक रही थी.
कमोबेश यही वृद्धि दर पूरे देश के बलात्कार के मामले में भी देखने को मिली 2012 में जहां पूरे देश में बलात्कार के 24,923 मामले दर्ज किये गए थे तो 2015 तक यह आकंड़ा बढ़ कर 34651 जा पहुंचा.
यहां एक बात और गौर करने वाली है कि इसी दौरान दोषियों की रिहाई के मामलें में भी वृद्धि देखी गयी. 2013 में जहां 1636 रेप हुये और सजा 35 फिसदी को हुई तो वहीं 2015 में 2199 रेप हुये और सजा 29 फिसदी को ही मिल पायी.
यह आकंड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि देश भर में महिला सुरक्षा को कितनी संजीदगी से लिया जाता है, एक तरफ देश की हर सरकार महिलाओं को पूर्ण सुरक्षा देने का दावा करती है, मगर कहीं भी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है, हालांकि इसके लिए केवल सरकारों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इन अपराधों के पीछे की एक वजह हमारे समाज में नैतिक मूल्य में पतन भी है, महिलाओं के खिलाफ अपराध के कई मामलों में यह देखने को मिला है कि इन अपराधों के लिए महिला के नजदीकी लोग ही जिम्मेदार होते हैं. ऐसी स्थिति में महिलाओं को एक सुरक्षित समाज देने के लिए सरकार और समाज दोनों को साथ आना होगा.
और अगर बात करें कल सुप्रीम कोर्ट में आये फैसले की तो यह उस बीमारी के इलाज में एक बहुत ही छोटा कदम है जो बीमारी हमारी जड़ों तक धंस गयी है, हालांकि फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने एक राह जरूर दिखाई है जो महिला सुरक्षा के मामले में मील का पत्थर साबित हो सकती है.
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