शर्तों के साथ गुजरात के मैदान में उतरेंगे केजरीवाल, यूपी निकाय चुनावों की भी तैयारी
गुजरात में आचार संहिता लागू होने के अरसा पहले आम आदमी पार्टी ने अपनी शर्तें लागू कर दी है. शर्तें पूरी करने वाले नेताओं को ही विधानसभा चुनाव के लिए आप का टिकट मिल पाएगा.
-
Total Shares
लगता है बवाना की जीत ने गोवा, पंजाब, राजौरी गार्डन और एमसीडी चुनावों में आम आदमी पार्टी की हार की भरपाई कर दी है. बवाना उपचुनाव में अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप ने विधानसभा में बीजेपी का नंबर बढ़ने से तो रोका ही, एंट्री को बेताब कांग्रेस तीसरे स्थान पर पहुंच गयी. जीत के जोश से सराबोर आम आदमी पार्टी न सिर्फ गुजरात के मैदान में उतरने जा रही है, बल्कि यूपी के स्थानीय निकाय चुनावों में भी हिस्सा लेने की तैयारी कर रही है.
गुजरात में आचार संहिता लागू होने के अरसा पहले आप ने अपनी शर्तें लागू कर दी है. शर्तें पूरी करने वाले नेताओं को ही आप का टिकट मिल पाएगा.
खाते में 28 लाख हैं क्या?
पंजाब और गोवा के नतीजे आने से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुजरात की 182 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा किये थे. मगर, पंजाब और गोवा की हार के बाद जब दिल्ली के राजौरी गार्डन में भी शिकस्त खानी पड़ी तो पार्टी साइलेंट मोड में जाने लगी. तभी दिल्ली में एमसीडी के चुनाव की तारीख भी आ गई थी इसलिए केजरीवाल ने गुजरात का मोह छोड़ दिया. एमसीडी की हार ने तो केजरीवाल एंड कंपनी को ही साइलेंट मोड में पहुंचा दिया.
शर्तें लागू हैं जी!
लगातार हार से त्रस्त और अपने ही आदमी कपिल मिश्रा से परेशान अरविंद केजरीवाल पूरा ध्यान बवाना चुनाव पर लगाया. बवाना में केजरीवाल के लिए चौतरफा चुनौतियां थीं. राजौरी गार्डन और एमसीडी चुनावों में हार से उनकी दिल्ली सरकार पर सवाल उठ रहे थे. असल में बवाना में उपचुनाव केजरीवाल के ही विधायक वेद प्रकाश के इस्तीफे से हो रहा था. ऊपर से वेद प्रकाश बीजेपी ज्वाइन कर उसके टिकट पर मैदान में उतर आये थे. बहरहाल, साथियों के साथ केजरीवाल की मेहनत रंग लाई और जीत हासिल हुई. जीत हासिल हुई तो हौसला भी बढ़ा.
बवाना की जीत के आर्किटेक्ट रहे आप नेता गोपाल राय ही गुजरात के भी प्रभारी हैं - और अब वो इस साल के आखिर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. वैसे मालूम हुआ है कि गुजरात में आप कुछ चुनिंदा सीटों पर भी चुनाव लड़ेगी.
आप के गुजरात चुनाव लड़ने की खासियत ये होगी कि चुनाव लड़ने वाले को टिकट लेने के लिए अपना बैंक स्टेटमेंट पेश करना होगा. अहमदाबाद मिरर के मुताबिक, टिकट के लिए आप ने जो शर्त रखी है उसमें उम्मीदवार के खाते में 28 लाख रुपये जरूर होने चाहिये.
सुनने में ये शर्त अजीबोगरीब जरूर लगती है लेकिन इसके पीछे आप की ठोस दलील भी है. उम्मीदवार के पास पैसा इतना तो होना ही चाहिये कि चुनाव प्रचार में कोई बाधा न हो. इस प्रस्ताव पर आप की चुनाव तैयारियों की मीटिंग में चर्चा भी हुई.
मीटिंग में मौजूद एक सदस्य ने अहमदाबाद मिरर को बताया, 'किसी भी उम्मीदवार के पास कम से कम 28 लाख होने चाहिए ताकि वो अच्छी तरह चुनाव प्रचार कर सके.'
टिकट पाने के लिए इसके अलावा भी कुछ शर्तें हैं जिन्हें पूरा करना जरूरी है - मसलन, उम्मीदवार की छवि साफ सुथरी तो होनी ही चाहिए, इलाके में उसका अच्छा नेटवर्क भी होना चाहिए - और उसके पास कम से कम दो लोग ऐसे होने चाहिये जो बूथ को मैनेज कर सकें.
ये 28 लाख का चक्कर क्या है?
असल में चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव में हर उम्मीदवार के लिए जो खर्च की जो सीमा तय कर रखी है वो 20 लाख से रुपये से लेकर 28 लाख तक है. इसी साल पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भी आयोग की ओर से इस बात की जानकारी दी गयी थी.
चुनाव आयोग ने गोवा और मणिपुर के लिए चुनाव खर्च की सीमा 20 लाख रुपये तय कर रखी थी. इसी तरह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के लिए ये सीमा 28 लाख रुपये थी.
दरअसल, छोटे राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में विधानसभा के प्रत्येक उम्मीदवार के लिए खर्च की सीमा 20 लाख रुपये है. बड़े राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए ये सीमा 28 लाख रुपये है.
चुनाव मोड में गुजरात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 67वें जन्म दिन के मौके पर 17 सितंबर को गुजरात में होंगे - और उसी दिन विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगे. 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में बीजेपी के 119 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के 57.
बताया गया है कि आम आदमी पार्टी भी 17 सितंबर को ही चुनाव प्रचार की शुरुआत करने वाली है. इस मौके पर जगह जगह कार और बाइक रैली आयोजित की जानी है. हालांकि, पार्टी ने अभी रैली की अनुमति नहीं ली है. ऐसा न होने की हालत में तारीख बदलनी पड़ सकती है.
नवंबर के आखिर में ही यूपी में स्थानीय निकायों के चुनाव होने जा रहे हैं. मेल टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, आम आदमी पार्टी यूपी के स्थानीय निकाय चुनाव में किस्मत आजमाने की तैयारी में है. विधानसभा चुनावों के वक्त जब केजरीवाल से यूपी को लेकर सवाल पूछा गया तो उनका कहना था कि वहां उनकी पार्टी के लिए बैंडविद नहीं है. लगता है बवाना चुनाव की जीत से आप को वो बैंडविद भी मिल गया है.
इन्हें भी पढ़ें :
केजरीवाल के लिए क्यों अहम है ये जीत
मोदी-नीतीश गठजोड़ का भविष्य जानना है तो बवाना उपचुनाव के नतीजे को समझिये
आखिर साथियों के 'बहकावे' में आकर और क्या क्या करेंगे केजरीवाल?
आपकी राय