डरने की क्या बात है ? मानव को इंटेलिजेंस ईश्वर प्रदत्त है जबकि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस मानव प्रदत्त है. ज्ञान एक अथाह महासागर है जिसकी थाह मानव ही अपनी बुद्धिमता से लेता है. हर सर्च इंजन मानव निर्मित है, वह स्वयं ज्ञान के अथाह महासागर में गोता नहीं लगा सकता ; उसके ज्ञान की हद है आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की सीमा तक जिसे मानव ही तब अपडेट कर पाता है जब वह महासागर से ले पाता है. ऑन ए लाइटर नोट विथ आल ड्यू रेस्पेक्ट क्यों ना चैटबॉट के इन प्रोडक्ट्स को पोंगा पंडित कहें ? आखिर रटी रटाई (फीड) बातों को ही तो तोते की तरह दोहराता है. खुद का आत्मचिंतन या विवेक जो नहीं है. दरअसल चैटबॉट को आप एक डिजिटल रेडी रेकनर समझें जिसके अपडेशन की निरंतरता हर हाल में मानव पर निर्भर है.
फिलहाल तो दो तक दिग्गज अपने अपने डर का निवारण कर लें. गूगल के लिए सबसे बड़ा डर अपने वेब पब्लिशर्स के बिदकने का है. वे अपनी साइट पर क्लिक पाने के लिए गूगल के सर्च पेज पर निर्भर करते हैं और इसी से गूगल का 150 अरब डॉलर का व्यवसाय है. गूगल के पास तो ये AI आधारित चैटबॉट तकनीक 2011 से थी, लेकिन उसने इसे दूर ही रखा व्यावसायिक हितों की वजह से. लेकिन अब जब माइक्रोसॉफ्ट ला रही है, दूसरे भी आ रहे हैं तो गूगल कैसे रुक सकती है ? ठीक भी है वेब पब्लिशर्स कब तक तकनीक की अनिवार्य और अपरिहार्य प्रगति में बाधक बने रहेंगे ?
ऐसा नहीं है कि माइक्रोसॉफ्ट के लिए खतरे नहीं है. बिंग नया सर्च इंजन नहीं है. माइक्रोसॉफ्ट ने इसे गूगल को टक्कर देने के लिए तैयार किया था. लेकिन पिछले कई सालों में Bing ऐसा कोई कमाल नहीं कर पाया, जिससे गूगल को टक्कर दी जा सके.
ओपन एआई के चैटजीपीटी में माइक्रोसॉफ्ट ने अवसर ताड़ा...
डरने की क्या बात है ? मानव को इंटेलिजेंस ईश्वर प्रदत्त है जबकि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस मानव प्रदत्त है. ज्ञान एक अथाह महासागर है जिसकी थाह मानव ही अपनी बुद्धिमता से लेता है. हर सर्च इंजन मानव निर्मित है, वह स्वयं ज्ञान के अथाह महासागर में गोता नहीं लगा सकता ; उसके ज्ञान की हद है आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की सीमा तक जिसे मानव ही तब अपडेट कर पाता है जब वह महासागर से ले पाता है. ऑन ए लाइटर नोट विथ आल ड्यू रेस्पेक्ट क्यों ना चैटबॉट के इन प्रोडक्ट्स को पोंगा पंडित कहें ? आखिर रटी रटाई (फीड) बातों को ही तो तोते की तरह दोहराता है. खुद का आत्मचिंतन या विवेक जो नहीं है. दरअसल चैटबॉट को आप एक डिजिटल रेडी रेकनर समझें जिसके अपडेशन की निरंतरता हर हाल में मानव पर निर्भर है.
फिलहाल तो दो तक दिग्गज अपने अपने डर का निवारण कर लें. गूगल के लिए सबसे बड़ा डर अपने वेब पब्लिशर्स के बिदकने का है. वे अपनी साइट पर क्लिक पाने के लिए गूगल के सर्च पेज पर निर्भर करते हैं और इसी से गूगल का 150 अरब डॉलर का व्यवसाय है. गूगल के पास तो ये AI आधारित चैटबॉट तकनीक 2011 से थी, लेकिन उसने इसे दूर ही रखा व्यावसायिक हितों की वजह से. लेकिन अब जब माइक्रोसॉफ्ट ला रही है, दूसरे भी आ रहे हैं तो गूगल कैसे रुक सकती है ? ठीक भी है वेब पब्लिशर्स कब तक तकनीक की अनिवार्य और अपरिहार्य प्रगति में बाधक बने रहेंगे ?
ऐसा नहीं है कि माइक्रोसॉफ्ट के लिए खतरे नहीं है. बिंग नया सर्च इंजन नहीं है. माइक्रोसॉफ्ट ने इसे गूगल को टक्कर देने के लिए तैयार किया था. लेकिन पिछले कई सालों में Bing ऐसा कोई कमाल नहीं कर पाया, जिससे गूगल को टक्कर दी जा सके.
