सीबीआई थर्ड क्लास एजेंसी है - और 'पिंजरे का तोता' होना उसका कंफर्ट जोन
देश में कहीं कुछ भी गलत होने पर पहली मांग CBI जांच की ही उठती है. 2G केस में सीबीआई की भूमिका पर बाकियों के अलावा फैसला सुनाने वाले स्पेशल कोर्ट ने भी गंभीर सवाल उठाये हैं. क्या 'पिंजरे का तोता' बाहर निकलने को तैयार नहीं है या कुछ और बात है?
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2G केस में फैसला आने के बाद अब CBI खुद कठघरे में खड़ी हो गयी है. कांग्रेस के निशाने पर पूर्व CAG विनोद राय जरूर हैं, लेकिन सबसे ज्यादा सवाल सीबीआई की भूमिका पर ही उठ रहे हैं.
स्पेशल कोर्ट ने भी सीबीआई की भूमिका पर सवालिया निशान लगाये हैं. तो क्या सच में सीबीआई थर्ड क्लास एजेंसी हो चुकी है और 'पिंजरे का तोता' उसके लिए सदाबहार कम्फर्ट जोन बन चुका है?
ऐसा कैसे हो सकता है?
2जी केस में फैसला आते ही वकील और ब्लॉगर सुमित नागपाल का ने सवाल उठाया कि जिस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों के लाइसेंस कैंसल किये उनके रहते आरोपी भला बरी कैसे हो सकते हैं.
Yesterday when I was teaching law to my students, I told them that acquittal can be seen in two ways.. 1. A person is not guilty2. The prosecution failed to prove the case against the accused.Never knew I will get the example so soon. #2GScamVerdict #2Gverdict
— Sumit Nagpal (@Sumit_Nagpal) December 21, 2017
Have not read the judgment but my prima facie view is that the #2GScamVerdict is flawed. The #SupremeCourt canceled telecom license on the basis of material available. How can there be an acquittal?
— Sumit Nagpal (@Sumit_Nagpal) December 21, 2017
सुमित नागपाल ने किसी आरोपी के बरी होने के जिस कंडीशन का जिक्र किया है, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस के जश्न पर उसी आधार पर सवाल उठाया है. सांसद राजीव चंद्रशेखर का भी करीब करीब यही सवाल है कि फरवरी 2012 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ ट्रायल कोर्ट कैसे जा सकता है.
Case in #CBI court was only abt criminal conspiracy against 4 ppl in govt n their money trail btwn companies n them. the Judge tdy ruled case of criminal conprcy was not proved by prosecution ! Trial court has not n cannot contrdct SC judgmnt of Feb2012
— Rajeev Chandrasekhar (@rajeev_mp) December 21, 2017
10 yrs ago 2007 - I ws 1st MP to chllnge UPA govt ‘s #2Gscam ! i dis ths alone as an Indpndnt MP wth no support. Only few media covrd it. I ws targttd, thretnd n attmpts 2 be discredittd but stayed d course. Bcoz of @Swamy39 SC took it up. @thesuniljain pic.twitter.com/UJxsGBsJKx
— Rajeev Chandrasekhar (@rajeev_mp) December 21, 2017
इंडिया टुडे से बातचीत में CBI के एक सूत्र की भी तकरीबन वही राय रही जो बात सुमित नागपाल और राजीव चंद्रशेखर उठा रहे हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सबूतों के आधार पर लाइसेंस रद्द कर दिये. क्या उसे नजरअंदाज किया जा सकता है?"
अपनी जनहित याचिका के जरिये 2जी घोटाले को सामने लाने वाले बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ने तो सीबीआई के साथ साथ पूर्व अटॉर्नी जनरल को भी लपेटा है.
सीबीआई की भूमिका पर सवाल
2जी केस में फैसला आने के बाद बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी बुरी तरह बिफर उठे - और बीजेपी को भी नहीं बख्शा. स्वामी ने कहा, ''बीजेपी में किसी में भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का उत्साह नहीं दिख रहा है. जहां तक सीबीआई के फैसले का सवाल है, तो अदालत ने अपने निर्णय में ही उनकी योग्यता, समझ और निष्ठा की परतें खोल के रख दी हैं. मुझे लगता है कि उन जांच एजेंसियों के अधिकारी और स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर सब चोरों से मिले हुए हैं. उन सबको बदल देना चाहिए.''
सबूतों के अभाव में बरी!
पूर्व अटॉर्नी जनरल की भूमिका पर भी सवाल खड़े करते हुए स्वामी ने कहा - 'मुकुल रोहतगी कई आरोपियों की तरफ से पेश हो रहे थे... उन्होंने इस फैसले का स्वागत किया है. ऐसे में रोहतगी को सरकार को ओर से पेश नहीं होने देना चाहिए था.'
आरुषि मर्डर केस, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की जांच में भी निशाने पर रह चुकी सीबीआई को लेकर स्पेशल कोर्ट के जज ओपी सैनी ने भी बड़ी ही सख्त टिप्पणियां की है. कोर्ट ने पाया कि पूरी सुनवाई के दौरान ये समझना बेहद मुश्किल था कि अभियोजन पक्ष अपनी दलीलों से कोर्ट में क्या साबित करना चाह रहा था?
1. अभियोजन पक्ष की दलील बेहद कमजोर रही और केस में सुनवाई पूरी होते तक साफ हो गया कि अभियोजन पक्ष पूरी तरह दिशाहीन हो गया था.
2. ए राजा के खिलाफ सीबीआई की तरफ से कोई सुबूत नहीं रखा गया - और न ही कलाईगनार टीवी को 200 करोड़ रुपये के ट्रांसफर को गलत साबित किया जा सका.
3. सीबीआई ने जो चार्जशीट पेश किया वो भी कुछ दस्तावेजों को गलत तरीके से पढ़ने और कुछ को न पढ़ने नतीजा है. सीबीआई ने जिन गवाहों के बयान को आधार बनाया वे सारे कोर्ट में पलट गये.
4. दूर संचार मंत्रालय की ओर से पेश ज्यादातर दस्तावेजों में बिखराव दिखा और नीतिगत मुद्दे पूरे मामले को और ज्यादा पेंचीदा कर रहे थे जिसके चलते किसी को पूरा मामला समझ में नहीं आया.
5. मामले में नियुक्त विशेष सरकारी वकील और दूसरे सरकारी वकीलों में कभी कोई तालमेल नहीं दिखा और वे अलग-अलग दिशाओं में दलील देते पाये गए.
सीनियर पत्रकार राहुल कंवल ने सीबीआई के बारे में अपनी राय अपने फेसबुक पोस्ट में शेयर की है - "2G फैसले के झटके ने मेरे विश्वास को मज़बूत किया है कि CBI थर्ड क्लास जांच एजेंसी है. सियासत से जुड़े कामों में उत्कृष्ट है, वित्तीय जांचों में निकृष्ट, पूरी तरह अक्षम. बदनीयत पूरी तरह साफ़ होने पर भी मामलों को साबित नहीं कर सकी. शर्मनाक"
फेसबुक पर ही पत्रकार मोहित मिश्रा की तंज भरी टिप्पणी बड़ी ही माकूल लगती है - वो तो बस विनोद की 'राय' निकली?
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