फेसबुक और केम्ब्रिज एनालिटिका का मामला शुरू होने के बाद से मार्क जकरबर्ग किसी ऐसे कैदी की तरह घूम रहे हैं जिसपर खून का इल्जाम साबित हो गया हो. और अब सज़ा मुकर्रर होनी बाकी हो. फेसबुक और डेटा चोरी का मामला अमेरिकी सीनेट में अब वन टू वन कम्युनिकेशन पर पहुंच गया है जहां जकरबर्ग के पसीने छूट रहे हैं. वो लड़खड़ा रहे हैं. यूएस सीनेट में हुई दूसरे दिन की सुनवाई में सबसे ज्यादा जिस सवाल पर वो असहज दिखे, वो था शैडो प्रोफाइल ( shadow profile ) वाला सवाल.
क्या होती है शैडो प्रोफाइल..
शैडो प्रोफाइल का मतलब है कि एक इंसान का डेटा उसकी मर्जी या मर्जी के बिना किसी न किसी तरह से लिया जा रहा है. शैडो प्रोफाइल टर्म सीधे-सीधे उस यूजर की प्रोफाइल के बारे में बात करती है जो फेसबुक पर नहीं है फिर भी फेसबुक उसका डेटा अपने डेटाबेस में रखे हुए है.
मार्क जकरबर्ग से जब ये पूछा गया कि क्या फेसबुक लॉगआउट होने के बाद भी डेटा इकट्ठा करती है. तब मार्क का कहना था कि ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें लॉगआउट करने के बाद भी ट्रैक किया जाता है. ये सिर्फ इसलिए है ताकि ये पता चल सके कि कहीं कोई यूजर फेसबुक सिस्टम का गलत इस्तेमाल तो नहीं कर रहा.
फिर उनसे पूछा गया कि क्या फेसबुक उन यूजर्स का डेटा भी लेता है जिनका फेसबुक पर अकाउंट नहीं है तो इस मामले में जकरबर्ग सकपका गए. उनका कहना था कि शैडो प्रोफाइल असल में कोई शब्द ही नहीं है. फेसबुक इसका इस्तेमाल ही नहीं करता, लेकिन मार्क से फिर वही सवाल किया गया और मार्क का जवाब था कि हां विज्ञापनों के लिए कई तरह से डेटा लिया जाता है.
तो क्या वाकई फेसबुक बिना जानकारी के, अकाउंट न होने और एप से लॉगआउट करने के बाद भी यूजर के बारे में डेटा लेता रहता है. यानी फेसबुक के पास वो डेटा भी है जो आपने उसे दिया है और वो डेटा भी...
फेसबुक और केम्ब्रिज एनालिटिका का मामला शुरू होने के बाद से मार्क जकरबर्ग किसी ऐसे कैदी की तरह घूम रहे हैं जिसपर खून का इल्जाम साबित हो गया हो. और अब सज़ा मुकर्रर होनी बाकी हो. फेसबुक और डेटा चोरी का मामला अमेरिकी सीनेट में अब वन टू वन कम्युनिकेशन पर पहुंच गया है जहां जकरबर्ग के पसीने छूट रहे हैं. वो लड़खड़ा रहे हैं. यूएस सीनेट में हुई दूसरे दिन की सुनवाई में सबसे ज्यादा जिस सवाल पर वो असहज दिखे, वो था शैडो प्रोफाइल ( shadow profile ) वाला सवाल.
क्या होती है शैडो प्रोफाइल..
शैडो प्रोफाइल का मतलब है कि एक इंसान का डेटा उसकी मर्जी या मर्जी के बिना किसी न किसी तरह से लिया जा रहा है. शैडो प्रोफाइल टर्म सीधे-सीधे उस यूजर की प्रोफाइल के बारे में बात करती है जो फेसबुक पर नहीं है फिर भी फेसबुक उसका डेटा अपने डेटाबेस में रखे हुए है.
मार्क जकरबर्ग से जब ये पूछा गया कि क्या फेसबुक लॉगआउट होने के बाद भी डेटा इकट्ठा करती है. तब मार्क का कहना था कि ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें लॉगआउट करने के बाद भी ट्रैक किया जाता है. ये सिर्फ इसलिए है ताकि ये पता चल सके कि कहीं कोई यूजर फेसबुक सिस्टम का गलत इस्तेमाल तो नहीं कर रहा.
फिर उनसे पूछा गया कि क्या फेसबुक उन यूजर्स का डेटा भी लेता है जिनका फेसबुक पर अकाउंट नहीं है तो इस मामले में जकरबर्ग सकपका गए. उनका कहना था कि शैडो प्रोफाइल असल में कोई शब्द ही नहीं है. फेसबुक इसका इस्तेमाल ही नहीं करता, लेकिन मार्क से फिर वही सवाल किया गया और मार्क का जवाब था कि हां विज्ञापनों के लिए कई तरह से डेटा लिया जाता है.
