यकीन मानिए कि आपके बच्चे रोज सुबह दूध के नाम पर जहर पी रहे हैं. इस कठोर सच्चाई को खुद केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा. हर्षवर्धन ने विगत 16 मार्च को लोकसभा में स्वीकार किया कि देश में बेचा जाने वाला 68 प्रतिशत दूध भारत के खाद्य नियामक द्वारा निर्धारित शुद्धता के पैमाने पर खरा नहीं उतरता, यानी देश दूध के नाम पर जहर गले के नीचे से उतार रहा है.
डा. हर्षवर्धन ने संसद में माना कि अमृत को मिलावटखोर विष बना रहे हैं. दूध के लिए ये मानदंड सरकार के फूड रेगुलेटर भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने तय किए हैं. पूरे देश में दूध पर एक सर्वे किया गया था. जब देश भर से दूध के सैंपल उठा कर टेस्ट किए गए थे, ये नतीजे उसी सर्वे पर ही आधारित हैं. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के सर्वेक्षण के मुताबिक, दूध में पानी की मिलावट सबसे ज्यादा होती है, जिससे इसकी पौष्टिकता कम हो जाती है. अगर पानी में कीटनाशक और भारी धातुएं मौजूद हों तो ये सेहत के लिए खतरा हैं.
सामान्यतः मिलाया जाने वाला पानी शुद्ध न होने से पेट संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं. अफसोस कि मिलावट करने वालों में लिफाफाबंद दूध बेचने वाली मशहूर कम्पनियां भी शामिल हैं. इसमें सफेदी व दूध जैसा प्राकृतिक रंग व झाग का प्रभाव देने के लिए डिटर्जेंट पाऊडर, कास्टिक सोडा व यूरिया तक मिलाए जाते हैं. कई जगह तो ‘100 प्रतिशत नकली दूध’ बनाने के मामले भी सामने आए हैं. जाहिर है, इस तरह का नकली दूध पीने वालों से आप सहानुभूति ही रख सकते हैं या ईश्वर से उन्हें सेहत बक्शने की मिन्नतें भर कर सकते हैं.
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डा. हर्षवर्धन मुझे कुछ समय पहले बता रहे थे कि सरकार इस बात को सुनिश्चित करना चाहती है कि दूध में होने वाली मिलावटखोरी बंद हो जाए. इसी क्रम...
यकीन मानिए कि आपके बच्चे रोज सुबह दूध के नाम पर जहर पी रहे हैं. इस कठोर सच्चाई को खुद केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा. हर्षवर्धन ने विगत 16 मार्च को लोकसभा में स्वीकार किया कि देश में बेचा जाने वाला 68 प्रतिशत दूध भारत के खाद्य नियामक द्वारा निर्धारित शुद्धता के पैमाने पर खरा नहीं उतरता, यानी देश दूध के नाम पर जहर गले के नीचे से उतार रहा है.
डा. हर्षवर्धन ने संसद में माना कि अमृत को मिलावटखोर विष बना रहे हैं. दूध के लिए ये मानदंड सरकार के फूड रेगुलेटर भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने तय किए हैं. पूरे देश में दूध पर एक सर्वे किया गया था. जब देश भर से दूध के सैंपल उठा कर टेस्ट किए गए थे, ये नतीजे उसी सर्वे पर ही आधारित हैं. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के सर्वेक्षण के मुताबिक, दूध में पानी की मिलावट सबसे ज्यादा होती है, जिससे इसकी पौष्टिकता कम हो जाती है. अगर पानी में कीटनाशक और भारी धातुएं मौजूद हों तो ये सेहत के लिए खतरा हैं.
सामान्यतः मिलाया जाने वाला पानी शुद्ध न होने से पेट संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं. अफसोस कि मिलावट करने वालों में लिफाफाबंद दूध बेचने वाली मशहूर कम्पनियां भी शामिल हैं. इसमें सफेदी व दूध जैसा प्राकृतिक रंग व झाग का प्रभाव देने के लिए डिटर्जेंट पाऊडर, कास्टिक सोडा व यूरिया तक मिलाए जाते हैं. कई जगह तो ‘100 प्रतिशत नकली दूध’ बनाने के मामले भी सामने आए हैं. जाहिर है, इस तरह का नकली दूध पीने वालों से आप सहानुभूति ही रख सकते हैं या ईश्वर से उन्हें सेहत बक्शने की मिन्नतें भर कर सकते हैं.
