पूरे देश में मॉनसून आ चुका है और इस समय मुंबई से लेकर भोपाल तक और गुजरात से लेकर गोवा तक सभी जगह बारिश अपने चरम पर है. जब-जब भारत में मॉनसून आता है तब-तब कई शहरों में नदियां उफान पर आ जाती हैं और लोगों को अच्छी खासी परेशानी होती है. अब मुंबई को ही ले लीजिए मुंबई में हर साल इतना पानी भरता है कि गाड़ी घोड़ा तो छोड़िए लोकल भी बंद हो जाती है.
जिस तरह मॉनसून में हर साल लोकल का बंद होना तय है वैसे ही हर साल मॉनसून में पूरे देश की DTH सर्विस का बंद होना भी तय ही है. हर बार एक सीधा सा मैसेज आ जाता है कि सर्विस बारिश की वजह से बंद है. पर ऐसा होता क्यों है?
कल वरिष्ठ पत्रकार वीर संघ्वी ने इस मुद्दे को ट्विटर पर उठाया.
इसपर टाटा स्काई की तरफ से जवाब भी आया..
सिर्फ टाटा स्काई की तरफ से ही नहीं बल्कि डिश टीवी का भी रिप्लाई इसमें आसानी से आया..
ये तो दो डीटीएच सर्विस की बात है लेकिन चाहें टाटा स्काई को देखें, एयरटेल को देखें, बिग टीवी को देखें, सन डाइरेक्ट को देखें, डिश टीवी को देखें या फिर वीडियोकॉन डीटीएस को, सभी सेट टॉप बॉक्स से जुड़ी सर्विसेज बारिश देखते ही बंद हो जाती हैं. इसका कारण आखिर क्या है? हमारे मोबाइल फोन, इंटरनेट जैसी सर्विसेज तो बंद नहीं होतीं. और अगर ऐसा हर बार होता ही है तो क्यों नहीं कंपनियां कोई ऐसा डीटीएस बना लेतीं जो बारिश में भी वैसे ही काम करे जैसा बाकी दिनों में काम करता है.
क्यों होता आती है सिग्नल में समस्या..
टीवी ब्रॉडकास्ट यानी डीटीएच में...
पूरे देश में मॉनसून आ चुका है और इस समय मुंबई से लेकर भोपाल तक और गुजरात से लेकर गोवा तक सभी जगह बारिश अपने चरम पर है. जब-जब भारत में मॉनसून आता है तब-तब कई शहरों में नदियां उफान पर आ जाती हैं और लोगों को अच्छी खासी परेशानी होती है. अब मुंबई को ही ले लीजिए मुंबई में हर साल इतना पानी भरता है कि गाड़ी घोड़ा तो छोड़िए लोकल भी बंद हो जाती है.
जिस तरह मॉनसून में हर साल लोकल का बंद होना तय है वैसे ही हर साल मॉनसून में पूरे देश की DTH सर्विस का बंद होना भी तय ही है. हर बार एक सीधा सा मैसेज आ जाता है कि सर्विस बारिश की वजह से बंद है. पर ऐसा होता क्यों है?
कल वरिष्ठ पत्रकार वीर संघ्वी ने इस मुद्दे को ट्विटर पर उठाया.
इसपर टाटा स्काई की तरफ से जवाब भी आया..
सिर्फ टाटा स्काई की तरफ से ही नहीं बल्कि डिश टीवी का भी रिप्लाई इसमें आसानी से आया..
ये तो दो डीटीएच सर्विस की बात है लेकिन चाहें टाटा स्काई को देखें, एयरटेल को देखें, बिग टीवी को देखें, सन डाइरेक्ट को देखें, डिश टीवी को देखें या फिर वीडियोकॉन डीटीएस को, सभी सेट टॉप बॉक्स से जुड़ी सर्विसेज बारिश देखते ही बंद हो जाती हैं. इसका कारण आखिर क्या है? हमारे मोबाइल फोन, इंटरनेट जैसी सर्विसेज तो बंद नहीं होतीं. और अगर ऐसा हर बार होता ही है तो क्यों नहीं कंपनियां कोई ऐसा डीटीएस बना लेतीं जो बारिश में भी वैसे ही काम करे जैसा बाकी दिनों में काम करता है.
