बोलने की आजादी पर लगाम लगाने और सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा डिजिटल मीडिया को विनियमित करने की योजना के डर के बीच एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात पर हमारी नजर नहीं गई. सरकार कैसे इंटरनेट उपभोक्ताओं के अधिकारों का गला घोंट रही है.
कनाडा के टोरंटो यूनिवर्सिटी स्थित सिटीजन लैब ने कनैडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (सीबीसी) और दि इंडियन एक्सप्रेस के साथ की गई एक छानबीन के मुताबिक ब्लॉक किए गए वेबसाइट की संख्या में भारत अग्रणी देशों में एक है.
रिपोर्ट का दावा है कि भारत में इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) ने "सबसे ज्यादा इंटरनेट फ़िल्टरिंग सिस्टमों को इंस्टॉल किया है और अधिकतम संख्या में वेब पेज को ब्लॉक किया है". इस लिस्ट में नौ अन्य देश शामिल हैं.
इस रिपोर्ट में भारत का नाम लिस्ट में सबसे ऊपर है. इस लिस्ट में न सिर्फ हमारा पड़ोसी पाकिस्तान है बल्कि अफगानिस्तान, बहरीन, कुवैत, कतर, सोमालिया, सूडान, संयुक्त अरब अमीरात और यमन जैसे अन्य देशों में भी शामिल हैं. ये सारे देश पहले भी प्रेस और इंटरनेट को सेंसर करके अपने नागरिकों के अधिकारों का हनन करते रहे हैं.
नेटस्वीपर
नागरिक लैब ने अपनी जांच में खुलासा किया है कि इन देशों के संबंधित अधिकारियों द्वारा सेंसरशिप के प्रयासों को विभिन्न उत्पादों द्वारा विकसित किया गया है. इसमें फायरवॉल से लेकर वॉटरलू, ओन्टारियो स्थित कनाडाई कंपनी नेटस्विपर जैसे कंटेट सेंसर सॉल्यूशन का सहारा लिया. कई देशों में कंपनी द्वारा मुहैया किए गए आईएसपी के द्वारा न केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर या अन्य नैतिक रूप से विवादास्पद सामग्रियों तक एक्सेस देने से ही इनकार नहीं किया जा रहा है. बल्कि "अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचे द्वारा संरक्षित डिजिटल कंटेट" के मार्ग को भी अवरुद्ध किया जा रहा है. साथ ही धार्मिक, LGBTQ और राजनीतिक अभियानों से संबंधित समाचारों को भी ब्लॉक कर दिया गया है.
बोलने की आजादी पर लगाम लगाने और सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा डिजिटल मीडिया को विनियमित करने की योजना के डर के बीच एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात पर हमारी नजर नहीं गई. सरकार कैसे इंटरनेट उपभोक्ताओं के अधिकारों का गला घोंट रही है.
कनाडा के टोरंटो यूनिवर्सिटी स्थित सिटीजन लैब ने कनैडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (सीबीसी) और दि इंडियन एक्सप्रेस के साथ की गई एक छानबीन के मुताबिक ब्लॉक किए गए वेबसाइट की संख्या में भारत अग्रणी देशों में एक है.
रिपोर्ट का दावा है कि भारत में इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) ने "सबसे ज्यादा इंटरनेट फ़िल्टरिंग सिस्टमों को इंस्टॉल किया है और अधिकतम संख्या में वेब पेज को ब्लॉक किया है". इस लिस्ट में नौ अन्य देश शामिल हैं.
इस रिपोर्ट में भारत का नाम लिस्ट में सबसे ऊपर है. इस लिस्ट में न सिर्फ हमारा पड़ोसी पाकिस्तान है बल्कि अफगानिस्तान, बहरीन, कुवैत, कतर, सोमालिया, सूडान, संयुक्त अरब अमीरात और यमन जैसे अन्य देशों में भी शामिल हैं. ये सारे देश पहले भी प्रेस और इंटरनेट को सेंसर करके अपने नागरिकों के अधिकारों का हनन करते रहे हैं.
