आए दिन कार में सेफ्टी फीचर होने की बातें होती हैं. जब-जब कोई एक्सिडेंट चर्चा में आता है तो कारों के सेफ्टी फीचर पर स्वतः ही एक बहस भी शुरू हो जाती है. लेकिन सवाल ये है कि ये बहस किसकी सुरक्षा को ध्यान में रखकर होती है, पुरुष या महिला? यहां आप ये सोच सकते हैं कि आखिर इससे क्या फर्क पड़ता है, लेकिन अगर यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया की स्टडी पर ध्यान दें तो पता चलता है कि इससे बहुत फर्क पड़ता है. यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक कार चलाते समय हुए हादसों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मौत 73 फीसदी अधिक होती है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कार सेफ्टी में कमियां. अब अगर इस स्टडी पर ध्यान दें तो ये जरूरी हो जाता है कि कार के सेफ्टी फीचर्स डिजाइन करते समय सिर्फ पुरुषों ही नहीं, बल्कि महिलाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए.
स्टडी के अनुसार जब कार क्रैश की टेस्टिंग होती है तो सुरक्षा उपकरणों की जांच पुरुषों के हिसाब से होती है. गाड़ी में सुरक्षा उपकरण लगाए भी पुरुषों के हिसाब से डिजाइन कर के लगाए जाते हैं. यहां तक कि क्रैश टेस्ट के दौरान जिस डमी का इस्तेमाल होता है वह भी पुरुषों के कद की होती है, ना कि महिलाओं के. जिस स्टडी का जिक्र यहां किया जा रहा है उसे यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के प्रोफेसरों ने यूएसए टुडे की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए किया है. अब सवाल ये उठता है कि आखिर उस रिपोर्ट में ऐसा क्या है?
सीट बेल्ट अटक जाती है महिलाओं के गले में
जिस रिपोर्ट का हवाला देकर ये स्टडी की गई है, उसमें कहा गया है कि गाड़ी की सीट और सीट बेल्ट को पुरुषों...
आए दिन कार में सेफ्टी फीचर होने की बातें होती हैं. जब-जब कोई एक्सिडेंट चर्चा में आता है तो कारों के सेफ्टी फीचर पर स्वतः ही एक बहस भी शुरू हो जाती है. लेकिन सवाल ये है कि ये बहस किसकी सुरक्षा को ध्यान में रखकर होती है, पुरुष या महिला? यहां आप ये सोच सकते हैं कि आखिर इससे क्या फर्क पड़ता है, लेकिन अगर यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया की स्टडी पर ध्यान दें तो पता चलता है कि इससे बहुत फर्क पड़ता है. यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक कार चलाते समय हुए हादसों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मौत 73 फीसदी अधिक होती है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कार सेफ्टी में कमियां. अब अगर इस स्टडी पर ध्यान दें तो ये जरूरी हो जाता है कि कार के सेफ्टी फीचर्स डिजाइन करते समय सिर्फ पुरुषों ही नहीं, बल्कि महिलाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए.
स्टडी के अनुसार जब कार क्रैश की टेस्टिंग होती है तो सुरक्षा उपकरणों की जांच पुरुषों के हिसाब से होती है. गाड़ी में सुरक्षा उपकरण लगाए भी पुरुषों के हिसाब से डिजाइन कर के लगाए जाते हैं. यहां तक कि क्रैश टेस्ट के दौरान जिस डमी का इस्तेमाल होता है वह भी पुरुषों के कद की होती है, ना कि महिलाओं के. जिस स्टडी का जिक्र यहां किया जा रहा है उसे यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के प्रोफेसरों ने यूएसए टुडे की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए किया है. अब सवाल ये उठता है कि आखिर उस रिपोर्ट में ऐसा क्या है?
सीट बेल्ट अटक जाती है महिलाओं के गले में
जिस रिपोर्ट का हवाला देकर ये स्टडी की गई है, उसमें कहा गया है कि गाड़ी की सीट और सीट बेल्ट को पुरुषों के हिसाब से डिजाइन किया जाता है, जबकि महिलाओं का कद पुरुषों के मुकाबले औसतन कम होता है. ऐसे में एक्सिडेंट होने की स्थिति में बेल्ट का नीचे का हिस्सा तो अपना काम सही से करता है, लेकिन ऊपरी हिस्सा उनके गले में फंस जाता है. वहीं अगर एयरबैग नहीं खुले तो महिलाओं को गंभीर चोट लगती है, जिसकी वजह से उनकी मौत तक हो जाती है.
महिलाओं के हिसाब से नहीं होते सेफ्टी फीचर
अगर स्टडी की मानें तो कुछ कंपनियां गिने-चुने देशों में ही कार क्रैश टेस्ट में महिलाओं की डमी इस्तेमाल करती हैं. ये डमी करीब 5 फुट की होती है. स्टडी में भी ये बात सामने आई है कि क्रैश के समय बेल्ट गले में अटक जाती है. इतना सब होने के बावजूद अभी तक कोई भी कंपनी महिलाओं के हिसाब से कार में सेफ्टी फीचर डिजाइन नहीं कर रही है. हालांकि, स्वीडन, नॉर्वे और आयरलैंड जैसे देशों में सेफ्टी फीचर्स डिजाइन करने में महिलाओं को ध्यान में रखना शुरू कर दिया है.
यूएस ट्रांसपोर्टेशन डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार कार एक्सिडेंट में पुरुषों के मुकाबले महिला ड्राइवर्स की मौत होने या गंभीर रूप से घायल होने की घटनाएं अधिक होती हैं. हालांकि, ये भी जान लेना चाहिए कि कार एक्सिडेंट पुरुषों के अधिक होते हैं. यानी एक बात तो साफ होती है कि भले ही पुरुषों के एक्सिडेंट अधिक हो रहे हैं, लेकिन मौत और गंभीर रूप से घायल महिलाएं अधिक होती हैं, क्योंकि गाड़ी में सेफ्टी फीचर्स पुरुषों के हिसाब से लगे हैं, जो उनकी जान बचाने में मदद करते हैं. महिलाओं की अधिक मौत होने की वजह यही है कि सेफ्टी फीचर्स महिलाओं के मुताबिक नहीं होते हैं.
भारत में क्या हैं हालात?
अगर सिर्फ 2014 में हुए रोड एक्सिडेंट्स के बारे में बात करें तो एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 3,88,035 पुरुष और 89,670 महिलाओं की मौत हुई है. हालांकि, ये आंकड़े हर रोड एक्सिडेंट के हैं, ना कि गाड़ी चला रहे या गाड़ी मे बैठे लोगों के. अगर अमेरिका के आंकड़ों से तुलना करें तो भारत में महिलाओं की मौत की संख्या कुछ खास अधिक नहीं होगी, क्योंकि भारत में अमेरिका की तुलना में महिलाएं कम बाहर निकलती हैं. साथ ही, अमेरिका की तुलना में भारत में कम महिलाएं गाड़ी चलाती हैं.
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