विधानसभा चुनाव ने खींच दीं 5 नई लकीरें
इस बार अगर-मगर को किनारे कर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सीधे मुकाबले में राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दे दी. हिंदी बेल्ट की इन तीन राज्यों की जीत निश्चित रूप से राहुल के कद में इजाफा करने में काफी मददगार होगी.
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2019 के लोकसभा चुनावों के पहले आखिरी चुनाव कांग्रेस के अच्छे दिन लेकर आये तो वहीं लोकसभा के अहम चुनावों के पहले भारतीय जनता पार्टी के लिए यह किसी झटके से कम नहीं है. कांग्रेस 15 साल बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापसी कर रही है. भाजपा शासित तीन अहम राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने सीधे मुकाबले में भाजपा को पटखनी दे दी. हालांकि कांग्रेस को भी अपने नार्थ ईस्ट के आखिरी राज्य मिजोरम में सत्ता से बेदखल होना पड़ा मगर बावजूद इसके यह चुनाव नतीजे लोकसभा चुनावों के पहले कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह है जो कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से लड़ने का बल प्रदान करेगी. दक्षिण भारत के तेलंगाना के पहले विधानसभा चुनावों में भी यह साफ हो गया कि वर्तमान में तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव से बड़ा कोई चेहरा नहीं है. राव लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने को तैयार हैं.
यह चुनाव नतीजे कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह है
आइये जानते हैं इन चुनाव परिणाम की पांच बड़ी बातें-
राहुल गांधी के कद में इजाफा
गुजरात चुनावों के बाद यह कहा जा रहा था कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उसके गढ़ में चुनौती देने में सफल रहे. कर्नाटक चुनावों के बाद राहुल ने बाज़ीगरी दिखाते हुए हारने के बावजूद जेडीएस को समर्थन देकर कर्नाटक की सत्ता में बैकडोर एंट्री कर ली. हालांकि इस बार अगर-मगर को किनारे कर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सीधे मुकाबले में राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दे दी. हिंदी बेल्ट की इन तीन राज्यों की जीत निश्चित रूप से राहुल के कद में इजाफा करने में काफी मददगार होगी. इन अहम राज्यों में जीत लोकसभा चुनावों के पहले कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को जरुरी मोरल बूस्टर के तौर पर काम करेगी. इन राज्यों में जीत के साथ ही राहुल गांधी की संभावित महागठबंधन के अंदर स्वीकार्यता भी बढ़ेगी.
तेलंगाना में काम आयी केसीआर की जल्दबाजी
सितम्बर 2018 में जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव(केसीआर) ने 6 विधानसभा को भंग कर तय समय से तकरीबन छह महीने पहले चुनावों में जाने को लेकर फैसला किया तब उनके इस फैसले को कईओं ने शंका-आशंका की दृष्टि से भी देखा. कई चुनाव पूर्व सर्वे में यह बात भी देखने को मिली कि शायद केसीआर को इस फैसले का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. मगर चुनाव परिणामों के बाद यह साफ हो गया कि केसीआर ने जल्द चुनाव में जाने का जो फैसला लिया था वो बिलकुल सही साबित हुआ. केसीआर की पार्टी तेलांगना राष्ट्र समिति ने तेलांगना की 119 विधानसभा सीटों में से 88 पर जीत दर्ज की.
नार्थ ईस्ट हुआ कांग्रेस मुक्त
हालांकि भाजपा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं मगर आज नार्थ ईस्ट के सातवें राज्य मिजोरम में भी हार के बाद अब नार्थ ईस्ट कांग्रेस मुक्त हो गयी है. 2016 के बाद से कांग्रेस ने नार्थ ईस्ट में असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों के हाथों सत्ता गंवा चुकी है, और आज नार्थईस्ट के आखिरी गढ़ मिजोरम में हार के साथ ही नार्थ ईस्ट पूरी तरह से कांग्रेस के हाथ से फिसल गयी है. मिजोरम के नतीजों में मिज़ो नेशनल फ्रंट को चालीस में से 26 सीट, जबकि पिछले 10 सालों से सत्ता में काबिज कांग्रेस पार्टी को 5 सीटों पर ही जीत मिली. तो वहीं पहली बार भारतीय जनता पार्टी मिजोरम में अपना खाता खोलने में सफल हुई, भाजपा को यहां 1 सीट मिली है.
शिवराज आज भी मध्य प्रदेश के सबसे लोकप्रिय चेहरे
यह जरूर है कि शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे, मगर मध्य प्रदेश के नतीजों ने यह साबित कर दिया कि शिवराज आज भी निर्विवाद रूप से मध्य प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं. चुनावों के पहले मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए कई तरह की मुश्किलें थीं- पहली कि भाजपा पिछले 15 साल से मध्य प्रदेश की सत्ता में काबिज थी, खुद शिवराज पिछले 13 सालों से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. भाजपा इसके अलावा भी मध्य प्रदेश में कई परेशानियों का सामना कर रही थी जहां एक तरफ प्रदेश भर के किसानों में नाराजगी थी तो वहीं SC/ST एक्ट के बाद प्रदेश की अगड़ी जातियां भी भाजपा से खार खाये बैठी थीं. बावजूद इसके भाजपा का प्रदर्शन मध्य प्रदेश में काफी बेहतर रहा, भाजपा मध्य प्रदेश में लगातार चौथी बार सत्ता के काफी करीब पहुंच गयी थी मगर सरकार बनाने में नाकमयाब रही.
तीनों ही राज्यों में कांग्रेस ने बिना कोई महागठबंधन बनाये भाजपा को धुल चटा दी है
बिहार, दिल्ली के बाद मोदी शाह की जोड़ी को तगड़ा झटका
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी चुनाव जिताऊ मानी जाने लगी थी. मोदी शाह की इस जोड़ी ने 2014 के चुनावों के बाद कई राज्यों को भी भाजपा की झोली में डाला, यह मोदी शाह की जोड़ी का ही कमाल था कि भाजपा ने नार्थ ईस्ट के राज्यों में भी शानदार प्रदर्शन किया, भाजपा ने केरल और वेस्ट बंगाल जैसे राज्यों में भी अपने प्रदर्शन में सुधार किया. हां भाजपा को साल 2015 में जरूर दिल्ली और बिहार में हार का मुंह देखना पड़ा मगर इसके अलावा मोदी शाह की जोड़ी ने भाजपा को कई जीत की सौगात दी, जिसमें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मिली प्रचंड जीत भी शामिल है.
भाजपा वहां और भी बेहतर प्रदर्शन करती थी जहां उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से होता था. हालांकि अब इन तीन राज्यों में हार के बाद विपक्ष को जरूर यह संजीवनी मिल जाएगी कि मोदी और शाह की जोड़ी को भी मात दी जा सकती है. कांग्रेस शायद यह सोचकर भी खुश हो सकती है कि इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस ने बिना कोई महागठबंधन बनाये भाजपा को धुल चटा दी है.
और आखिर में हाल के वर्षों में हुए चुनावों के बाद यह पहला मौका होगा जब चुनाव परिणामों के बाद EVM 'बाइज्जत बरी' हो गया है. वरना हाल के वर्षों के चुनावों में अकसर हारने वाली पार्टी EVM को अपने निशाने पर लेती आयी है.
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