इंटरनेट बड़ी ही अजीब चीज है. 90 के दशक और उससे पहले पैदा हुए हर इंसान को पता है कि बॉस इंटरनेट के बिना जिंदगी कैसी होती है. हालांकि, आज की तारीख में शायद ही कोई ऐसा हो जो इंटरनेट के बिना रह पाता हो. पर इंटरनेट सर्फ करने का अपना अलग नुकसान है. आपको हर वक्त ट्रैक किया जाता है. कभी गूगल तो कभी कोई हैकर.. अब तो जियो पर भी ट्रैक करने के इल्जाम लग रहे हैं. लेकिन कैसे पता करें कि कौन ट्रैक कर रहा है?
गूगल बाबा सब जानते हैं...
गूगल को सब पता है. आप कब कहां गए हैं, कब कौन का काम किया है, कब अमेजन या फ्लिपकार्ट से पार्सल आने वाला है, कब ट्रेन या फ्लाइट है सब कुछ गूगल ट्रैक करता रहता है. गूगल को तो ये भी पता है कि खाने में आपने क्या ऑर्डर किया है. इसका फायदा? फायदा ये है कि इससे गूगल पैसे कमाती है. कोई ड्रेस ऑर्डर करिए ऑनलाइन और उसके बाद फेसबुक से लेकर कोई रैंडम साइट जिसे आप देखेंगे उसमें अलग-अलग साइट के कपड़ों के विज्ञापन दिखेंगे.
हैकर्स भी करते हैं ट्रैक...
गूगल की ट्रैकिंग से किसी को शायद ही कोई परेशानी होती हो, लेकिन गूगल ही नहीं हैकर्स भी ट्रैक करते हैं. मालवेयर से लेकर रैनसमवेयर तक कुछ भी आसानी से किसी भी इंसान के कम्प्यूटर या स्मार्टफोन पर भेजा जा सकता है. घर बैठे कोई भी हैकर आपके सिस्टम का वेबकैम हैक कर सकता है और सिस्टम बंद होने पर भी आसानी से उससे कुछ भी रिकॉर्ड कर सकता है.
ये बहुत मुश्किल है कि कोई भी कभी भी इंटरनेट के एक्टिव होते हुए 100% सुरक्षित हो जाए, लेकिन फिर भी कैस्परस्काई लैब के कुछ तरीके हैं जिससे काफी हद तक ये पता किया जा सकता है कि कौन और कब ट्रैक कर रहा है...
1. ट्रैफिक का पता लगाना...
अपने आउटगोइंग ट्रैफिक का पता लगाया जा सकता है इसके लिए...
- विंडोज स्टार्ट बटन पर क्लिक करें और 'cmd' टाइप करें. जो काली विंडो डिस्प्ले होगी उसमें 'netstat' टाइप करें...
इसके बाद एंटर प्रेस करिए. इसके बाद पूरे आउटगोइंड...
इंटरनेट बड़ी ही अजीब चीज है. 90 के दशक और उससे पहले पैदा हुए हर इंसान को पता है कि बॉस इंटरनेट के बिना जिंदगी कैसी होती है. हालांकि, आज की तारीख में शायद ही कोई ऐसा हो जो इंटरनेट के बिना रह पाता हो. पर इंटरनेट सर्फ करने का अपना अलग नुकसान है. आपको हर वक्त ट्रैक किया जाता है. कभी गूगल तो कभी कोई हैकर.. अब तो जियो पर भी ट्रैक करने के इल्जाम लग रहे हैं. लेकिन कैसे पता करें कि कौन ट्रैक कर रहा है?
गूगल बाबा सब जानते हैं...
गूगल को सब पता है. आप कब कहां गए हैं, कब कौन का काम किया है, कब अमेजन या फ्लिपकार्ट से पार्सल आने वाला है, कब ट्रेन या फ्लाइट है सब कुछ गूगल ट्रैक करता रहता है. गूगल को तो ये भी पता है कि खाने में आपने क्या ऑर्डर किया है. इसका फायदा? फायदा ये है कि इससे गूगल पैसे कमाती है. कोई ड्रेस ऑर्डर करिए ऑनलाइन और उसके बाद फेसबुक से लेकर कोई रैंडम साइट जिसे आप देखेंगे उसमें अलग-अलग साइट के कपड़ों के विज्ञापन दिखेंगे.