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डा. हर्षवर्धन मुझे कुछ समय पहले बता रहे थे कि सरकार इस बात को सुनिश्चित करना चाहती है कि दूध में होने वाली मिलावटखोरी बंद हो जाए. इसी क्रम में उनके विभाग ने एक ऐसा स्कैनर तैयार किया गया है जो 40 सेकंड में दूध में मिलावट का पता लगा लेता है. यह मिलावट की अत्यंत कम मात्रा पकडऩे में भी सक्षम है. इससे एक जांच पर मात्र 50 पैसे के लगभग खर्च आता है. उन्होंने सांसदों को उनकी सांसद निधि से अपने क्षेत्र के लिए यह स्कैनर खरीदने का सुझाव भी दिया है. मैं बिहार में यह अमल करने की योजना भी बता रहा हूं. परंतु इतना ही काफी नहीं है. दूध में मिलावट रोकने के लिए व्यापक स्तर पर कार्रवाई करने और दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता है, ताकि मिलावटखोरों को डर रहे कि उन्हें मिलावट करने पर सख्त सजा मिलेगी, जिसके कि वे दूध के नाम पर जहर पिलाना बंद कर दें.
देश में दूध के नाम पर जहर परोसा जा रहा है |
दूध में होने वाली मिलावट को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित है. सुप्रीम कोर्ट ने मिलावटी दूध तैयार करने और इसकी बिक्री करने वालों को उम्र कैद की सजा देने की हिमायत करते हुए 6 दिसम्बर, 2013 को दिए अपने एक फैसले में राज्य सरकारों से कहा है कि इस संबंध में कानून में उचित संशोधन किया जाए.
न्यायमूर्ति के0एस0 राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए0के0 सीकरी की खंडपीठ ने कहा कि इस अपराध के लिए खाद्य सुरक्षा कानून में प्रदत्त छह महीने की सजा अपर्याप्त है. न्यायाधीशों ने अन्य राज्यों से कहा कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा की तरह उन्हें भी अपने कानून में उचित संशोधन करना चाहिए.
कोर्ट दूध में मिलावट के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इन याचिकाओं में सरकार को दूध में मिलावट की रोकथाम का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, जो कई राज्यों में अमल हो रहा है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई थी कि उत्तर भारत के कई राज्यों में दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाये जा रहे हैं, जिनसे लोगों के स्वास्थ्य और जीवन को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है. इस केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट जानना चाहता था कि राज्य सरकारें इस समस्या से निबटने और दूध में मिलावट पर रोक लगाने के लिये क्या कदम उठा रही हैं. राम जाने कि राज्य सरकारों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को क्या जानकारी दी गई.
आप भी मानेंगे कि मिलावट हमारे देश के राष्ट्रीय चरित्र का अभिन्न हिस्सा बन गई है. इसलिए दूध को अपवाद नहीं माना जा चाहिए. दवाईयों, मसालों, खाद्यानों, तेलों, दूध वगैरह में ग्राहकों की आंखों में धूल झोंकी जा रही है. मैं मानता हूं कि मिलावटखोरों को समाज के शक्तिशाली लोगों का संरक्षण हासिल है. अगर ये बात न होती तो हमारे देश में इतने बड़े पैमाने पर मिलावट का धंधा चल नहीं रहा होता. चीन में कुछ साल पहले ही दूध में मिलावट करने वालों को मौत की सजा देने की व्यवस्था कर दी गई है. कुछ दोषियों को फांसी पर लटकाया भी गया. उसके बाद सब लाइन पर आ गए. क्या हम कभी इस तरह का कानून बना सकेंगे? बेशक देश को जहर खिलाने-पिलाने वालों के खिलाफ कड़े से कड़े कानून बनने चाहिए. इन्हें मौत की सजा भी दी जाए तो कम होगी.
