आपकी निजी जानकारी, फोन नंबर, ईमेल आईडी, उम्र, पता, मैरिटल स्टेटस और कुछ लोगों की क्रेडिट और डेबिट कार्ड की जानकारी भी. ये सब कुछ कंपनियों द्वारा बेचा जा रहा है. कीमत जानकर शायद आप हैरान हो जाएंगे. ये सब कुछ 1 रुपए से भी कम दाम में बिक रहा है. इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक वो कंपनियां जिन्हें 'डेटा ब्रोकर्स' कहा जाता है, आपकी निजी जानकारी 1 रुपए से भी कम दाम में बेच रही हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक बाकायदा इन कंपनियों से डेटा खरीदा गया और मिले हुए नंबरों पर कॉल करके देखा गया. रिपोर्ट की मानें तो 10-15000 रुपए में 1 लाख लोगों का डेटा मिल सकता है. इनमें कई बार क्रेडिट और डेबिट कार्ड डिटेल्स भी होती हैं. अमेजन या किसी अन्य साइट अगर कोई सामान खरीदा गया है तो उसके जरिए भी आपकी कार्ड डिटेल्स लीक हो सकती हैं. ये डेटा ब्रोकर फर्म्स मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर, कार डीलर्स, बैंक एजेंट, हॉस्पिटल आदि से खरीदते हैं और फिर इनसे कोई भी ये जानकारी खरीद सकता है.
भारतीय IT लॉ में इसके लिए कोई खास नियम नहीं है. सोशल मीडिया साइट्स से भी डेटा उठाया जाता है जैसे ट्वीट्स, पर्सनल फोटोज, लाइक स्टेटस आदि जो यूजर बिहेवियर समझने के काम में आता है. ये जानकारी इतनी सस्ती है कि कोई भी बिना खास पहचान के आपकी पर्सनल जिंदगी में झांक सकता है.
आखिर क्यों इसकी सस्ती है आपकी पर्सनल जानकारी?
क्या कभी आपने सोचा है कि गूगल, फेसबुक, वॉट्सएप जैसी सर्विसेज आपको फ्री में मिलती हैं फिर भी कंपनियां करोड़ों कैसे कमाती हैं? गूगल हो या फेसबुक दोनों के रेवेन्यु का बेस मॉडल एड्स और यूजर की जानकारी होती है. गूगल में आपकी एक सर्च भले ही आपके लिए काम की हो या ना हो, लेकिन कंपनियों के लिए बड़े काम की होती है. आपका कस्टमाइज किया गया गूगल पेज उसे से जुड़े एड्स दिखाता है. शॉपिंग साइट्स पर भी...
आपकी निजी जानकारी, फोन नंबर, ईमेल आईडी, उम्र, पता, मैरिटल स्टेटस और कुछ लोगों की क्रेडिट और डेबिट कार्ड की जानकारी भी. ये सब कुछ कंपनियों द्वारा बेचा जा रहा है. कीमत जानकर शायद आप हैरान हो जाएंगे. ये सब कुछ 1 रुपए से भी कम दाम में बिक रहा है. इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक वो कंपनियां जिन्हें 'डेटा ब्रोकर्स' कहा जाता है, आपकी निजी जानकारी 1 रुपए से भी कम दाम में बेच रही हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक बाकायदा इन कंपनियों से डेटा खरीदा गया और मिले हुए नंबरों पर कॉल करके देखा गया. रिपोर्ट की मानें तो 10-15000 रुपए में 1 लाख लोगों का डेटा मिल सकता है. इनमें कई बार क्रेडिट और डेबिट कार्ड डिटेल्स भी होती हैं. अमेजन या किसी अन्य साइट अगर कोई सामान खरीदा गया है तो उसके जरिए भी आपकी कार्ड डिटेल्स लीक हो सकती हैं. ये डेटा ब्रोकर फर्म्स मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर, कार डीलर्स, बैंक एजेंट, हॉस्पिटल आदि से खरीदते हैं और फिर इनसे कोई भी ये जानकारी खरीद सकता है.
भारतीय IT लॉ में इसके लिए कोई खास नियम नहीं है. सोशल मीडिया साइट्स से भी डेटा उठाया जाता है जैसे ट्वीट्स, पर्सनल फोटोज, लाइक स्टेटस आदि जो यूजर बिहेवियर समझने के काम में आता है. ये जानकारी इतनी सस्ती है कि कोई भी बिना खास पहचान के आपकी पर्सनल जिंदगी में झांक सकता है.
आखिर क्यों इसकी सस्ती है आपकी पर्सनल जानकारी?
