जिस वक़्त मैं ये आर्टिकल लिख रहा था, ठीक उसी वक़्त मेरठ के परिवहन विभाग की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई. रिपोर्ट के अनुसार हाल में सिटी ट्रांसपोर्ट के लिए लगाई गई इलेक्ट्रिक बसें घाटे में चल रही हैं. प्रति किमी कमाई है 30 रू और खर्चा है 75 रू प्रति किमी. शॉकिंग? पर सच है. आइए कुछ अहम बातों पर प्रकाश डालें.
ईंधन:
जैसे की आपकी कार के लिए पेट्रोल डीजल या सीएनजी की जरूरत होती है. वैसे ही EV के लिए बिजली नजदीकी बिजली घर से आती है. अभी भी हमारे देश की कुल इंस्टॉल्ड कैपेसिटी का 60% या अधिक उन बिजली घर से आता है जहां फॉसिल फ्यूल जैसे कोयला या गैस इस्तेमाल होता है. यानि आपकी हरे नंबर की रजिस्ट्रेशन प्लेट के पीछे अभी भी बिजली घर का काला धुआं सहयोगी है.
भारत में ऊर्जा के क्षेत्र में डिमांड और सप्लाई के बीच का अंतर नीचे दिए हुए आंकड़ों से समझा जा सकता है जो की केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के वेबसाइट पर मौजूद हैं. FY 2021-22 (सभी आंकड़े M मिलियन यूनिट में) कुल जरूरत: 13,75663 कुल उपलब्धता : 13,69,818 कुल कमी: 5845 M ज्यादा EV मतलब ज्यादा काला धुआं आमतौर पर भारत में चौपहिया वाहन में बैटरी पैक 30 या 31 KWh कैपेसिटी का होता है.
एक उचित अनुमान से यदि चलें तो एक बैटरी पैक चार्ज होने के लिए करीब 30 यूनिट बिजली खर्च होती है. और इस पर ड्राइव रेंज यानी माइलेज मिलता है तकरीबन 200 किमी का. यानि एक एवरेज शहरी व्यक्ति जिसकी रनिंग रोज़ाना 100 किमी की हो उसे हर रोज 15 यूनिट बिजली की आवश्यकता होगी चार्ज करने के लिए. अब सोचिए जब सड़क पर 1 मिलियन यानी 10 लाख EV होंगे तब अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होगी करीबन 5845 मिलियन यूनिट्स.
जाहिर...
जिस वक़्त मैं ये आर्टिकल लिख रहा था, ठीक उसी वक़्त मेरठ के परिवहन विभाग की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई. रिपोर्ट के अनुसार हाल में सिटी ट्रांसपोर्ट के लिए लगाई गई इलेक्ट्रिक बसें घाटे में चल रही हैं. प्रति किमी कमाई है 30 रू और खर्चा है 75 रू प्रति किमी. शॉकिंग? पर सच है. आइए कुछ अहम बातों पर प्रकाश डालें.
ईंधन:
जैसे की आपकी कार के लिए पेट्रोल डीजल या सीएनजी की जरूरत होती है. वैसे ही EV के लिए बिजली नजदीकी बिजली घर से आती है. अभी भी हमारे देश की कुल इंस्टॉल्ड कैपेसिटी का 60% या अधिक उन बिजली घर से आता है जहां फॉसिल फ्यूल जैसे कोयला या गैस इस्तेमाल होता है. यानि आपकी हरे नंबर की रजिस्ट्रेशन प्लेट के पीछे अभी भी बिजली घर का काला धुआं सहयोगी है.
भारत में ऊर्जा के क्षेत्र में डिमांड और सप्लाई के बीच का अंतर नीचे दिए हुए आंकड़ों से समझा जा सकता है जो की केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के वेबसाइट पर मौजूद हैं. FY 2021-22 (सभी आंकड़े M मिलियन यूनिट में) कुल जरूरत: 13,75663 कुल उपलब्धता : 13,69,818 कुल कमी: 5845 M ज्यादा EV मतलब ज्यादा काला धुआं आमतौर पर भारत में चौपहिया वाहन में बैटरी पैक 30 या 31 KWh कैपेसिटी का होता है.
एक उचित अनुमान से यदि चलें तो एक बैटरी पैक चार्ज होने के लिए करीब 30 यूनिट बिजली खर्च होती है. और इस पर ड्राइव रेंज यानी माइलेज मिलता है तकरीबन 200 किमी का. यानि एक एवरेज शहरी व्यक्ति जिसकी रनिंग रोज़ाना 100 किमी की हो उसे हर रोज 15 यूनिट बिजली की आवश्यकता होगी चार्ज करने के लिए. अब सोचिए जब सड़क पर 1 मिलियन यानी 10 लाख EV होंगे तब अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होगी करीबन 5845 मिलियन यूनिट्स.