ओपन एआई के चैटजीपीटी में माइक्रोसॉफ्ट ने अवसर ताड़ा कि वह गूगल को टक्कर दे सकता है. सो उसने संभ्रांत भाषा में कहें तो ओपन एआई के साथ पार्टनरिंग कर ली और ठेठ कहें तो ओपन एआई को पैसे के दम पर खरीद लिया. और फिर ले आया अपने पुराने बिंग का नया अवतार जो चैटजीपीटी से लैस है. लाखों लोग इसे ट्राई करना चाहते हैं, लेकिन अभी तक सभी को इसका एक्सेस नहीं मिल पाया है. फिलहाल कुछ लोग ही इसे एक्सपीरियंस कर रहे हैं और वे ही सवाल उठा रहे हैं. यूजर्स की मानें तो नया बिंग एक तो गलत जानकारी दे रहा है और ऊपर से अपनी गलती मान भी नहीं रहा है. चोरी और सीनाजोरी वाली बात हो गई ना. जैसा किसी एक यूजर ने शेयर किया है बिंग ने किस प्रकार 2022 और 2023 को उलझा दिया है यानी 2023 के बाद 2022 आएगा. यूज़र के मुताबिक़ बात गलत उत्तर पर खत्म नहीं हुई. बताये जाने पर भी चैटबॉट ने गलती नहीं मानी और उल्टे बाकायदा यूज़र से झगड़ा करते हुए कहा कि उसका (यूज़र का) फ़ोन ख़राब है, बेकार अपना (यूज़र) और उसका (चैटबॉट) का समय ख़राब कर रहे हो. वाह ! क्या मानवीकरण है ? हकीकत भी कुछ इसी प्रकार ही तो है ; कब कोई जल्दी से अपनी गलती मानता है ? लेकिन कोई ऐसा बचकाना जवाब भी तो नहीं देता और इसी बात पर फिर एक कहावत स्मरण होती है, 'नीम हाकिम खतरे जान'.
लगता है माइक्रोसॉफ्ट ने गलती कर दी है. गूगल को टक्कर देने की जल्दबाजी में ठीक से होमवर्क नहीं किया है. इस बात पर तवज्जो नहीं दी है कि डेटाबेस समुचित सुपर रिच है भी. उन्हें लगा कि सवाल जवाब के क्रम में थोड़े बहुत कॉमन से स्टैंडर्ड ऑप्शंस डाल देने भर से काम चल जाएगा. उत्तर सही नहीं भी होगा तो गूगल का 'बार्ड' कौन सा दूध का धोया है ? गलतियां वो भी करेगा ही.अपने पहले ही प्रयोग में की भी थी उसने. फिर गूगल की और समस्याएं भी हैं. हालात 25 साल पहले से ही बन रहे हैं. तब माइक्रोसॉफ्ट का दबदबा हुआ करता था जिसे गूगल ने एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम की वजह से ओवरटेक कर लिया था. लेकिन अब कहा जा रहा है माइक्रोसॉफ्ट गूगल को ओवरटेक कर लेगा. तो दिलचस्प होगा ना इंडियन ओरिजिन के दो टेक दिग्गज का मुकाबला - सत्या नडेला बनाम सुंदर पिचाई !
सवाल है चैटजीपीटी हो या 'बार्ड' या कोई और चैटबॉट आ जाए, डर क्या है ? क्या प्रोफेशनल्स खासकर एजुकेशन और मीडिया से जुड़े लोगों को डरना जरुरी है ? डर कहना शायद थोड़ा ज्यादा हो लेकिन चुनौती तो है ही. यदि चुनौती की वजह तलाशें तो स्वयं की गलतियां ही हैं. क्या शिक्षक हो या क्या ही पत्रकार या क्या ही कोई अन्य प्रोफेशनल, सभी अनप्रोफेशनल जो हो गए हैं. इन सबों ने नॉलेज के लिए डेप्थ में जाना छोड़ ही दिया है, सिर्फ खानापूर्ति ही करते हैं, मसलन शिक्षक है तो वो गुरु-शिष्य कनेक्ट रहा ही नहीं ; जौर्नालिस्ट है तो लगता ही नहीं कि वे समाज को जागरूक कर रहे हैं, दिशा बता रहे हैं. उल्टे पत्रकारिता क्या हो रही है, ना बोलना ही ठीक हैं. एक और बड़ी बात है कि जब लोगों को अवसर मिल जाता है, मसलन टीचिंग का, पत्रकारिता का या अन्यान्य प्रोफेशन में, वे स्वयं को समय के साथ ना तो डेवेलप करते हैं ना ही अपग्रेड। उल्टे वे भी 'गूगल बाबा' की ही शरण ले लेते हैं. चैटबॉट के परिणाम भी, फिर चाहे चैटजीपीटी हो या फिर वार्ड, ऐसे ही ज्ञान पर आधारित हैं.
मानविकी और तकनीक के बीच बुनियादी अंतर की बात करें तो तकनीक से मिलने वाली सूचनाओं का आधार फीड किया गया डाटा होता है या फिर वह जिसका कहीं पहले जिक्र किया गया हो. परंतु एक हाड़मांस का प्रोफेशनल, टीचर हो या पत्रकार या अकाउंटेंट या प्रशिक्षक, वह कर सकता है जो पहले कभी नहीं हुआ हो और व्यावहारिक भी हो. और जब वह होता है, जो पहले नहीं हुआ, भी फीड हो जाएगा तकनीक को कंट्रीब्यूट करने के लिए. सो कहने का मतलब है कि इंसान हमेशा ही आगे रहेगा, आखिर तकनीक भी तो मानव की ही देन है.
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