कहते हैं कि मां बनना किसी भी महिला के लिए गर्व की बात होती है. कम से कम हमारे बुजुर्गों ने तो यही सिखाया है हमें. गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम तरीके, कायदे-कानून होते हैं और ये भी बताया जाता है कि बच्चों को कैसे संभालना है, लेकिन एक बात बताइए अगर किसी बच्चे को ही ये जिम्मेदारी दे दी जाए तो क्या होगा? क्या कोई 10 साल की बच्ची अपने बच्चे को संभाल पाएगी?
चंडीगढ़ की एक घटना है जहां डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 10 साल की एक रेप सर्वाइवर को अबॉर्शन करवाने से मना कर दिया. लड़की की प्रेग्नेंसी की अवधि 26 हफ्ते हो चुकी थी. उसका रेप उसके मामा ने ही किया था. कोर्ट का कहना है कि सिर्फ 20 हफ्ते तक ही कानूनी तौर पर किसी भी महिला को बच्चे अबॉर्ट करवाने की इजाजत होती है. क्या ये वाकई सही है? चलिए एक बार कानून को देख लेते हैं...
क्या कहता है कानून...
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के अंतरगत उन मामलों को बताया गया है जहां प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन कानूनी है. इस एक्ट के तहत अबॉर्शन सिर्फ किसी ऐसे डॉक्टर से करवाया जाए जिसके खिलाफ कोई केस ना हो. इसके अलावा, प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन सिर्फ इन मामलों में हो सकता है...
1. जहां प्रेग्नेंसी की अवधि 12 हफ्तों से अधिक ना हुई हो.
2. जहां दो या दो अधिक डॉक्टरों की परमीशन ली जा चुकी हो और प्रेग्नेंसी की अवधि 12 हफ्तों से 20 हफ्तों के बीच हो.
3. जहां महिला की जान को प्रेग्नेंसी से खतरा हो.
4. जहां महिला को या तो शारीरिक तौर पर या मानसिक तौर पर कोई नुकसान पहुंच सकता हो.
5. जहां बच्चे को कोई खतरा हो और जन्म लेने के बाद उसे किसी तरह की कोई बीमारी या मानसिक तकलीफ...
कहते हैं कि मां बनना किसी भी महिला के लिए गर्व की बात होती है. कम से कम हमारे बुजुर्गों ने तो यही सिखाया है हमें. गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम तरीके, कायदे-कानून होते हैं और ये भी बताया जाता है कि बच्चों को कैसे संभालना है, लेकिन एक बात बताइए अगर किसी बच्चे को ही ये जिम्मेदारी दे दी जाए तो क्या होगा? क्या कोई 10 साल की बच्ची अपने बच्चे को संभाल पाएगी?
चंडीगढ़ की एक घटना है जहां डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 10 साल की एक रेप सर्वाइवर को अबॉर्शन करवाने से मना कर दिया. लड़की की प्रेग्नेंसी की अवधि 26 हफ्ते हो चुकी थी. उसका रेप उसके मामा ने ही किया था. कोर्ट का कहना है कि सिर्फ 20 हफ्ते तक ही कानूनी तौर पर किसी भी महिला को बच्चे अबॉर्ट करवाने की इजाजत होती है. क्या ये वाकई सही है? चलिए एक बार कानून को देख लेते हैं...
क्या कहता है कानून...
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के अंतरगत उन मामलों को बताया गया है जहां प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन कानूनी है. इस एक्ट के तहत अबॉर्शन सिर्फ किसी ऐसे डॉक्टर से करवाया जाए जिसके खिलाफ कोई केस ना हो. इसके अलावा, प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन सिर्फ इन मामलों में हो सकता है...
1. जहां प्रेग्नेंसी की अवधि 12 हफ्तों से अधिक ना हुई हो.
2. जहां दो या दो अधिक डॉक्टरों की परमीशन ली जा चुकी हो और प्रेग्नेंसी की अवधि 12 हफ्तों से 20 हफ्तों के बीच हो.
3. जहां महिला की जान को प्रेग्नेंसी से खतरा हो.
4. जहां महिला को या तो शारीरिक तौर पर या मानसिक तौर पर कोई नुकसान पहुंच सकता हो.
