चंद्रमा पर अपने मिशन 2 के लिए भारत अब पूरी तरह तैयार है. भारत का बाहुबली यानी चंद्रयान-2 को अपने मिशन मून पर जाने के लिए पूरी तरह से तैयार कर लिया गया है और इसकी उड़ान से पहले तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. चंद्रयान-2 को ले जाने वाले रॉकेट यान जीएसएलवी मार्क-III की सतीश धवन स्पेस सेंटर पर अंतिम जांच चल रही है. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन(ISRO) स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से 15 जुलाई को तड़के 2.51 बजे चंद्रयान-2 उड़ान भरेगा. इसरो के मुताबिक लगभग 54 से 55 दिन के सफर के बाद 6 सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 उतरेगा. खास बात ये है कि चंद्रयान-2 दुनिया का पहला ऐसा यान होगा जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा.
बता दें कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चीन, अमेरिका के साथ-साथ रूस ने कभी भी जाने की कोशिश नहीं की है. हालांकि इससे पहले चीन के चांग'ई-4 यान ने दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर लैंडिंग की थी. चंद्रमा का यह क्षेत्र वैज्ञानिकों के लिए अभी तक अनजान बना हुआ है.
क्यों खास है चांद का दक्षिणी ध्रुव
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बाकी हिस्से की तुलना में ज्यादा छाया होती है. ये चांद का एक ऐसा भाग है जहां बड़े बड़े क्रेटर्स है और इस भाग में सूर्य की किरणे भी नहीं पहुंच पाती हैं. दक्षिणी ध्रुव पर तापमान काफी कम होता है क्योंकि यहां सूर्य की किरणे तिरछी पड़ती हैं. यदि कोई अंतरिक्ष यात्री इस ध्रुव पर खड़ा होता है तो उसे सूर्य क्षैतिज रेखा पर दिखाई देगा और वह चांद की सतह से लगता हुआ और चमकता हुआ नजर आएगा. इस क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी होने की संभावना है. अगर चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी...
चंद्रमा पर अपने मिशन 2 के लिए भारत अब पूरी तरह तैयार है. भारत का बाहुबली यानी चंद्रयान-2 को अपने मिशन मून पर जाने के लिए पूरी तरह से तैयार कर लिया गया है और इसकी उड़ान से पहले तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. चंद्रयान-2 को ले जाने वाले रॉकेट यान जीएसएलवी मार्क-III की सतीश धवन स्पेस सेंटर पर अंतिम जांच चल रही है. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन(ISRO) स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से 15 जुलाई को तड़के 2.51 बजे चंद्रयान-2 उड़ान भरेगा. इसरो के मुताबिक लगभग 54 से 55 दिन के सफर के बाद 6 सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 उतरेगा. खास बात ये है कि चंद्रयान-2 दुनिया का पहला ऐसा यान होगा जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा.
बता दें कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चीन, अमेरिका के साथ-साथ रूस ने कभी भी जाने की कोशिश नहीं की है. हालांकि इससे पहले चीन के चांग'ई-4 यान ने दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर लैंडिंग की थी. चंद्रमा का यह क्षेत्र वैज्ञानिकों के लिए अभी तक अनजान बना हुआ है.
क्यों खास है चांद का दक्षिणी ध्रुव
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बाकी हिस्से की तुलना में ज्यादा छाया होती है. ये चांद का एक ऐसा भाग है जहां बड़े बड़े क्रेटर्स है और इस भाग में सूर्य की किरणे भी नहीं पहुंच पाती हैं. दक्षिणी ध्रुव पर तापमान काफी कम होता है क्योंकि यहां सूर्य की किरणे तिरछी पड़ती हैं. यदि कोई अंतरिक्ष यात्री इस ध्रुव पर खड़ा होता है तो उसे सूर्य क्षैतिज रेखा पर दिखाई देगा और वह चांद की सतह से लगता हुआ और चमकता हुआ नजर आएगा. इस क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी होने की संभावना है. अगर चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ की खोज कर लेता है, तो यहां इंसानों के रुकने लायक व्यवस्था करने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. यहां बेस कैम्प बनाए जा सकेंगे, साथ ही अंतरिक्ष में नई खोज का रास्ता भी खुलेगा. इससे पहले चंद्रयान-1 मिशन दस साल पहले लॉन्च किया गया था. चंद्रयान-2 इसका एडवांस वर्जन है.
