किसी समस्या का हल निकालने के लिए दिए गए समाधान पर ही अगर बहस होने लगे तो समस्या वहीं की वहीं रह जाती है. समस्या अगर ये है कि लड़का-लड़की अंतरजातीय विवाह कर रहे हैं, तो समाधान लड़कियों के मोबाइल इस्तेमाल करने पर रोक कैसे हो सकता है? अब इसी समाधान पर हर जगह चर्चा हो रही है.
असल में गुजरात के बनासकांठा जिले में रहने वाला ठाकोर समाज पिछले काफी समय से एक समस्या से जूझ रहा है. और वो समस्या है अंतर्जातीय विवाह. यहां आए दिन किसी न किसी के अंतर्जातीय विवाह करने की खबर आती है या फिर लड़की किसी और समुदाय के लड़के के साथ भाग जाती है. अपने समाज में इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए 12 गांवों में रहने वाले ठाकोर समाज के बुजुर्गों ने एक बैठक की और सर्वसम्मति से कई फैसले लिए.
ये फैसले हैं-
- अविवाहित महिलाओं के मोबाइल इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध. अब लड़कियों या अविवाहित महिलाओं को अगर मोबाइल फोन के साथ पकड़ा गया तो उनके माता-पिता को जिम्मेदार ठहराया जाएगा.
- अगर लड़की अंतरजातीय विवाह करेगी तो डेढ़ लाख रुपये और अगर लड़का अंतरजातीय विवाह करेगा तो दो लाख रुपए का जुर्माना भरना होगा.
- शादी समारोहों पर अनावश्यक खर्च कम करने के लिए डीजे, आतिशबजी और बड़ी बारातों पर भी रोक का फरमान है.
ये आखिरी वाली बात तो फिर भी समझ आती है कि शादी में किए गए अनावश्यक खर्चों पर रोक लगनी चाहिए. क्योंकि इससे लड़की वालों पर बहुत ज्यादा दबाव नहीं होगा और समाज में एक दूसरे को अपना रुतबे दिखाने की होड़ भी नहीं होगी. हो सकता है कि जुर्माने के डर से इस समाज के लोग दूसरी जाति में शादी करने से बचें इसलिए ये भी मान लेते हैं. लेकिन...
किसी समस्या का हल निकालने के लिए दिए गए समाधान पर ही अगर बहस होने लगे तो समस्या वहीं की वहीं रह जाती है. समस्या अगर ये है कि लड़का-लड़की अंतरजातीय विवाह कर रहे हैं, तो समाधान लड़कियों के मोबाइल इस्तेमाल करने पर रोक कैसे हो सकता है? अब इसी समाधान पर हर जगह चर्चा हो रही है.
असल में गुजरात के बनासकांठा जिले में रहने वाला ठाकोर समाज पिछले काफी समय से एक समस्या से जूझ रहा है. और वो समस्या है अंतर्जातीय विवाह. यहां आए दिन किसी न किसी के अंतर्जातीय विवाह करने की खबर आती है या फिर लड़की किसी और समुदाय के लड़के के साथ भाग जाती है. अपने समाज में इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए 12 गांवों में रहने वाले ठाकोर समाज के बुजुर्गों ने एक बैठक की और सर्वसम्मति से कई फैसले लिए.
ये फैसले हैं-
- अविवाहित महिलाओं के मोबाइल इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध. अब लड़कियों या अविवाहित महिलाओं को अगर मोबाइल फोन के साथ पकड़ा गया तो उनके माता-पिता को जिम्मेदार ठहराया जाएगा.
- अगर लड़की अंतरजातीय विवाह करेगी तो डेढ़ लाख रुपये और अगर लड़का अंतरजातीय विवाह करेगा तो दो लाख रुपए का जुर्माना भरना होगा.
- शादी समारोहों पर अनावश्यक खर्च कम करने के लिए डीजे, आतिशबजी और बड़ी बारातों पर भी रोक का फरमान है.
ये आखिरी वाली बात तो फिर भी समझ आती है कि शादी में किए गए अनावश्यक खर्चों पर रोक लगनी चाहिए. क्योंकि इससे लड़की वालों पर बहुत ज्यादा दबाव नहीं होगा और समाज में एक दूसरे को अपना रुतबे दिखाने की होड़ भी नहीं होगी. हो सकता है कि जुर्माने के डर से इस समाज के लोग दूसरी जाति में शादी करने से बचें इसलिए ये भी मान लेते हैं. लेकिन लड़कियों का मोबाइल इस्तेमाल करना कैसे अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा दे रहा है, ये बात समझ से परे है.
यहां एक बात और गौर करने वाली है. लड़कियों के मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने पर तर्क ये दिया जा रहा है कि ऐसा इसलिए किया गया है जिससे लड़कियां पढ़ाई पर ध्यान दे सकें.
सवाल पढ़ा-लिखा होने का नहीं, मानसिकता का है...
