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Updated: 26 मार्च, 2018 01:25 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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एक रोग, जिसके खात्मे का दावा किया जा चुका था, वो लौट आया है. यहां बात की जा रही है महाराष्ट्र की, जिसे 2004 में सरकार ने कुष्ठ रोग से मुक्त घोषित कर दिया गया था, लेकिन मौजूद सरकार ने पिछले दो सालों में एक अभियान चलाया, जिसके नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं. इन दो सालों में कुष्ठ रोग के कुल 14,287 मामले सामने आ चुके हैं. अब मौजूदा सरकार ने कहा है कि पिछली सरकार ने उन्हें बताया था कि महाराष्ट्र कुष्ठ रोग से मुक्त है. सवाल ये उठता है कि क्या 2004 में महाराष्ट्र के कुष्ठ रोग मुक्त होने की घोषणा गलत थी? या फिर कुष्ठ रोग एक बार खत्म होने के बाद दोबारा फैला है? तो आइए जानते हैं इस रोग के बारे में और पता लगाने की कोशिश करते हैं कि 2004 की घोषणा सच थी या उसके गलत होने की भी कुछ संभावनाएं हैं.

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पहले जानिए क्या है ये रोग?

अगर आपकी चमड़ी पर हल्का पीला या तांबे के रंग के दाग दिखें, तो ये कुष्ठ रोग की शुरुआत हो सकती है. आपके शरीर पर ऐसा कोई भी दाग या धब्बा जिसमें सुन्नपन रहे, सूखापन लगे, पसीना ना आता हो, खुजली या जलन या चुभन न होती हो, तो ये कुष्ठ रोग के लक्षण हैं. भौ झड़ जाना, कानों के ऊपर सूजन आना, हाथ-पैर में सूखापन आना, ये सब कुष्ठ रोग के शुरुआती लक्षण हैं. जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उन्हें यह बीमारी आसानी से हो जाती है.

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ये हैं मिथक और तथ्य

यह कोई आनुवंशिक बीमारी नहीं है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी फैलती रहे. यौन संबंध बनाने और गर्भावस्था में मां से शिशु को भी यह रोग नहीं होता है. कुष्ठ रोग छुआछूत की बीमारी भी नहीं है जो किसी को छू लेने से फैलती है, लेकिन ध्यान रखने वाली बात है कि यह बीमारी पीड़ित व्यक्ति की सांस, छींकने और खांसने से फैल सकती है. ऐसे में अगर कोई शख्स कुष्ठ रोग से पीड़ित है तो उसे अकेला ना छोड़ें, उसका इलाज कराएं, लेकिन मास्क का इस्तेमाल करें.

कैसे होता है ये रोग?

यह रोग खाने-पीने की चीजों से होता है. कुष्ठ रोग के संक्रमण का कारण बैक्टीरिया होता है, जिसे माइकोबैक्टीरियम लेप्री कहा जाता है. बैक्टीरिया के संपर्क में आने के बाद कुष्ठ रोग के लक्षण दिखने में अमूमन 3-5 साल लग जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में करीब 1,80,000 लोग कुष्ठ रोग से संक्रमित हैं, जिसमें से अधिकतर अफ्रीका और एशिया में हैं. इस रोग का एक आसान सा इलाज है, मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीटी). किसी भी सरकारी अस्पताल में एमडीटी किसी भी रोगी को मुफ्त में मुहैया कराई जाती है.

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नसों पर होता है पहला हमला

इस रोग के बैक्टीरिया का पहला शिकार होती हैं आपकी नसें, उसके बाद त्वचा या शरीर के अन्य हिस्सों पर इस रोग के लक्षण दिखते हैं. रोग बढ़ने की स्थिति में आंखों की पलकें और भौंहें झड़ जाती हैं, हाथों-पैरों की तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचने लगता है और फिर भी इलाज न कराने की स्थिति में व्यक्ति अपंग तक हो सकता है. पैरों में गहरी दरारें भी पड़ जाती हैं, जिसे फिशर फीट कहा जाता है. जैसे-जैसे रोग बढ़ता जाता है, व्यक्ति के पूरे शरीर पर इसका असर दिखने लगता है. पूरे शरीर पर दाग-धब्बे पड़ जाते हैं. इसके अलावा नाक में कन्जेशन, नकसीर आना, नाक के सेप्टम का खराब होना, आइरिटिस (आंखों की आइरिस) में सूजन, ग्लूकोमा (आंख का एक रोग, जिसमें ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है) भी इसके लक्षण हैं.

तो ये निकला निष्कर्ष

इस रोग के बारे में जानने-समझने के बाद ये निष्कर्ष निकलता है कि भले ही किसी राज्य में अलग-अलग अभियानों के तहत कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की संख्या जीरो हा जाए, लेकिन ये इस बात की गारंटी नहीं कि फिर से वह रोग उस राज्य के लोगों में नहीं होगा. यह रोग आनुवंशिक तो है नहीं, जिसे एक पीढ़ी में खत्म कर दिया तो ये आगे की पीढ़ी को नहीं होगा. राज्य भले ही एक बार कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाए, लेकिन खराब खान-पान के चलते लेप्री बैक्टीरिया फिर से पनप सकता है. कुछ ऐसा ही महाराष्ट्र में भी होने की संभावना है. 2004 में तो राज्य को कुष्ठ रोग से मुक्त घोषित कर दिया गया और उसे लेकर चलाए जा रहे अभियानों में ढील देना शुरू कर दिया गया, लेकिन कुष्ठ रोग का बैक्टीरिया लैप्री दोबारा से पनपने लगा. और जैसा कि इस रोग के लक्षण दिखने में 3-5 साल लग जाते हैं तो अब दोबारा कुष्ठ रोग से पीड़ित सामने आए हैं.

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