मिशन की कमान महिलाओं के हाथ
भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब किसी प्लैनेटरी मिशन का प्रभार महिलाओं को मिला है. डाटा हैंडलिंग की विशेषज्ञ एम वनिता को इस मिशन के लिए प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया है जबकि रितु करिधाल को इसका मिशन डायरेक्टर बनाया गया है. गौरतलब है कि चंद्रयान-2 के मिशन में करीब 30 फीसदी महिलाओं ने कमान संभाल रखी है.
मिशन में खर्च होंगे करोड़ों रुपये
पूरे चंद्रयान-2 मिशन में 603 करोड़ रुपए का खर्च होने का अनुमान है जिसमें सिर्फ इसको ले जाने वाले रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 की कीमत 375 करोड़ रु. है. 380 क्विंटल वजनी स्पेसक्राफ्ट में 3 मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर होंगे. ऑर्बिटर में 8, लैंडर में 3 और रोवर में 2 यानी कुल 13 पेलोड होंगे.
बाहुबली है जीएसएलवी एमके-3 रॉकेट
जीएसएलवी एमके-3 का वजन करीब 6000 क्विंटल है जो करीब 5 बोइंग जंबो जेट के बराबर है. यह अंतरिक्ष में काफी वजन ले जाने में सक्षम है. लिहाजा इस रॉकेट को बाहुबली भी कहा जा रहा है.
चंद्रयान-2 के चंद्रमा पर जाने का क्या है लक्ष्य?
चंद्रयान-2 के चंद्रमा पर जाने के बाद ये अंदेशा लगाया जा रहा है कि इससे अंतरिक्ष विज्ञान के लिए नए नए रास्ते खुलेंगे है. यह चंद्रयान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी और खनिजों या उसके संकेतों की खोज करेगा. इसके अलावा चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिजों को खोजने का प्रयास करेगा. साथ ही वह चांद के वातावरण और इसके इतिहास पर भी डेटा जुटाएगा. अगर चंद्रयान-2 यहां पानी के सबूत खोज पाता है तो यह अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक बड़ा कदम होगा.
बेस कैम्प बनाने की संभावनाएं मजबूत होंगी
एस्ट्रोनॉमी एक्सपर्ट की मानें तो चांद पर पानी न होने के चलते वहां कोई भी अंतरिक्ष यात्री ज्यादा दिन नहीं रह सकता. अगर चंद्रयान-2 यहां बर्फ खोजने में सफल हो गया तो यहां ऑक्सीजन की समस्या खत्म हो जाएगी. बर्फ से पीने के पानी और ऑक्सीजन की व्यवस्था हो सकेगी जिसके बाद यहां बेस कैम्प बनाए जा सकेंगे. जहां चांद से जुड़े शोधकार्य के साथ-साथ अंतरिक्ष से जुड़े अन्य मिशन की तैयारियां भी की जा सकेंगी.
चांद पर ऊर्जा पैदा की जा सकेगी
दक्षिणी ध्रुव में एक हिस्सा ऐसा भी है, जो न तो ज्यादा ठंडा है और न ही अंधकार. यहां के शेकलटन क्रेटर्स के पास वाले हिस्सों में सूर्य लगातार 200 दिनों तक चमकता है. यहां पर अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को शोधकार्य में बड़ी मदद मिल सकती है. यहां वैज्ञानिक सूर्य की किरणों का उपयोग कर ऊर्जा की आपूर्ति कर सकते हैं, जो मशीनों और अन्य शोधकार्य के लिए जरूरी होगी.
कंटेंट- अमित प्रकाश (इंटर्न- रिसर्च टीम, आजतक)
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