अब गांववालों और समाज के नेताओं द्वारा लिए गए फैसले पर आप ये कह सकते हैं कि इनकी सोच रूढ़ीवादी है, महिला विरोधी हैं. लेकिन हैरानी तो तब होती है जब ऐसे अजीब फैसलों पर लोगों को समझाने वाले लोग भी उनकी हां में हां मिलाने लगते हैं. कांग्रेस विधायक गनीबेन ठाकोर ने लड़कियों के मोबाइल फोन पर प्रतिबंध को सही ठहराते हुए कहा कि- लड़कियों के मोबाइल फोन इस्तेमाल करने पर रोक में उन्हें कुछ गलत नहीं दिखाई देता. उन्हें तकनीक से दूर रहना चाहिए और पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. मुझे माता-पिता से रोजाना ऐसी शिकायतें आती हैं कि उनकी बेटी किसी अन्य समुदाय के लड़के साथ भाग गई है. इसके साथ ही, पिछले एक महीने में कम से कम 10 ऐसे मामले सामने आए जिनमें लड़के या लड़की ने नहर में कूदकर आत्महत्या कर ली.
ये मान भी लें कि मोबाइल के इस्तेमाल से पढ़ाई प्रभावित होती है. तो भी सवाल उठता है कि क्या पढ़ाई पर ध्यान देना सिर्फ लड़कियों के लिए ही जरूरी है? पढ़ाई तो लड़कों के लिए भी समान रूप से जरूरी है, फिर ये नियम लड़कों पर लागू क्यों नहीं. तो गनीबेन ठाकोर का कहना है कि- 'लड़कियां फोन इस्तेमाल नहीं करेंगी तो इससे लड़कों पर अपने आप नियंत्रण लग जाएगा. लड़कियां मां-बाप के साथ रहती हैं इसिलए उनपर आसानी से नियंत्रण लगाया जा सकता है.' वाह री मानसिकता.
इनकी बातों से भी यही मालूम पड़ता है कि अंतर्जातीय विवाहों पर रोक लड़कियों के मोबाइल पर रोक लगाने से ही लगेगी. और रही बात लड़कों की तो उसके लिए तो शायद सभी आश्वस्त हैं कि उनपर नियंत्रण नहीं लगाया जा सकता.
असल वजह जिसपर ध्यान नहीं दिया जा रहा
इन अजीब फैसलों पर विधायक अल्पेश ठाकोर ने कहा कि- 'शादी में खर्चों को कम करने के लिए नियम अच्छे हैं लेकिन अविवाहित लड़कियों को फोन ना रखने देने संबंधी नियम में कुछ समस्या है. अगर वे ऐसा नियम लड़कों के लिए भी बनाएं तो यह अच्छा होगा.'
अगर अंतर्जातीय विवाह को ये लोग गंभीर समस्या मानते हैं तो इस समस्या का कारण उससे भी ज्यादा गंभीर है. समस्या ये है कि ठाकोर समाज के युवा लड़के, शराब के आदी हैं. ये इतना ज्यादा था कि ठाकोर समाज के नेता अल्पेश ठाकोर को इसके लिए अभियान चलाना पड़ा था. अल्पेश पहली बार चर्चा में भी तभी आए थे जब उनकी 'ठाकोर सेना' ने कुछ साल पहले मध्य गुजरात और उत्तर गुजरात में शराबबंदी को लेकर अभियान शुरू किया था. जिसके तहत उन्होंने देशी शराब के अड्डों पर छापे मारना शुरू किए थे. अल्पेश ने तब ये कहा था कि 'देशी शराब सबसे ज्यादा ठाकोर युवाओं को ही बर्बाद कर रही है.' इतना ही नहीं अल्पेश ने बेरोजगार युवाओं के लिये रोजगार और नशामुक्ति अभियान भी चलाया था.
शराब से अपना भविष्य खराब कर चुके ठाकोर समाज के युवाओं के लिए अगर शराबबंदी आंदोलन, नशामुक्ति अभियान चलाया जा रहा होगा तो जाहिर है वो क्या कमाते और क्या खाते होंगे. ऐसे में इस समाज के लोगों को अपनी लड़कियों के लिए अच्छे लड़के कैसे मिलेंगे. लड़कियां भी उन्हीं लड़कों की तरफ ध्यान देंगी जो उनको सही भविष्य दे सकें. और इसीलिए दूसरी जाति में विवाह करने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. इसीलिए लड़कियां दूसरी जाति ये लड़कों को पसंद कर रही हैं और अंतर्जातीय विवाह बढ़ रहे हैं.
लेकिन समस्या की असल वजह को यहां हर किसी ने अनदेखा कर दिया. इन जिम्मेदार लोगों को ठाकोर समाज के युवाओं का शराबी और बेरोजगार होना समस्या लग ही नहीं रहा. बेहतर तो यही होता कि लड़के अगर शराब पीते दिखाई देते तो उनके माता-पिता को जिम्मेदार ठहराया जाता. शराब पीते हुए पकड़े जाने पर जुर्माना लगाया जाता. शराब की लत से बचेंगे तो भविष्य की फिक्र करेंगे. और तभी पैसा कमाने की भी सुध भी होगी. ठाकोर समाज के लड़के ही अगर पढ़-लिखकर काबिल बन जाएंगे तो लड़कियां क्यों कहीं और जाएंगी. लेकिन हमारी पितृसत्ता कभी पुरुषों की खामियों को गंभीरता से नहीं लेती. उल्टा दोषार्पण महिलाओं पर ही किया जाता है. ठाकोर समाज को जहां रोक लगानी थी वहां अगर पहले लगा ली होती तो शायद ये नौबत ही नहीं आती. लेकिन ये लोग अपनी गलतियों से अब भी सीखने को राजी नहीं.
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