क्या कभी आपने सोचा है कि गूगल, फेसबुक, वॉट्सएप जैसी सर्विसेज आपको फ्री में मिलती हैं फिर भी कंपनियां करोड़ों कैसे कमाती हैं? गूगल हो या फेसबुक दोनों के रेवेन्यु का बेस मॉडल एड्स और यूजर की जानकारी होती है. गूगल में आपकी एक सर्च भले ही आपके लिए काम की हो या ना हो, लेकिन कंपनियों के लिए बड़े काम की होती है. आपका कस्टमाइज किया गया गूगल पेज उसे से जुड़े एड्स दिखाता है. शॉपिंग साइट्स पर भी उसे सर्च से जुड़ी चीजें सामने आएंगीं. ऐसा ही फेसबुक और वॉट्सएप के लिए भी होता है.
वॉट्सएप पर भेजा गया लिंक भी हो सकता है लीक-
उदाहरण के तौर पर पहले वॉट्सएप की प्राइवेसी पॉलिसी में पर्सनल जानकारी फेसबुक से शेयर करने की बात नहीं थी, लेकिन सितंबर 2016 में ऐसा हुआ था आपकी जानकारी फेसबुक से लिंक कर दी गई. ये अपडेट सभी वॉट्सएप यूजर्स के लिए जरूरी हो गई. जानकारी शेयर होने के बाद से ही फेसबुक पर एड्स बदल दिए गए. हुआ कुछ यूं कि नंबर, ऑपरेटिंग सिस्टम और ट्रांजैक्शन आदि डिटेल्स जैसे ही फेसबुक से शेयर हुईं वैसे ही आपके नंबर से जुड़ी डिटेल्स भी कंपनी के डेटा बेस में चली गई. अब मान लीजिए अगर आप अपने वॉट्सएप नंबर से कोई फिल्म की टिकट बुक करते हैं तो आपकी फेसबुक वॉल पर भी बुक माय शो, पेटीएम जैसी एप्स के एड आएंगे. यहीं होता है आपकी जानकारी का इस्तेमाल.
अब सवाल ये उठता है कि किस तरह का डेटा शेयर किया जाता है? कौन सी जानकारी है इसमें? तो मैं आपको बता दूं कि आपका डेटा 9 भागों में शेयर किया जा सकता है-
1. आइडेंटिटी- इसमें नाम, जगह, पता, ईमेल आईडी, फोन नंबर आदि शामिल होते हैं.
2. सेंसिटिव जानकारी- इसमें आधारकार्ड नंबर, सोशल सिक्योरिटी नंबर, ड्राइवर लाइसेंस, बैंक डिटेल्स आदि शेयर होती हैं.
3. डेमोग्राफिक डेटा- इसमें उम्र, हाइट, वजन, भाषा, व्यवसाय, इंट्रेस्ट, रीजन, जेंडर आदि सारी जानकारी शेयर होती है.
4. कोर्ट और पब्लिक रिकॉर्ड- धोखाधड़ी का मामला, कोई कोर्ट केस, दीवालिया होना, प्रॉपर्टी, वोटिंग आदि की जानकारी शेयर होती है.
5. सोशल मीडिया जानकारी- कितने फ्रेंड्स हैं, कितनी ट्वीट हैं, किस तरह के हैशटैग इस्तेमाल किए जाते हैं आदि
6. घर के बारे में- किस तरह का एरिया है, कैसा मकान है, रेंट कितना है, कार लीज कितनी है, ईएमआई कितनी है
7. इंट्रेस्ट- किस तरह के कपड़े ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर देखते हैं, यूट्यूब पर कैसे वीडियो देखे जाते हैं, कैसी साइट्स सर्फ की जाती हैं.
8. गाड़ी और ट्रैवल- कौन सी गाड़ी है, कहां की टिकट बुक करवाई है, कहां जाने के लिए सर्च किया है, कौन सी फ्लाइट सर्च की गई है, कार के बारे में सर्च किया है या नहीं आदि जानकारी
9. खरीदारी और सेहत- ऑनलाइन क्या खरीदा गया, कितनी बार साइट्स देखी गईं, सेहत के लिए क्या सर्च किया, कौन सा कीवर्ड डालकर सर्च किया आदि
ये सारी जानकारी लगती तो बहुत आम है, लेकिन क्या ये इतनी सस्ती हो सकती है? दरअसल आपकी जानकारी ही वो बिग डेटा है जिसके कारण कंपनियां लाखों-करोड़ों कमा रही हैं. सवाल अब भी वही है, क्या आपकी पर्सनल जानकारी वाकई 1 रुपए से भी ज्यादा सस्ती है?
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.