क्यों होता आती है सिग्नल में समस्या..
टीवी ब्रॉडकास्ट यानी डीटीएच में इस्तेमाल होने वाले ज्यादातर सिग्नल K बैंड से रिसीव होते हैं. इसका फुल फॉर्म है Kurz बैंड. ये बैंड जो फ्रीक्वेंसी इस्तेमाल करता है वो पानी से डिस्टर्ब हो जाती है. तकनीकी भाषा में कहें तो ये फ्रीक्वेंसी गूंजने लगती है. यही कारण है कि पानी का दबाव बढ़ते ही ये बैंड सबसे ज्यादा पानी और मॉइस्चर को सोख सकता है.
K बैंड हाई फ्रीक्वेंसी और डेटा रेट में ट्रांसमिशन कर सकता है और यही कारण है कि पर्यावरण में होने वाले दबाव को झेलने के बाद भी ये बेहतर सिग्नल दे सकता है. पर ये पूरी तरह से अचूक नहीं है. पानी की कमजोरी के कारण ही ये बारिश के लिए अतिसंवेदनशील होता है. सैटेलाइट और डिश के बीच पानी का दबाव बढ़ने के कारण ही ये सिग्नल ठीक तरह से नहीं जा पाते.
सैटेलाइट रिसीवर की सबसे अच्छी बात होती है एरर करेक्शन. प्रसारण के समय बिल्ट इन चेक बिट्स ही रिसेप्शन को चेक करते हैं. ये अलग-अलग प्रोवाइडर के हिसाब से अलग हो सकता है. यही कारण है कि टीवी में अक्सर स्टार्ट और स्टॉप हो जाती है. टीवी में डिस्टर्बेंस का मतलब होता है कि वो डेटा जो रिकवर नहीं किया जा सकता उसे हटा दिया जाता है और ऑडियो भी जो खराब हो चुका होता है वो हट जाता है. इसीलिए अगर कोई फिल्म चल रही होती है तो वो आगे निकल जाती है.
अधिकतर सैटेलाइट Ku बैंड पर काम करती हैं और इसीलिए बारिश का असर इनपर ज्यादा होता है. कुछ अन्य सैटेलाइट भी होती हैं जो सी बैंड फ्रीक्वेंसी पर काम करती हैं. सी बैंड फ्रीक्वेंसी को ज्यादा बड़े डिश एंटीना की जरूरत होती है.
क्यों K बैंड इस्तेमाल होता है ज्यादा?
K बैंड इसलिए ज्यादा इस्तेमाल होता है क्योंकि इसे छोटे डिश एंटिना की जरूरत होती है. (60 सेंटिमीटर से 80 सेंटिमीटर वाले) ग्राहकों के लेवल पर देखें तो इसका इंस्टॉलेशन ज्यादा आसानी से होता है और सेट टॉप बॉक्स जैसे उपकरण इसे ज्यादा बेहतर बनाते हैं. सी बैंड के लिए ज्यादा महंगे और बड़े उपकरणों की जरूरत होती है.
अगर तकनीकी शब्दों में समस्या को समझने की कोशिश करें तो K बैंड में 10.95 GHZ से 14.5 GHz के बीच फ्रीक्वेंसी होती है और इसकी वेवलेंथ काफी छोटी होती है (2 सेंटीमीटर) जब हर वेव पानी के बीच से गुजरती है तो डिस्टर्बेंस हो जाता है और सिग्नल आधा ही रह जाता है. और एरर करेक्शन के कारण सिग्नल वैसे भी टीवी स्क्रीन तक नहीं पहुंच पाता.
इसका फिलहाल कोई इलाज नहीं है और थोड़े ज्यादा बैंड वाले नेटवर्क भी इस समस्या का शिकार हो जाते हैं. उम्मीद है कि जल्द ही इस समस्या का इलाज खोज लिया जाए.
ये भी पढ़ें-
मानव अंतरिक्ष मिशन की ओर इसरो की जोरदार छलांग
क्या वाकई पेट की चर्बी बर्फ से कम की जा सकती है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.