नेटस्वीपर
नागरिक लैब ने अपनी जांच में खुलासा किया है कि इन देशों के संबंधित अधिकारियों द्वारा सेंसरशिप के प्रयासों को विभिन्न उत्पादों द्वारा विकसित किया गया है. इसमें फायरवॉल से लेकर वॉटरलू, ओन्टारियो स्थित कनाडाई कंपनी नेटस्विपर जैसे कंटेट सेंसर सॉल्यूशन का सहारा लिया. कई देशों में कंपनी द्वारा मुहैया किए गए आईएसपी के द्वारा न केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर या अन्य नैतिक रूप से विवादास्पद सामग्रियों तक एक्सेस देने से ही इनकार नहीं किया जा रहा है. बल्कि "अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचे द्वारा संरक्षित डिजिटल कंटेट" के मार्ग को भी अवरुद्ध किया जा रहा है. साथ ही धार्मिक, LGBTQ और राजनीतिक अभियानों से संबंधित समाचारों को भी ब्लॉक कर दिया गया है.
सीटिजन लैब के अनुसार, सबसे पहले 30 देशों में नेटस्वीपर इंस्टॉलेशन की पहचान के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध "आईपी स्कैनिंग नेटवर्क मेजरमेंट डेटा, और कई टेक्नीकल टेस्ट" का इस्तेमाल किया गया. फिर सूची को उन 10 देशों तक सीमित कर दिया गया, जहां आईएसपी द्वारा कंटेंट फ़िल्टर पूरे देश में किया जा रहा था.
भारत में सेंसरशिप की स्थिति पाकिस्तान, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात से भी बदतर है:
सिटीजन लैब का दावा है कि नेटस्विपर द्वारा प्रदान किए गए फायरवॉल और अन्य कंटेंट फ़िल्टरिंग सॉल्यूशन का इस्तेमाल भारतीय आईएसपी द्वारा धड़ल्ले से किया जा रहा है. अगर आंकड़ों में बताएं तो 12 इंटरनेट प्रदाताओं द्वारा 42 इंस्टॉलेशन का प्रयोग कर कई वेबसाइटों और यूआरएल ब्लॉक किए जा रहे हैं. भारती एयरटेल, रिलायंस जियो, हैथवे, रिलायंस कम्युनिकेशंस, टाटा कम्युनिकेशंस, टाटा स्काई ब्रॉडबैंड, टेलस्ट्रा ग्लोबल, पैसिफिक इंटरनेट, नेट4इंडिया, प्राइम्सॉफ्टेक्स सहित भारत की सभी प्रमुख आईएसपी नेटस्विपर फ़िल्टरिंग सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं.
लेकिन इतना ही नहीं है. इससे ज्यादा दुखद बात ये है आईएसपी द्वारा इंटरनेट को सेंसर करने के लिए उपयोग की जाने वाली ऐसी प्रतिष्ठानों की संख्या सिर्फ 10 देशों में ही सबसे ज्यादा नहीं है. बल्कि सूची में भारत के बाद आने वाले अगले दो देशों पाकिस्तान- 20 ऐसे इंस्टॉलेशन- और बहरीन- 16 ऐसे इंस्टॉलेशन के कुल योग से दो गुना अधिक है.
विश्व में सबसे ज्यादा सेंसर वाले देश के रुप में संयुक्त अरब अमीरात को जाना जाता है. यहां नागरिकों द्वारा जानकारी तक पहुंचने से रोकने के लिए तीन नेटस्वीपर का इस्तेमाल होता है. लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में संयुक्त अरब की तुलना में लगभग 15 गुना ज्यादा डेटा सेंसरिंग इंस्टॉलेशन मौजूद हैं.
सबसे ज्यादा संख्या में नेटस्विपर इंस्टॉलेशन के अलावा, सबसे ज्यादा ब्लॉक यूआरएल की संख्या- 1,158 भी भारत में है. दिलचस्प बात यह है कि 10 देशों द्वारा कुल ब्लॉक (2,464) की गई वेबसाइटों का ये लगभग आधा है.
किन चीजों को ब्लॉक किया जा रहा है?