जाहिर है इसकी भरपाई अतिरिक्त कोयला जलाकर होगी क्योंकि सौर ऊर्जा और नाभिकीय ऊर्जा पर अभी भी काफी काम होना बाकी है. और हाइड्रो पावर बिजली घर अपनी पूरी क्षमता पर ही चल रहे हैं. यहां पर एक और तथ्य गौर करने योग्य है की दिन पर दिन बढ़ते उत्सर्जन मानकों की वजह से वाहन कंपनिया तो अपने इंजन सुधरती जा रही है जैसे कि लेटेस्ट BS-6 मानक उत्सर्जन नियम और इससे प्रति वाहन उत्सर्जित प्रदूषण कम होता जा रहा है, पर बिजली घर अभी भी पुरानी टेक्नोलॉजी पर ही काम कर रहे हैं. यानि ज्यादा काला धुंआ.
पर्यावरण पर प्रभाव:
बैटरी बनाने में इस्तेमाल होने वाली अधिकतर सामग्री रिसाइकल नहीं हो सकती. यानि यूज्ड बैटरी पैक डंपिंग यार्ड की शोभा बढ़ाएंगे. साथ ही बैटरी में इस्तेमाल होने वाले अधिकतर अवयव दुर्लभ धातु की श्रेणी में आते हैं यानी उनका उत्खनन एक अतिरिक्त भार है. और आगे चलकर हमें अपनी प्यारी धरती पर बैटरी डंप के पहाड़ देखने पड़ सकते हैं.
सप्लाई चैन की चुनौतियां:
किसी भी बैटरी पैक के मुख्य अवयव रसायनिक श्रेणी के होते हैं यथा ग्रेफाइट, कोबाल्ट, लिथियम, मैंगनीज, और निकल. सभी को बारी बारी से देखते हैं.
ग्रेफाइट: लिथियम आयन बैटरीज में इसका इस्तेमाल anode की तरह से होता है. किसी भी बैटरी पैक का 70% तक होता है. मुख्य आपूर्तिकर्ता देश चीन लगभग 50%- 70% तक. बाकी मध्य अफ्रीकी देशों से. परंतु रिफाइनिंग में चीन का वर्चस्व है.
कोबाल्ट: इसका इस्तेमाल कैथोड की तरह से होता है. मुख्य आपूर्तिकर्ता देश कांगो रिपब्लिक लगभग 70% तक. परंतु यहां कानून व्यवस्था और बाल श्रम के अपने मुद्दे रहे हैं.
निकल: मुख्य आपूर्तिकर्ता देश इंडोनेशिया है. अच्छी क्वालिटी के निकल पर यहां काफी काम हो रहा है. एक वजह शायद ये भी है जो टेस्ला अपना प्लांट यहां पर प्लान कर रही है.
सुरक्षित और भरोसेमंद:
ICE इंजन इस कसौटी पर खरे उतरे हैं.जहां इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी एक्सप्लोजन और चार्जिंग के वक्त आग लगने के खतरे से जूझ रहे हैं वहीं लिमिटेड चार्जिंग नेटवर्क और अल्टरनेटिव व्यवस्था का न होना लंबी दूरी के सफर से पहले डरा सकता है.
रोजगार संबंधित मुद्दे:
काफी बड़ी संख्या में अर्द्ध कुशल और अकुशल मैकेनिक ICE इंजन के वाहनों से अपनी रोजी रोटी पाते हैं. वाहन रिपेयरिंग के पेशे ने काफी बड़ी आबादी को स्वयं रोजगार का सहारा दिया है. जहां पर वंचित तबके के छोटू अपने उस्ताद की शागिर्दी में सीखते सीखते बड़े हो जाते हैं और अपना नया गैरेज खोल कर फिर से सिखाना शुरू कर देते हैं.
ICE इंजन हेतु रिपेयर और मेंटेनेंस समय समय पर जरूरी है. इसलिए सड़क के किनारे आपको हर जगह दो पहिया और कहीं कहीं चौपहिया के गैरेज मिल जायेंगे.
वही EV एक मोटर आधारित व्यवस्था है जिसे रिपेयर करना विशेष योग्यता का कार्य है. जो इस तरह बड़े पैमाने पर रोजगार शायद ही दे पाए. आपकी जेब का नफा नुकसान क्या है उपरोक्त चार्ट से समझा जा सकता है जिसमें एक बहु प्रतिष्ठित भारतीय कंपनी ने इलेक्ट्रिक गाड़ियों पार तथ्यात्मक विश्लेषण किया है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.