ये सोचकर भी कितना डर लगता है कि इस विशाल ब्रह्मांड में सिर्फ धरती पर ही जीवन है. शायद इसीलिए विज्ञान हमेशा से धरती से परे कहीं और भी जीवन की संभावनाओं को टटोलने की कोशिश में लगा रहा है. हालांकि अब तक सफलता नहीं मिली है लेकिन प्रयास जारी हैं.
कौन जानें एक दिन आपको पता चले कि इस ब्रह्मांड में एक और ऐसा ग्रह है जहां धरती की तरह जीवन है. तो धरती के अलावा किसी और ग्रह पर जीवन की तलाश में जुटे वैज्ञानिकों के लिए अब एक खुशखबरी है.
नासा के वैज्ञानिकों ने धरती से लगभग 1200 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित Kepler-62f नामक ग्रह की खोज की है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वहां जीवन होने की संभावनाएं हैं. इस ग्रह और धरती के बीच ऐसी कई समानताएं हैं जो इस ग्रह पर जीवन होने की संभावनाओं को प्रबल बनाती हैं, आइए जानें Kepler-62f पर क्यों हो सकता है जीवन.
धरती के अलावा इस ग्रह पर भी जीवन!
धरती से करीब 1200 प्रकाश वर्ष दूर और 40 गुना बड़े इस ग्रह को नासा ने खोजा है. नासा का कहना है कि केपलर-62f (Kepler-62f) लायरा तारामंडल की दिशा में है और यह उन ग्रहों की रेंज में है जोकी पथरीले होते हैं और जिन पर समुद्र होने की भी संभावना होती है.
नासा के केपलर मिशन ने 2013 में ग्रह सिस्टम की खोज की थी जिसमें केपलर-62f भी शामिल था. यह ग्रह हमारे सूर्य से छोटे और ठंडे तारे की परिक्रमा कर रहे पांच ग्रहों में सबसे बाहर स्थित था. लेकिन ये मिशन केपलर-62f के वातावरण या इसके कक्षा के आकार के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सका था.
अब यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया लॉस एंजिलिस (यूसीएलए) और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन उन संभावित परिस्थितियों के साथ सामने आए हैं कि इस ग्रह का वातावरण और परिक्रमा का आकार कैसा हो सकता है जिससे यह जाना जा सके कि इस ग्रह पर जीवन संभव है या नहीं.
ये सोचकर भी कितना डर लगता है कि इस विशाल ब्रह्मांड में सिर्फ धरती पर ही जीवन है. शायद इसीलिए विज्ञान हमेशा से धरती से परे कहीं और भी जीवन की संभावनाओं को टटोलने की कोशिश में लगा रहा है. हालांकि अब तक सफलता नहीं मिली है लेकिन प्रयास जारी हैं. कौन जानें एक दिन आपको पता चले कि इस ब्रह्मांड में एक और ऐसा ग्रह है जहां धरती की तरह जीवन है. तो धरती के अलावा किसी और ग्रह पर जीवन की तलाश में जुटे वैज्ञानिकों के लिए अब एक खुशखबरी है. नासा के वैज्ञानिकों ने धरती से लगभग 1200 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित Kepler-62f नामक ग्रह की खोज की है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वहां जीवन होने की संभावनाएं हैं. इस ग्रह और धरती के बीच ऐसी कई समानताएं हैं जो इस ग्रह पर जीवन होने की संभावनाओं को प्रबल बनाती हैं, आइए जानें Kepler-62f पर क्यों हो सकता है जीवन. धरती के अलावा इस ग्रह पर भी जीवन! धरती से करीब 1200 प्रकाश वर्ष दूर और 40 गुना बड़े इस ग्रह को नासा ने खोजा है. नासा का कहना है कि केपलर-62f (Kepler-62f) लायरा तारामंडल की दिशा में है और यह उन ग्रहों की रेंज में है जोकी पथरीले होते हैं और जिन पर समुद्र होने की भी संभावना होती है. नासा के केपलर मिशन ने 2013 में ग्रह सिस्टम की खोज की थी जिसमें केपलर-62f भी शामिल था. यह ग्रह हमारे सूर्य से छोटे और ठंडे तारे की परिक्रमा कर रहे पांच ग्रहों में सबसे बाहर स्थित था. लेकिन ये मिशन केपलर-62f के वातावरण या इसके कक्षा के आकार के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सका था. अब यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया लॉस एंजिलिस (यूसीएलए) और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन उन संभावित परिस्थितियों के साथ सामने आए हैं कि इस ग्रह का वातावरण और परिक्रमा का आकार कैसा हो सकता है जिससे यह जाना जा सके कि इस ग्रह पर जीवन संभव है या नहीं.
यूसीएलए के आवोमावा शील्ड्स ने कहा, हमने पाया कि वहां कई वायुमंडलीय सरंचनाएं हैं जो इसे उतना गर्म बनाती हैं जोकि वहां सतह पर तरल पानी होने के जरूरी होता है. इससे इस ग्रह पर जीवन होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इसलिए इस ग्रह पर हो सकता है जीवन! ऐसी कई बातें हैं जो इस ग्रह पर जिनसे लगता है कि इस ग्रह पर जीवन संभव है. अनुसंधानकर्ताओं को कहना है कि कार्बन डाइ ऑक्साइड धरती का 0.04 फीसदी वातावरण बनाता है. अब क्योंकि केपलर-62f ग्रह अपने तारे से धरती के सूर्य से दूरी से कहीं अधिक दूर है, इसलिए इसके लिए अपनी सतह पर पानी के तरल रूप में बने रहने और उसे जमने से रोकने के लिए कहीं ज्यागा कार्बन डाइ ऑक्साइड की जरूरत होगी. अनुसंधानकर्ताओं ने कंप्यूटर पर केपलर-62f के वातावरण का मॉडल तैयार किया और उससे अनुमान जताया कि केपलर के वातावरण में धरती के ही बराबर मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है, साथ ही इस ग्रह के कक्षा के कई पथों के बारे में भी संभावना जताई गई. इससे वह इस निष्कर्ष पर निकले कि ऐसी कई परिस्थितयां जो इस ग्रह को रहने योग्य बनाती हैं. शील्ड ने कहा कि वर्ष भर रहने योग्य बनने के लिए इस ग्रह को एक ऐसे वातावरण की जरूरत होगी जोकि धरती से तीन से पांच गुना तक ज्यादा मोटा हो और पूरी तरह कार्बन डाइऑक्साइड से बना हो. इतनी बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का होना इस ग्रह पर इसलिए संभव हो सकता है कि ये इसकी तारे से दूरी पर निर्भर करती है. ऐसे में वातावरण में गैस का निर्माण हो सकता है क्योंकि ग्रह को गर्म तापमान घट जाता है. वैज्ञानिकों ने ग्रह के संभावित परिक्रमा पथ की गणना के लिए कंप्यूटर के मॉडल एचएनबॉडी का प्रयोग किया, और इसके क्लाइमेट को जानने के लिए उन्होंने पहले से मौजूद ग्लोबल क्लाइमेट मॉडल का प्रयोग किया. इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |