सूर्य देवता भी महान हैं. एक तरफ तो पूरे भारत में उन्होंने अपना तेज इस तरह से फैलाना शुरू कर दिया है कि कपड़े छोड़िए लोग ही सूखे जा रहे हैं और दूसरी तरफ उनके बिना काम ही नहीं चलता. सूर्य हमारी जिंदगी में कितनी अहमियत रखता है ये हमें 5वीं कक्षा से पढ़ाया जाता है तो इसपर दोबारा बात करना लाजमी नहीं.
अब जब सूर्य इतना जरूरी है हमारी जिंदगी में तो एक से ही क्यों संतुष्ट होना. एक दूसरा सूर्य तो होना ही चाहिए. शायद इसीलिए जर्मन वैज्ञानिकों ने एक आर्टिफीशियल सूर्य बना लिया है.
कैसे बना है ये सूर्य-
ज्यूलिच (Jülich-जर्मनी) में बनाया गया ये सूर्य 149 छोटे आर्क लैंप (फिल्म प्रोजेक्टर स्पॉटलाइट) से बनाया गया है. इनमें से हर बल्ब किसी आम लाइट बल्ब से 4000 गुना ज्यादा वॉट्स का इस्तेमाल करता है. जर्मन एरोस्पेस सेंटर के वैज्ञानिक इसका उपयोग प्राकृतिक रौशनी से 10000 गुना ज्यादा रौशनी एक ही जगह पर डालने के लिए करेंगे.
आखिर बनाया ही क्यों?
इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा सोलर पैनल इतने काबिल नहीं हैं कि अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर सकें. इसलिए इस आर्टिफीशियल सूर्य को बनाया गया है. सिनलाइट अपने सभी लैंप एक ही जगह निशाना लगाकर रौशनी देगा और इससे टेम्प्रेचर 3500 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा. इससे काफी ऊर्जा पैदा होगी.
रिसर्च टीम...
सूर्य देवता भी महान हैं. एक तरफ तो पूरे भारत में उन्होंने अपना तेज इस तरह से फैलाना शुरू कर दिया है कि कपड़े छोड़िए लोग ही सूखे जा रहे हैं और दूसरी तरफ उनके बिना काम ही नहीं चलता. सूर्य हमारी जिंदगी में कितनी अहमियत रखता है ये हमें 5वीं कक्षा से पढ़ाया जाता है तो इसपर दोबारा बात करना लाजमी नहीं.
अब जब सूर्य इतना जरूरी है हमारी जिंदगी में तो एक से ही क्यों संतुष्ट होना. एक दूसरा सूर्य तो होना ही चाहिए. शायद इसीलिए जर्मन वैज्ञानिकों ने एक आर्टिफीशियल सूर्य बना लिया है.
कैसे बना है ये सूर्य-
ज्यूलिच (Jülich-जर्मनी) में बनाया गया ये सूर्य 149 छोटे आर्क लैंप (फिल्म प्रोजेक्टर स्पॉटलाइट) से बनाया गया है. इनमें से हर बल्ब किसी आम लाइट बल्ब से 4000 गुना ज्यादा वॉट्स का इस्तेमाल करता है. जर्मन एरोस्पेस सेंटर के वैज्ञानिक इसका उपयोग प्राकृतिक रौशनी से 10000 गुना ज्यादा रौशनी एक ही जगह पर डालने के लिए करेंगे.
आखिर बनाया ही क्यों?
इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा सोलर पैनल इतने काबिल नहीं हैं कि अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर सकें. इसलिए इस आर्टिफीशियल सूर्य को बनाया गया है. सिनलाइट अपने सभी लैंप एक ही जगह निशाना लगाकर रौशनी देगा और इससे टेम्प्रेचर 3500 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा. इससे काफी ऊर्जा पैदा होगी.
रिसर्च टीम ने इस तरीका का इस्तेमाल ऊर्जा पैदा करने के लिए किया है. ये उसी तरह है जैसे हाइड्रोजन फ्यूल सेल बनाने के लिए सूर्य की रौशनी का इस्तेमाल किया जाता है. कार्बन फ्यूल की जगह अगर हाइड्रोजन का इस्तेमाल करना है तो प्लेन उड़ाने या कार चलाने के लिए कई टन हाइड्रोजन सेल का इस्तेमाल करना होगा. इसके लिए ऊर्जा की जरूरत है और वो सिनलाइट पूरा करेगा.
क्या है कोई रिस्क?
जब भी ऐसा कोई एक्सपेरिमेंट हुआ है तब-तब उससे जुड़ा कोई ना कोई हादसा जरूर हुआ है. अब इस एक्सपेरिमेंट के साथ अपने अलग रिस्क हैं. अगर ये ऑन है और आप उस कमरे के आस-पास भी रहे जहां ये एक्सपेरिमेंट हो रहा है तो आप पूरी तरह जल जाएंगे. ये सूर्य के पास जाने जैसा ही होगा.
इसी रिस्क के कारण इस टेस्ट को रेडिएशन सील्ड चैम्बर में किया जा रहा है.
सस्ता नहीं है नया सूर्य बनाना...
इस प्रोजेक्ट में लगने वाली अनुमानित लागत का तो पता नहीं, लेकिन ये एक बार में उतनी बिजली का इस्तेमाल कर लेता है जितना चार घर एक साल में करेंगे, लेकिन अगर ये सफल होता है तो इतनी ऊर्जा मिलेगी कि सबकी भरपाई हो जाएगी.
सिर्फ ऊर्जा के लिए ही नहीं ये प्रोजेक्ट रॉकेट और स्पेसक्राफ्ट की टेस्टिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा कि वो सही ढंग से काम कर रहे हैं और गर्मी बर्दाश्त कर पाएंगे या नहीं. जिस समय दुनिया की स्पेस एजेंसियां मंगल पर बसने की प्लानिंग कर रही हैं उस समय ये प्रोजेक्ट काफी काम का साबित हो सकता है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.