हैकर्स भी करते हैं ट्रैक...
गूगल की ट्रैकिंग से किसी को शायद ही कोई परेशानी होती हो, लेकिन गूगल ही नहीं हैकर्स भी ट्रैक करते हैं. मालवेयर से लेकर रैनसमवेयर तक कुछ भी आसानी से किसी भी इंसान के कम्प्यूटर या स्मार्टफोन पर भेजा जा सकता है. घर बैठे कोई भी हैकर आपके सिस्टम का वेबकैम हैक कर सकता है और सिस्टम बंद होने पर भी आसानी से उससे कुछ भी रिकॉर्ड कर सकता है.
ये बहुत मुश्किल है कि कोई भी कभी भी इंटरनेट के एक्टिव होते हुए 100% सुरक्षित हो जाए, लेकिन फिर भी कैस्परस्काई लैब के कुछ तरीके हैं जिससे काफी हद तक ये पता किया जा सकता है कि कौन और कब ट्रैक कर रहा है...
1. ट्रैफिक का पता लगाना...
अपने आउटगोइंग ट्रैफिक का पता लगाया जा सकता है इसके लिए...
- विंडोज स्टार्ट बटन पर क्लिक करें और 'cmd' टाइप करें. जो काली विंडो डिस्प्ले होगी उसमें 'netstat' टाइप करें...
इसके बाद एंटर प्रेस करिए. इसके बाद पूरे आउटगोइंड डेटा की लिस्ट सामने आ जाएगी. ये कमांड तब इस्तेमाल करें जब कम से कम एप्स खुली हुई हों.
यहां IP ऐड्रेस को ट्रैक कर आप ये पता लगा सकते हैं कि आपकी जानकारी कहां जा रही है.
2. शरारती एप्स का पता लगाएं...
सिस्टम में 'टास्क मैनेजर' (Task manager) पर जाएं. यहां सभी प्रोग्राम को बंद कर दें बस वेब ब्राउजर ऑन रखें.
अब 'Processes' टैब पर क्लिक करें. यहां अपना यूजर नेम टाइप करें. अब अगर कोई भी प्रोसेस बिना आपके यूजर नेम के चल रहा है उसका मतलब ये होगा कि कोई अनचाहा सॉफ्टवेयर आपके कम्प्यूटर पर काम कर रहा है.
3. गूगल एड..
इसमें तो कोई शक नहीं कि सबसे ज्यादा गूगल ही अपने यूजर्स को ट्रैक करता है. गूगल अपने हर यूजर की एक प्रोफाइल बनाता है और इसलिए गूगल क्रोम पर जाकर 'ad personalisation'ऑप्शन को अनचेक कर लें. ऐसे में अगर कोई और आपके ब्राउजर से लॉगइन करेगा तो भी उसे कोई भी पर्सनल डिटेल नहीं मिलेगी.
4. इनकॉग्निटो मोड नहीं करेगा मदद..
ये एक मिथक ही है कि इनकॉग्निटो मोड में ब्राउजिंग करने से पूरी तरह से सेफ हो जाएंगे. ये भी एड्स को नहीं हटा सकता है. इसके लिए अलग से ब्राउजर एडऑन्स का इस्तेमाल किया जा सकता है.
5. लॉग आउट करने की आदत...
एक बात का ध्यान हमेशा रखें. हर वक्त अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर लॉग इन न रहें. ऐसा करने से समस्या ज्यादा होती है. अगर हर वक्त फेसबुक ऑन रहेगा तो ट्रैक करने की गुंजाइश ज्यादा रहेगी.
ये भी पढ़ें-
फेसबुक पर गैंगरेप और मुसलमानों को मारने वाले लोगों के लिए भी विज्ञापन!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.