यूएई, बहरीन और यमन में "गे" और "लेस्बियन" जैसे गूगल सर्च कीवर्ड को ब्लॉक कर दिया गया है. वहीं कुवैत में "गर्भपात" को पूरी तरह से बैन किया गया है. साथ ही राजनीतिक समाचार, ओपिनियन और आलोचनाओं को जगह देने वाले कई वेबसाइट बहरीन, कतर, सुडान, सोमालिया और पाकिस्तान में बैन किए गए हैं.
हालांकि भारत में चाइल्ड पोर्न या पाइरेटेड कंटेट के अलावा ब्लॉक की गई वेबसाइटों की लंबी लिस्ट है. इसमें वो यूआरएल शामिल हैं जैसे- बर्मा में मुस्लिमों की मौत और भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों से संबंधित कंटेंट ब्लॉक कर दिए गए हैं. इसके अलावा विदेशी गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ), मानवाधिकार समूहों, नारीवादी समूहों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की वेबसाइटों को भी ब्लॉक कर दिया गया है जो अधिकारियों के घृणास्पद इरादों को उजागर करता है.
इनमें से सबसे उल्लेखनीय वेब पेज ABC न्यूज़, द टेलीग्राफ (यूके), अल जज़ीरा, ट्रिब्यून (पाकिस्तान) से संबंधित हैं जिनमें "रोहिंग्या शरणार्थी मुद्दे से संबंधित, और बर्मा और भारत में मुसलमानों की मौत" स्टोरी है. ये सभी हाल ही में जनवरी 2018 में ब्लॉक पाए गए.
सीबीसी न्यूज के मुताबिक, "शरणार्थी संकट पर चर्चा करने वाले फेसबुक ग्रुप को भी ब्लॉक किया जाता था, लेकिन एन्क्रिप्टेड कनेक्शन में वो फिर भी खुल जाते थे."
हमें चिंता क्यों करनी चाहिए?
इस तरह चुपचाप और मनमाने तरीके से डेटा सेंसरिंग करना हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 अ का उल्लंघन है और जब कोई रोकटोक न हो तो फिर हिंसा और नफरत को बढ़ाने वाले तत्व बिना किसी डर के समाज में अफवाह फैलाते रहते हैं. कश्मीर में इंटरनेट बैन और फ़िल्टरिंग टेक्नोलॉजी के कथित उपयोग द्वारा जनता किस वेब पेज को देखेगी किसे नहीं ये नियंत्रित किया जा रहा था. लेकिन अगर इस तरह के कदम निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बगैर किया गया तो ये हम सभी के बोलने की आजादी का हनन है.
जितने यूआरएल इन दसों देशों ने ब्लॉक की है उससे ज्यादा संख्या भारत में ब्लॉक वेबसाइट की है. और भारत में आईएसपी पाकिस्तान, बहरीन और यूएई को मिलाकर बनी संख्या से दोगुना नेटस्वीपर का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये आंकड़े डराने वाले हैं और एक बहुत खतरनाक खेल की तरफ इशारा कर रहे हैं. एक ऐसा खेल जिसे अभी ही बंद होना चाहिए.
2019 आम चुनावों के पहले अधिकारियों द्वारा कथित रूप से भारत और विदेशों में अल्पसंख्यकों पर किए गए अत्याचारों से संबंधित समाचार और जानकारी को लोगों तक पहुंचने से रोका जा रहा है. ये ऐसा कदम है जिसके नतीजे कैंब्रीज एनालिटिका और फेसबुक द्वारा डेटा लीक से भी भयावह होंगे.
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा इस मामले पर बात करने के लिए संपर्क किए जाने पर, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों ने इस जिम्मेदारी से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया और कहा कि सरकार ने इन वेबसाइटों को ब्लॉक करने के लिए कोई आदेश पारित नहीं किया है. वहीं दूरसंचार विभाग के अधिकारियों ने इस मुद्दे पर कुछ न बोलना ही बेहतर समझा. दूरसंचार विभाग के माध्यम से ही आईएसपी को आदेश जारी किया जाता है.
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