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Updated: 12 दिसम्बर, 2018 01:40 PM
अभिनव राजवंश
अभिनव राजवंश
  @abhinaw.rajwansh
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5 राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद अब अगला चुनाव 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव ही हैं. ऐसे में चुनाव नतीजों के बाद निश्चित रूप से इस बात के आकलन किए जायेंगे कि आख़िरकार किस हद तक विधानसभा के चुनाव नतीजों का असर लोकसभा चुनावों में देखने को मिलेगा. आपको बता दें कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को 15 सालों बाद सत्ता से बेदखल कर दिया है और साथ ही राजस्थान में भी कांग्रेस पांच सालों बाद भाजपा से सत्ता छीनने में सफल रही है. तेलंगाना के पहले विधानसभा चुनावों में एकतरफा मुकाबले में तेलंगाना राष्ट्र समिति विजेता बनके उभरी है जबकि मिजोरम में मिज़ो नेशनल फ्रंट ने 10 सालों बाद कांग्रेस से सत्ता छीन ली है. मिजोरम में हार के साथ ही कांग्रेस नार्थ ईस्ट के सभी राज्यों में सत्ता से बाहर हो गयी है.

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congress celebrationमध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बीजेपी को 15 सालों बाद सत्ता से बेदखल किया है

इन नतीजों के बाद अब कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनावों में भी इन राज्यों में ऐसे ही प्रदर्शन की उम्मीद कर रही होगी तो वहीं भाजपा इसे एक बुरा चुनाव मान लोकसभा चुनावों में हारे हुए राज्यों में प्रदर्शन में सुधर की गुंजाइश ढूंढ रही होगी. अब इन विधानसभा चुनावों का कितना असर आने वाले चुनावों पर पड़ेगा ठीक-ठीक कहना मुश्किल है और इसका सटीक अंदाज़ा लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद ही पता चल पायेगा. हालांकि अगर आकड़ों के माध्यम से मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों का आकलन करें तो इन राज्यों के विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में एक दिलचस्प ट्रेंड देखने को मिलता है. इन राज्यों में हुए पिछले 3 बार के विधानसभा और उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में यह देखने को मिला है कि जो भी पार्टी इन राज्यों के विधानसभा के चुनावों में जीत दर्ज करती है, उस पार्टी को इसका फायदा बाद में हुए लोकसभा चुनावों में भी मिला है. यही नहीं, इन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतने वाली पार्टी के वोट प्रतिशत में भी लोकसभा चुनावों में उछाल देखने को मिला है.

2003-2004

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2008-2009

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2013-2014

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इन राज्यों में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में एक ही पार्टी को फायदा होने के पीछे चुनावों के टाइमिंग को भी माना जा सकता है. आमतौर पर इन राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले लोकसभा चुनाव के बिच तकरीबन तीन से चार महीनों का ही अंतराल होता है, ऐसे में यह बहुत संभव लगता है कि किसी पार्टी के पक्ष में बना माहौल अगले तीन चार महीनों तक जारी रह जाए. और अगर विधानसभा और लोकसभा चुनावों का यही ट्रेंड अगले लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिले तो यह वाकई यह भाजपा के लिए बुरी खबर हो सकती है.

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हालांकि वर्तमान परिस्थिति में कुछ और बातें जो ध्यान देने वाली हैं वो यह कि जिन राज्यों में भाजपा को नुकसान होता दिख रहा है उनमें दो राज्य मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा 15 सालों से अधिक समय से सत्ता में है, ऐसी स्थिति में यह निश्चित तौर पर माना जा सकता है कि इन राज्यों में राज्य सरकारों को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा होगा. इसके अलावा लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में वोटिंग पैटर्न में अंतर दिखता है. हाल ही इंडिया टुडे ग्रुप के पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज में भी यह बात देखने को मिली थी कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, इन्ही राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़) के मुख्यमंत्रियों के तुलना में काफी ज्यादा है. ऐसे में इस बात को माना जा सकता है जो नुकसान भाजपा को विधानसभा चुनावों में देखने को मिल रही है वैसी स्थिति शायद आगामी लोकसभा चुनावों में देखने को ना मिले.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 65 सीट हैं और 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इनमें से 62 सीटों पर अपना कब्ज़ा जमाया था. ऐसे में भाजपा फिर से यह उम्मीद कर रही होगी कि नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए इन राज्यों की जनता लोकसभा चुनावों में भाजपा के पक्ष में मतदान करेगी, हालांकि कांग्रेस यही उम्मीद कर रही होगी कि विधानसभा चुनावों का बेहतर प्रदर्शन आने वाले लोकसभा चुनावों में भी जारी रहे.

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अभिनव राजवंश अभिनव राजवंश @abhinaw.rajwansh

लेखक आज तक में पत्रकार है.

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