यह वास्तव में राष्ट्रीय चिंता का मसला है कि भारत के तीन में से दो नागरिक डिटर्जेंट, कॉस्टिक सोडा, यूरिया और पेंट मिले दूध पीते हैं. लेकिन, देश कन्हैया, जेएनयू, सहिष्णुता और असहिष्णुता की बहस में फंसा हुआ है. खाद्य उत्पाद नियंत्रक संस्था का सर्वे कई राज्यों को भी कठघरे में खड़ा करता है. उसके मुताबिक 5 राज्य ऐसे थे जहां से आए दूध के सभी सैंपलों में मिलावट थी. 100 फीसदी मिलावटी सैंपल देने वाले राज्य थे बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और मिजोरम. जबकि, गुजरात के 89 फीसदी सैंपल मिलावटी थे. वहीं जम्मू कश्मीर के 83 फीसदी सैंपल, पंजाब के 81 फीसदी, राजस्थान के 76 फीसदी दिल्ली, हरियाणा के 70 फीसदी और महाराष्ट्र के 65 फीसदी सैंपल मिलावटी दूध के थे. वहीं, मिलावटी दूध के दानव का सबसे कम असर आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पाया गया था, यानी हिंदी पट्टी में मिलावटी दूध के गुनाहगार मौज कर रहे हैं.
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मुझे कुछ समय पहले देश के एक प्रख्यात डाक्टर मित्र बता रहे थे कि मिलावटी दूध का शरीर पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ सकता है. इसके चलते दिल के रोग और कैंसर तक हो सकते है. यही नहीं, ऐसा दूध आंख से लेकर आंत तक दिल से लेकर प्रजनन क्षमता तक सब पर असर डालेगा. जो सेहतमंद इंसान को गंभीर रूप से बहुत बीमार बना डालेगा. यानी इस कारण लोगों में अनेक गंभीर बीमारियों के पनपने का खतरा पैदा हो गया है, जिनसे व्यक्ति की मौत भी हो सकती है. अब बताइये कि मिलावटखोरों को क्यों बख्शा जाए? ये तो पूरे देश को बीमार कर रहे हैं.
पहले और अब भी घरों में गृहणियां अपने बच्चों के रोज दूध-दही के सेवन पर जोर देती थी क्योंकि, यह बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए विशेष लाभदायक है. पर क्या अब गृहणियां जहरीला दूध पीने के लिए बच्चों से जिद्द कर सकती हैं ?
बड़ा सवाल ये है कि संबंधित सरकारी महकमें क्या कर रहे हैं मिलावट खोरों को पकड़ने के लिए? आखिर कानून में क्या परिभाषा है मिलावट करने वालों की? क्या मौजूदा कानूनों से मिलावटखोरी पर रोक लगाने की संभावनाएं समाप्त हो चुकी हैं? ये सभी अहम सवाल हैं. देश को इन सवालों के जवाब मिलने चाहिए. क्योंकि देश बेमुद्त के लिए तो दूध के नाम पर जहर नहीं पीता रहेगा.
सवाल यह है कि यदि भारत दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक राष्ट्र है तब आखिर मिलावट हो क्यों रही हैं निष्कर्श साफ है भारत में दूध की जितनी खपत है, उससे उत्पादन काफी कम है. अतः मिलावटखोरों को सख्त से सख्त सजा देना एक अहम सवाल है, लेकिन साथ ही महत्वपूर्ण यह है कि देश में दूध उत्पादन को मांग से अधिक कैसे किया जायें. भारत सरकार और राज्य सरकारों को इस पर तत्काल कारवाई करनी होगी और गांव-गांव में पषु आधारित कृशि कैसे वापस हो इसके लिए प्रयास करने होंगे. इससे दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ेगी. पशु आधारित कृषि होने से किसान उर्वकों और किटनाषकों के जाल से मुक्त हो सकेगा जिससे उसकी कृषि लाभकारी हो सकेगी. आज के दिन तो किसान कमाता है उर्वरक और किटनाषक कंपनियों के लिए. ट्रैक्टर फाइनेन्सरों के लिए और बैंक ऋण अदा करने के लिए. इससे बचा तो ठीक नहीं तो आत्महत्या का वैकल्पिक रास्ता अपनाता है. यदि कृषि को वापस पशु आधारित बनाया जाये तो बछड़ों और बैल कतलखाने से बचेंगे. भरपूर दूध भी मिलेगा. खेतों को खाद मिलेगा. कृशि लाभकारी होगी और मिलावटखोरों को लाभ नहीं मिलेगा तो वे दूसरे काम करने लगेंगे. पर्यावरण की सुरक्षा होगी सो अलग.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.