5. जहां बच्चे को कोई खतरा हो और जन्म लेने के बाद उसे किसी तरह की कोई बीमारी या मानसिक तकलीफ हो.
यहां...
1. प्रेग्नेंसी जिसमें मां की उम्र 18 साल से कम है वहां उसके लिए एक अभिभावक होना चाहिए.
2. अगर महिला का मानसिक संतुलन सही नहीं है तो भी उसके लिए एक अभिभावक होना चाहिए.
अब इस मामले में कुछ बातों को समझाया गया है.. एक्ट में ये लिखा है कि रेप से पैदा हुआ बच्चा महिला के मानसिक संतुलन के लिए सही नहीं है.
एक्ट में रेप का जहां जिक्र है...
'pregnancy is alleged by the pregnant woman to have been caused by rape, the anguish caused by such pregnancy shall be presumed to constitute a grave injury to the mental health of the pregnant woman.'
(यानी रेप की वजह से यदि प्रेग्नेंसी का हवाला दिया गया है, तो उससे होने वाले मानसिक तनाव को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक समझा जाना चाहिए.)
इसके अलावा, ये भी बताया गया है कि किसी मेडिकल डिवाइस के फेल होने के कारण या फिर ऐसे ही किसी कारण से प्रेग्नेंसी हुई हो और महिला के पहले से ही बच्चे हों, उस केस में भी अनचाही प्रेग्नेंसी से महिला को मानसिक तकलीफ पहुंच सकती है.
पर ये कानून क्या ठीक है?
यहां एक बात समझ लीजिए अगर कानून है तो उसका सही से इस्तेमाल भी जरूरी है. कानून तो ये कहता है कि रेप से पैदा हुआ बच्चा मां के मानसिक संतुलन के लिए सही नहीं तो फिर ऐसे केस बार-बार क्यों देखे जाते हैं जहां किसी रेप पीड़िता को बच्चा पैदा करना ही होता है. एक 10 साल की छोटी बच्ची जो खुद को नहीं ठीक से संभाल सकती है वो आखिर बच्चा कैसे संभालेगी.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक दो डॉक्टरों ने ये साफ किया था कि ये प्रेग्नेंसी सही नहीं है. पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) के डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सट्रिक्स और गायनेकॉलिजी में कार्यरत रश्मी बग्घा कहती हैं कि 10 साल की लड़की का मां बनना उन्होंने पहली बार देखा है और इतनी कम उम्र में नॉर्मल डिलिवरी में काफी खतरा होता है. इसी साल मई में 10 साल की एक लड़की की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की इजाजत रोहतक कोर्ट ने दे दी थी फिर चंडीगढ़ कोर्ट ने क्यों नहीं?
डॉक्टरों की राय है कि लड़की की पेल्विक बोन सही तरह से डेवलप नहीं हुई है और इस उम्र में फुल टर्म प्रेग्नेंसी काफी खतरनाक हो सकती है. नॉर्मल डिलिवरी का सवाल ही नहीं वहीं ऑपरेशन से भी काफी मुश्किल होगी और खतरा भी है.
अमेरिकन सोसाइटी फॉर रिप्रोडक्टिव मेडिसिन के जाने माने गायनैकोलॉजिस्ट उमेश जिंदल का कहना है कि अगर कानूनी तौर पर इजाजत मिल गई तो उस बच्ची का अबॉर्शन करवाना ही सही होगा.
अब आप बताइए कि क्या इस कानून को एक बार सामाजिक तरीके से नहीं देखा जाना चाहिए. कुछ समय पहले की बात है जब गुजरात में एक महिला को इसी तरह से अबॉर्शन करवाने की मनाही थी. उसका सिर्फ एक ही सवाल था कि क्या करेगी वो उस बच्चे का? क्या उसे समाज अपनाएगा? ये एक ऐसा सवाल है जिसे अगर आप नहीं सुलझाएंगे तो ये और उलझता जाएगा.
एक सवाल आपसे भी है कि क्या किसी कानून में बदलाव की जरूरत नहीं होती? इस कानून में तो साफ लिखा है कि रेप से हुआ बच्चा मां के मानसिक संतुलन के लिए सही नहीं है फिर आखिर क्यों इस केस को स्पेशल नहीं माना जा रहा है? ये सवाल है जिसका जवाब अब बहुत जरूरी हो गया है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.