भारतीय रेल और ISRO के बीच एक समझौता हुआ है. इसके तहत ISRO अब भारतीय रेल को विभिन्न स्तरों पर सहयोग प्रदान करेगा. समझौते के अनुसार ISRO अपनी अंतरिक्ष तकनीक और रिमोट सेंसिस के जरिये भारतीय रेल की सुरक्षा और परिचालन के स्तर पर सहायता देगा. ISRO के सहयोग के बाद स्थिति यह होगी कि रेलवे सेटेलाइट के द्वारा अपनी चालित गाड़ियों पर आसानी से निगाह रख सकेगा.
इसके अलावा यदि असावधानी के कारण कोई दो गाड़ियाँ एक ही साथ एक ही पटरी पर आ जाती हैं तो चालक को समय रहते इस बात की सूचना देकर दुर्घटनाओं को रोका भी जा सकेगा. मानव रहित फाटक और क्रासिंग आदि पर भी सेटेलाइट के जरिये ही निगरानी रहेगी. दरअसल, ISRO रिमोट सेंसिस के मामले में दुनिया में अव्वल माना जाता है. ISRO की मदद से भारतीय रेलवे ऐसा सिस्टम डेवलप करने की योजना बना रही है, जिससे पूरे देश में इस बात का पता रखा जा सके कि कौन सी ट्रेन किस पटरी पर किस स्टेशन के पास से होकर निकल रही है. यह सब कार्य करने के लिए इसरो की तरफ से एक जीपीएस चिप तैयार की जा रही है, जिसे गाड़ियों के इंजनों में लगाया जाएगा.
यह चिप ISRO के सेटेलाइट सिस्टम से जुडी होगी और इसीके जरिये समस्त निगरानी प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा. कहने की आवश्यकता नहीं कि ISRO के इन कार्यों से हमारी रेलवे को सुरक्षा के दृष्टिकोण से काफी राहत मिलेगी. रेलवे के आधुनिकीकरण की जब-तब चर्चा तो उठती रहती है. लेकिन पर्याप्त धन न होने के कारण ये कार्य लम्बे समय से अटका हुआ है. ऐसे में ISRO के साथ हुआ भारतीय रेल का यह समझौता एक अत्यंत समझदारी युक्त कदम है. हालांकि अभी इसे सिर्फ एक शुरुआत ही माना जाना चाहिए. क्योंकि, इसरो ये सहयोग करने में यदि आज सक्षम हो पा रहा है तो इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि ISRO स्वदेशी जीपीएस तकनीक पूरी तरह से हासिल करने के काफी निकट पहुँच चुका है.
इसके लिए पांच उपग्रहों को ISRO अन्तरिक्ष में स्थापित कर चुका है, लेकिन अभी भी इस श्रृंखला के दो और उपग्रहों का प्रक्षेपण शेष है. इसके उपरांत ही ISRO की ये स्वदेशी जीपीएस...
भारतीय रेल और ISRO के बीच एक समझौता हुआ है. इसके तहत ISRO अब भारतीय रेल को विभिन्न स्तरों पर सहयोग प्रदान करेगा. समझौते के अनुसार ISRO अपनी अंतरिक्ष तकनीक और रिमोट सेंसिस के जरिये भारतीय रेल की सुरक्षा और परिचालन के स्तर पर सहायता देगा. ISRO के सहयोग के बाद स्थिति यह होगी कि रेलवे सेटेलाइट के द्वारा अपनी चालित गाड़ियों पर आसानी से निगाह रख सकेगा.
इसके अलावा यदि असावधानी के कारण कोई दो गाड़ियाँ एक ही साथ एक ही पटरी पर आ जाती हैं तो चालक को समय रहते इस बात की सूचना देकर दुर्घटनाओं को रोका भी जा सकेगा. मानव रहित फाटक और क्रासिंग आदि पर भी सेटेलाइट के जरिये ही निगरानी रहेगी. दरअसल, ISRO रिमोट सेंसिस के मामले में दुनिया में अव्वल माना जाता है. ISRO की मदद से भारतीय रेलवे ऐसा सिस्टम डेवलप करने की योजना बना रही है, जिससे पूरे देश में इस बात का पता रखा जा सके कि कौन सी ट्रेन किस पटरी पर किस स्टेशन के पास से होकर निकल रही है. यह सब कार्य करने के लिए इसरो की तरफ से एक जीपीएस चिप तैयार की जा रही है, जिसे गाड़ियों के इंजनों में लगाया जाएगा.