तो क्या वाकई फेसबुक बिना जानकारी के, अकाउंट न होने और एप से लॉगआउट करने के बाद भी यूजर के बारे में डेटा लेता रहता है. यानी फेसबुक के पास वो डेटा भी है जो आपने उसे दिया है और वो डेटा भी है जो आप उसे देना ही नहीं चाहते.
कैसे होता है ये?
मार्क जकरबर्ग ने ये माना तो कि उन लोगों का डेटा भी लिया जाता है जो फेसबुक के यूजर्स नहीं हैं, लेकिन आखिर वो लोग करते क्या हैं, जिसके कारण उनका डेटा फेसबुक तक पहुंच जाता है?
असल में ये हज़ारों, लाखों वेबपेज के जरिए होता है जो इंटरनेट पर मौजूद हैं. हर वो वेबपेज जिसमें फेसबुक लाइक बटन मौजूद है उसमें ये ताकत है कि वो आपका डेटा चुराकर फेसबुक तक पहुंचा दे या फिर किसी अन्य डेटा माइनिंग कंपनी को दे दे. हालांकि, फेसबुक को इस यूजर का नाम भले ही न पता हो, लेकिन फेसबुक के पास इस यूजर की वो सारी जानकारी होती है जिससे वो टार्गेट एडवर्टाइजिंग कर सके. कुकीज के जरिए, वेबपेज के जरिए या उन वेबसाइट्स के जरिए जो अपनी सर्विस देने के लिए फेसबुक या गूगल लॉगइन मांगती हैं, ये सोशल मीडिया कंपनी डेटा इकट्ठा कर लेती है. भले ही कोई फेसबुक यूजर लॉगइन हो या नहीं, या फिर वो फेसबुक का यूजर हो या नहीं.
जकरबर्ग की दलील..
शैडो प्रोफाइल के सवाल पर जकरबर्ग की एक अनोखी दलील थी. ये मामला कि फेसबुक कंपनी न सिर्फ अपने यूजर्स बल्कि इंटरनेट पर मौजूद हर इंसान को ट्रैक कर सकती है मार्क के लिए बड़ा ही साधारण सा है. उनका कहना था कि ये सभी करते हैं और ऐसे ही इंडस्ट्री चलती है.
मार्क ने अपने जवाब में ये भी कहा कि हर यूजर को ये सुविधा दी गई है कि वो अपना कितना डेटा फेसबुक के साथ शेयर करेगा और वो उसे डिलीट भी कर सकता है (कुछ हद तक), लेकिन इस बात से अच्छा खासा विवाद बढ़ गया है. इसका सीधा सा मतलब ये है कि ऐसे इंटरनेट यूजर्स जिन्होंने कभी फेसबुक की प्राइवेसी पॉलिसी और अग्रीमेंट साइन नहीं किया उनका डेटा भी फेसबुक किसी न किसी तरह से ले रही है.
क्या रोका जा सकता है फेसबुक को?
ठीक तौर पर समझें तो नहीं. ये आर्टिकल लिखते समय भी न जाने कितनी जरिए से फेसबुक मेरा डेटा ले रहा होगा. एक होटल की वेबसाइट सर्च करने से लेकर ऑनलाइन शॉपिंग तक कितना कुछ एक दिन में किया है और ये डेटा किसी न किसी तरह से फेसबुक तक पहुंच रहा होगा. जिन जगहों से फेसबुक डेटा इकट्ठा करती है उसे रोकना तब तक आसान नहीं जब तक कोई ऐसी पॉलिसी न बन जाए कि फेसबुक किसी अन्य सोर्स से डेटा इकट्ठा न करे. पर फिर भी कुछ आसान से तरीके अपनाए जा सकते हैं जो कुछ हद तक इस डेटा को सीमित कर दें जैसे,
- किसी भी ऐरे-गैरे वेबपेज का लाइक बटन क्लिक करने से बचें.
- ज्यादा से ज्यादा इनकॉग्निटो मोड का इस्तेमाल करें. हां, जीमेल आदि के लिए नॉर्मल क्रोम किया जा सकता है ताकि ऑटोफिल और वेबसाइट सेटिंग्स सेव रहें, लेकिन बाकी ब्राउजिंग सुरक्षित रहे. साथ ही अगर फायरफॉक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि कुकीज हर ब्राउजिंग के बाद डिलीट कर दें.
- वेबसाइट और एप्स में फेसबुक से लॉगइन करना बंद करें.
- ब्राउजिंग के लिए वो ब्राउजर इस्तेमला न करें जिसमें फेसबुक ऑन हो. अगर आप ऐसा करते हैं तो आप फेसबुक को ये हक देते हैं कि वो ब्राउजिंग हिस्ट्री इकट्ठा कर ले भले ही आप कोई न्यूज साइट क्यों न देख रहे हों.
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