यह चिप ISRO के सेटेलाइट सिस्टम से जुडी होगी और इसीके जरिये समस्त निगरानी प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा. कहने की आवश्यकता नहीं कि ISRO के इन कार्यों से हमारी रेलवे को सुरक्षा के दृष्टिकोण से काफी राहत मिलेगी. रेलवे के आधुनिकीकरण की जब-तब चर्चा तो उठती रहती है. लेकिन पर्याप्त धन न होने के कारण ये कार्य लम्बे समय से अटका हुआ है. ऐसे में ISRO के साथ हुआ भारतीय रेल का यह समझौता एक अत्यंत समझदारी युक्त कदम है. हालांकि अभी इसे सिर्फ एक शुरुआत ही माना जाना चाहिए. क्योंकि, इसरो ये सहयोग करने में यदि आज सक्षम हो पा रहा है तो इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि ISRO स्वदेशी जीपीएस तकनीक पूरी तरह से हासिल करने के काफी निकट पहुँच चुका है.
इसके लिए पांच उपग्रहों को ISRO अन्तरिक्ष में स्थापित कर चुका है, लेकिन अभी भी इस श्रृंखला के दो और उपग्रहों का प्रक्षेपण शेष है. इसके उपरांत ही ISRO की ये स्वदेशी जीपीएस तकनीक एकदम बेहतर ढंग से काम करने में सक्षम हो सकेगी. अब ISRO ने रेलवे को जो तकनिकी सहयोग देने का भरोसा दिया है, वो सब संभवतः इसी जीपीएस तकनीक पर आधारित होंगे. ऐसे में, यह देखना होगा कि इस स्वदेशी जीपीएस तकनीक द्वारा प्रदत्त सहयोग रेलवे के लिए कितने गुणवत्तापूर्ण ढंग से लाभकारी सिद्ध होते हैं. चूंकि भारतीय रेल का नेटवर्क बहुत बड़ा है, इस नाते इसे आधुनिक बनाना ISRO के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा.
वैसे, अभी भी कई ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे रेलवे को पार पाना है. इन समस्याओं में सबसे प्रमुख हैं, रेल दुर्घटनाएं जिनके कुछ कारणों का निवारण तो ISRO से मिलने वाले सहयोग के जरिये हो जाएगा. लेकिन इनका जो प्रमुख कारण है, वो ISRO के सहयोग से दूर नहीं होगा. वो कारण है, रेल पटरियों की जर्जर हालत. एक आंकड़ें के अनुसार फिलहाल रेलवे का लगभग 80 फीसदी यातायात महज 40 फीसदी रेल नेटवर्क के भरोसे चल रहा है, जिससे भीड़-भगदड़ और असुरक्षा जैसी समस्याओं से रेलवे को दो-चार होना पड़ता है. यह क्षमता से अधिक का बोझ बड़ा कारण है रेल दुर्घटनाओं के लिए. इसके अतिरिक्त अधिकांश रेल पटरियों की हालत भी जर्जर हो चुकी है जो कि अक्सर दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं.
कहने की आवश्यकता नहीं कि रेल दुर्घटनाओं की समस्या ISRO के सहयोग के बाद कुछ कम जरूर हो सकती है लेकिन, यह पूरी तरह से दूर तभी होगी जब रेलवे रेल पटरियों की हालत सुधरने तथा इनकी संख्या बढ़ाने आदि के लिए प्रयास तेज करेगा. इसलिए कहना होगा कि ISRO और भारतीय रेलवे के बीच हुए समझौते के प्रति आशान्वित जरूर हुआ जा सकता है, पर अभी इससे बहुत ज्यादा उम्मीदें पालना जल्दबाजी होगी. वैसे, इसे रेल आधुनिकीकरण की दिशा में एक शुरूआती कदम मानते हुए उम्मीद की जानी चाहिए कि ISRO और रेलवे के सहयोग को और भी आवश्यक विस्तार दिया जाएगा.
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